सेना के पुनर्गठन का विवाद हल करना ही बेहतर

Edited By ,Updated: 08 Jul, 2021 04:40 AM

it is better to resolve the dispute of reorganization of the army

अमरीका तथा चीन सहित अन्य अनेकों देशों की तरह भारत भी अपने रक्षाबलों के लिए थिएटर कमांड के गठन की योजना बना रहा है। ऐसी कमांड सेना, वायुसेना तथा नौसेना को प्रस्तावि

अमरीका तथा चीन सहित अन्य अनेकों देशों की तरह भारत भी अपने रक्षाबलों के लिए थिएटर कमांड के गठन की योजना बना रहा है। ऐसी कमांड सेना, वायुसेना तथा नौसेना को प्रस्तावित कमांड  में मिला देगी। अभी वर्तमान प्रणाली के तहत तीनों सेनाओं का अपना अलग-अलग सैटअप है। 

यह एक अच्छा विचार है और कई विदेशी मुल्कों में यह पहले से ही व्यवस्था चल रही है। मगर शीर्ष सेना तथा वायुसेना अधिकारियों के मध्य थिएटर कमांड को लेकर मतभेदों के कारण गंभीर चिंताए उभर रही हैं। सैन्य बलों के अधिकारियों के हौसले के लिए इस तरह के विचारों के मतभेद को सार्वजनिक करना सही बात नहीं है। वर्तमान में भारत के पास 19 सैन्य कमांड्स हैं। सेना और वायुसेना के पास 7-7 कमानें जबकि नौसेना के पास 3 कमांड्स हैं। देश के पास भी 2 एकीकृत कमानें हैं। इनमें से एक अंडमान निकोबार कमान तथा अन्य रणनीतिक बल कमान है जोकि देश के परमाणु भंडार की देखरेख करती है। 

सभी क्रियाशील कमानों को समायोजित कर इस प्रस्ताव के तहत 5 एकीकृत थिएटर कमांडों का गठन करना है। एक एकीकृत कमांड का विचार है ताकि सैन्य प्रतिक्रिया का तीव्रता वाला और बेहतर ढांचा नियंत्रण बन सके। इनमें से प्रत्येक कमान हमारी सीमाओं पर अपना लक्ष्य केन्द्रित करेगी जोकि पड़ोसी देशों से जुड़ी हुई हैं। रक्षा विशेषज्ञों को तीनों सेनाओं के बीच खींचातानी के बारे में जागरुक रहना है कि कौन नए थिएटर कमांडों का प्रमुख होगा या किस तरह कमांड का ढांचा कार्य करेगा? यह मतभेद हाल ही में उस समय सार्वजनिक हो गया जब चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ (सी.डी.एस.) जनरल बिपिन रावत ने एक बयान दिया कि भारतीय वायुसेना को यह समझना चाहिए कि यह सैन्य बलों का एक समर्थन करने वाला हिस्सा है। 

उन्होंने एक वैबीनार के दौरान कहा कि, ‘‘वायुसेना को थलसेना को समर्थन उपलब्ध करवाना अपेक्षित है। यह नहीं भूलना चाहिए कि वायुसेना सशस्त्र सेना को समर्थन करने वाला एक हिस्सा है। जिस तरह सेना का समर्थन तोपखाना तथा इंजीनियर करते हैं और उनके पास कार्रवाइयों के समय थलसेना को समर्थन करने के लिए एक चार्टर और एक एयर डिफैंस चार्टर होता है।’’ ‘वायु योद्धा’ कहलाने वाले वायु सेना अधिकारियों ने हमेशा ही इस वर्गीकरण का विरोध किया है और उनका मानना है कि वायुसेना युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। 

युद्ध में किसी भी प्रकार की जीत उनकी प्रभावी कारगुजारी पर निर्भर करती है। वह यह भी मानते हैं कि नया प्रस्ताव वायुसेना की प्रकृति को बदल कर रख देगा। इसी वैबीनार के दौरान जनरल रावत की टिप्पणियों पर एयर चीफ मार्शल आर.के.एस. भदौरिया अपना ही नजरिया रखते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना एक समर्थन करने वाला अंग मात्र नहीं है और एक एयर आप्रेशन की योजना को अंजाम देने के लिए अलग पहलुओं को रखा जाता है। उन्होंने आगे कहा कि वायुसेना थिएटर कमानों के हक में है मगर वह यह नहीं चाहेगी कि इसकी भूमिका को कम कर दिया जाए।

सार्वजनिक तौर पर ऐसी टिप्पणियों को करने से जनरल रावत को दूरी बनाकर रखनी चाहिए। उनके लिए यही बेहतर होगा। वैबीनार पर उपस्थित वायुसेना प्रमुख चुप्पी नहीं साध सकते थे क्योंकि ऐसा करने से वायुसेना अधिकारियों का हौसला गिर सकता है। हालांकि उन्होंने उल्लेख किया कि आंतरिक बहस के माध्यम से ऐसे मुद्दों को सुलझा लेना चाहिए। यह मामला वायुसेना तथा सेना के सेवा से जुड़े तथा सेवानिवृत्त अधिकारियों के बीच चर्चा का ज्वलंत मुद्दा बन गया। सरकार ने भी बुद्धिमत्ता से तीनों सेनाओं के वाइस ची स को स िमलित कर एक समिति का गठन किया है जो इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करेगी। तीनों सेनाओं के मध्य में हमेशा से ही प्रतिद्वंद्विता रही है, और संकट के समय ही तीनों एकजुट हुई हैं। हालांकि सी.डी.एस. को सार्वजनिक तौर पर की गई टिप्पणी से बचना चाहिए।-विपिन पब्बी

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