कुप्रबंध की जिम्मेदारी तय करना आवश्यक

Edited By ,Updated: 13 May, 2021 05:26 AM

it is necessary to determine the responsibility of mismanagement

अस्पतालों के बाहर बैडों के इंतजार में खड़े मरीज, श्मशानघाटों पर जलती चिताओं से उठती लपटें और अब पवित्र गंगा में बह रहे शवों के चित्र हमारे दिलो-दिमाग में हमेशा के लिए रहेंगे। आई.सी.यू.

अस्पतालों के बाहर बैडों के इंतजार में खड़े मरीज, श्मशानघाटों पर जलती चिताओं से उठती लपटें और अब पवित्र गंगा में बह रहे शवों के चित्र हमारे दिलो-दिमाग में हमेशा के लिए रहेंगे। आई.सी.यू. बैडों के न मिल पाने से मरीजों की मौतें या फिर ऑक्सीजन न मिलने के कारण हांफते मरीज या दवाइयों की बड़ी किल्लत भी मन को झिझोर कर रख देती है।
अब ऐसी रिपोर्टें आ रही हैं कि यह वायरस देश के ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहा है। इस बात की भी शंका है कि हमें कोविड के कारण मरने वालों की पूरी गिनती का भी पता नहीं है। यहां पर बहुत कम लोग हैं जो वायरस से मरने वालों के आधिकारिक आंकड़ों को मान रहे हैं। 

श्मशानघाटों पर भी रोजाना की गिनती में होने वाले संस्कारों से ज्यादा आंकड़े सामने आ रहे हैं। एक ही स्थान पर शवों के संस्कार के लिए कई दाह संस्कार स्थल बनाए गए हैं। कुछ को तो पार्किंग क्षेत्रों में भी बनाया गया है। कोरोना मामलों से निपटने में कुप्रबंधन स्पष्ट है। सरकार दूसरी लहर के लिए तैयार ही नहीं थी जबकि इसने पहले से ही अमरीका, मैक्सिको, यूरोप में कोविड के प्रसार को देख लिया था। यहां तक कि महाराष्ट्र जहां पर दूसरी लहर ने सबसे पहले प्रभावित किया, से मिले संकेतों को भी दरकिनार कर दिया गया। 

वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं किया गया और न ही मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाने के लिए कोई कदम उठाया गया है। यदि कोई ऐसा प्रयास किया भी गया था तो वह जमीनी स्तर पर नजर आ ही रहा है। कोविड पर जीत की घोषणा सरकार ने बहुत जल्दबाजी में कर दी और अपने आपको विश्व का रक्षक घोषित कर दिया। 93 देशों को घरेलू जरूरतों को दरकिनार करते हुए 6.63 बिलियन खुराकें निर्यात की गईं। जिन देशों में कोविड की खुराकें भेजी गईं वहां पर महामारी का प्रभाव भारत से कम था। एक प्रचलित कहावत है कि ‘दान पुण्य’ की शुरूआत घर से होती है। 

इसलिए निश्चित तौर पर सरकार के लिए यह दावा करना गलत है कि इसने पहली लहर पर सफलतापूर्वक काबू पा लिया। हमारा ट्रैक रिकार्ड पड़ोसियों जैसे पाकिस्तान, बंगलादेश तथा श्रीलंका की तुलना में ज्यादा खराब था। इसके साथ-साथ स पूर्ण लॉकडाऊन के गलत परामर्श ने भी स्थिति को और बिगाड़ दिया और लाखों लोगों को दुख-संताप झेलना पड़ा। इससे हमारी अर्थव्यवस्था को भी बड़ा झटका लगा। 

सरकार तथा मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इस बात का दावा कर रहा था कि देश ने पहली लहर से सफलतापूर्वक निपटा। हालांकि पहली लहर ने ज्यादातर गरीब लोगों को प्रभावित किया। इसने सीधे तौर पर मध्यम वर्ग को नहीं छुआ जैसा कि इसने हमारे जैसे लोगों को दूसरी लहर के दौरान क्षति पहुंचाई। गरीबों की दुर्दशा की पर्याप्त रिपोॄटग करने में भी देश का मीडिया असफल रहा। अपनी जान बचाने के लिए लाखों की तादाद में लोगों ने अपने घरों की ओर पैदल यात्रा की। 

अब ऐसे लोग एक बार फिर से उसी स्थिति का सामना कर रहे हैं क्योंकि ग्रामीण भारत में दूसरी लहर के प्रकोप का प्रसार हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में बुरी स्वास्थ्य सहूलियतों तथा अपर्याप्त जागरूकता को देखते हुए हम इसके नतीजों की कल्पना कर सकते हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार देश का दो-तिहाई हिस्सा महामारी की चपेट में है जहां पर 533 जिलों में 10 प्रतिशत से ज्यादा पॉजिटिव दर है। पहली लहर के बाद जल्द ही आर्थिक रिकवरी के विपरीत इस समय महामारी का प्रभाव और ज्यादा बुरा हो सकता है और रिकवरी धीमी गति की हो सकती है। 

महामारी से निपटने का एकमात्र रास्ता ज्यादा से ज्यादा टैस्ट करवाने का है। इसके अलावा एक बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन मुहिम चलाई जाए। हालांकि केंद्र सरकार ने अपनी वैक्सीनेशन नीति में संशोधन के द्वारा और ज्यादा उलझनें पैदा कर दी हैं। इन सबकी जि मेदारी राज्यों पर स्थानांतरित कर दी गई है। इससे सप्लाई चेन बाधित हुई और वैक्सीन की गंभीर कमी हो गई। सरकार को जो पहले करना चाहिए था वे सुप्रीमकोर्ट अब अपने दिशा-निर्देशों द्वारा कह रही है। उसने महामारी से निपटने के लिए एक उच्च स्तरीय टास्क फोर्स के गठन का आदेश दिया है। 

लोगों को आश्वासन देने की बजाय प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्री चुप्पी साधे हुए हैं क्योंकि सभी लोग इस महामारी से निपटने में व्यस्त हैं। इसलिए यह जरूरी है कि स्थिति का संज्ञान लिया जाए और इस संकट से निपटने के लिए और ज्यादा योग्य अधिकारी लगाए जाएं। कुप्रबंधन की जि मेदारी तय करनी होगी।-विपिन पब्बी

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