योगी मुसलमानों को भी साथ लेकर चलें तो बेहतर

Edited By ,Updated: 17 Sep, 2021 03:46 AM

it is better if yogis take the muslims along too

योगी आदित्यनाथ वर्तमान में अपनी लय में हैं। हाल ही में उनके द्वारा ‘अब्बा जान’ के संबोधन का मामला चर्चा में आया। अपने शहर मुम्बई में मैं कई मुसलमानों को जानता हूं, कुछ मुम्बई के समाज में शीर्ष पर हैं तथा उससे भी अधिक निम्र वर्ग में तथा झोंपड़ पट्टी...

योगी आदित्यनाथ वर्तमान में अपनी लय में हैं। हाल ही में उनके द्वारा ‘अब्बा जान’ के संबोधन का मामला चर्चा में आया। अपने शहर मुम्बई में मैं कई मुसलमानों को जानता हूं, कुछ मुम्बई के समाज में शीर्ष पर हैं तथा उससे भी अधिक निम्र वर्ग में तथा झोंपड़ पट्टी में रहते हैं। बाद में मेरी उनके साथ और अधिक जान-पहचान हुई जब मैं रोमानिया से वापस लौटा जहां जिन मुसलमानों से मैं मिला वे या तो कूटनीतिज्ञ थे या स्थानीय लोग जो कूटनीतिक डिनर टेबल्स पर प्रतीक्षा करते थे, खुद मेरे सहित। 

मेरे निजी मित्र, जिनमें से अधिकतर रेसकोर्स से थे, को धर्म के साथ बहुत अधिक लगाव नहीं दिखाई देता था। मुझे यकीन नहीं है कि वे प्रार्थना करते होंगे, यहां तक कि जब उनके घोड़े रेस में होते थे। मेरे विनम्र मित्र जो मोहल्ला कमेटियों, जिनका गठन 1993-94 के बाद साम्प्रदायिक सौहार्द तथा शांति बनाए रखने के लिए किया गया था, के केंद्र ङ्क्षबदू थे तथा अपनी आजीविका कमाने के लिए अधिकांश दिनों के दौरान व्यस्त रहते थे। एक विभाजित देश विनाश के लिए एक निश्चित रैसिपी है। यदि अल्पसंख्यकों, जो जनसंख्या का 20 प्रतिशत बनाते हैं, को देश में दूसरे दर्जे का बना दिया गया तो यह बड़ी संख्या स्थाई रूप से अलग-थलग नागरिक बन जाएंगे।

हमारे समाज में मुसलमान 3 समूहों में से एक थे (अन्य दो थे अनुसूचित जातियां तथा जनजातियां) जो आर्थिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए थे।  यदि कांग्रेस अथवा उस समय की कोई भी सरकार उन्हें शिक्षा अथवा स्वास्थ्य के क्षेत्र में लाड़-दुलार देती तो मैं बंद आंखों से इस ‘खुशामद’ का समर्थन करता। बेहतर हो कि योगी मुसलमानों के खिलाफ बोलने की बजाए उनको साथ लेकर चलें। इससे उनकी विश्वसनीयता सभी वर्गों में और बढ़ेगी। धर्म एक निजी मान्यता है। यह केवल उसे मानने वाले की ङ्क्षचता होती है। इसमें सरकार को दखलअंदाजी क्यों देनी चाहिए? राजीव गांधी ने उस समय अपनी सबसे बड़ी राजनीतिक भूल की थी जब वह शाहबानो निर्णय में मौलवियों की मांग के सामने झुक गए। सरकार को धार्मिक मामलों में दखलअंदाजी किए बिना न्यायपूर्ण तथा पारदॢशता के साथ शासन करना चाहिए। 

योगी आदित्यनाथ ने अपनी विश्वसनीयता को यह आरोप लगाकर बढ़ा लिया कि जो लोग अपने पिताओं को ‘अब्बा जान’ कहते थे, यानी मुसलमान, एकमात्र समुदाय था जिसे  2017 से पहले राशन उपलब्ध करवाया जाता था, जब योगी मुख्यमंत्री बने थे। राशन गरीबों को उचित मूल्य की दुकानों पर कम दामों में उपलब्ध है। चूंकि मुसलमान, अनुसूचित जातियां तथा आदिवासी सबसे गरीब समुदायों में से हैं। संभवत: 2017 से पहले योगी, जब वह सत्ता के लिए सड़कों पर संघर्ष कर रहे थे, ने बड़ी संख्या में मुसलमानों तथा दलितों को राशन की लाइनों में देखा होगा। यही स्थिति आज भी होगी लेकिन योगी ने अपना अधिकतर समय मंत्रालय में अपनी कुर्सी को दिया है और संभवत: इस पर ध्यान नहीं दिया मगर नुक्सान हो गया है। लोग धोखा खा जाते हैं। वे उसी पर विश्वास करते हैं जो ‘महान नेता’ उनसे कहते हैं। 
उत्तर प्रदेश में मेरे मित्र तथा मुम्बई में मेरे सहयोगी, जो उत्तर प्रदेश से हैं, मुझे बताते हैं कि राज्य में योगी का बहुत अधिक प्रभाव है। 

मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने मंत्री परिषद में भ्रष्टाचार रोकने तथा वरिष्ठ नौकरशाहों को सक्रिय रखने के लिए उल्लेखनीय कार्रवाई की है। हालांकि वह राजस्व, पुलिस तथा अन्य विभागों में निम्न स्तरों पर भ्रष्टाचार नियंत्रित नहीं कर सके लेकिन भारत के किसी राज्य ने यह उपलब्धि हासिल नहीं की है। योगी ने अपने शासन की शुरूआत में अपराधियों को देखते ही गोली मारने के पुलिस को आदेश देकर एक सनसनी पैदा कर दी। स्वाभाविक तौर पर योगी ने स्वास्थ्य ढांचे पर वह ध्यान नहीं दिया जिसकी उसे जरूरत थी। हालांकि इसका अधिक प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि भाजपा की प्रोपेगंडा रोधी मशीनरी आजमाई हुई है और यह जरूरत से अधिक योग्य साबित हुई है। यह सफेद को काला तथा काले को सफेद कर सकती है। किसान आंदोलन का उन पर क्या असर पड़ेगा? 2017 में किसान उनके साथ थे। वे इस बार उन्हें उपकृत नहीं करेंगे।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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