रुतबे के लिहाज से भी खास है यह ‘आम चुनाव’

Edited By ,Updated: 18 Apr, 2019 03:48 AM

it is special in terms of status as  common election

निश्चित रूप से पूरा देश चुनावी बुखार की गिरफ्त में है। भले ही नई सरकार को लेकर दलों सहित मतदाताओं में दावों-प्रतिदावों और कयासों का दौर चल रहा हो लेकिन मौसम को लेकर आई खबर जरूर सुकून देने वाली है। बीते तीन वर्षों की तरह इस बार भी मॉनसून न केवल...

निश्चित रूप से पूरा देश चुनावी बुखार की गिरफ्त में है। भले ही नई सरकार को लेकर दलों सहित मतदाताओं में दावों-प्रतिदावों और कयासों का दौर चल रहा हो लेकिन मौसम को लेकर आई खबर जरूर सुकून देने वाली है। बीते तीन वर्षों की तरह इस बार भी मॉनसून न केवल सामान्य रहेगा बल्कि 96 प्रतिशत बारिश के भी आसार हैं। 

जून के बाद अच्छी बारिश की बात कही जा रही है जो नई सरकार के लिए राहत भरी होगी। लेकिन यह भी बड़ी हकीकत है कि आॢथक तरक्की को लेकर अभी भी काफी कुछ साफ नहीं है। यह बड़ा मुद्दा जरूर है क्योंकि रोजगार के जो आंकड़े सार्वजनिक तौर पर विभिन्न स्रोतों से आए हैं वे निराशा ही पैदा करते हैं। जी.डी.पी. को लेकर जो कुछ सामने है वह गिरावट के बाद भी उम्मीदों को बढ़ाता है। 

वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट देखें तो 2017 में हिन्दुस्तान की अर्थव्यवस्था में जी.एस.टी. और नोटबंदी के कारण गिरावट दर्ज की गई। संतोष यही कि इसी दौरान चीन की विकास दर 6.9 प्रतिशत रही, जबकि हिन्दुस्तान की जी.डी.पी. वृद्धि 6.7 प्रतिशत थी। देश की सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) वृद्धि दर 2018-19 की तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसम्बर) में धीमी पड़ कर 6.6 प्रतिशत रही जो कृषि, खनन और विनिर्माण क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन से घटी। हालांकि आॢथक वृद्धि दर का यह आंकड़ा पिछली 5 तिमाहियों में सबसे कम रहा। 

बावजूद इसके हिन्दुस्तान दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है जो नई सरकार के लिए राहत की बात होगी। इसी दौरान चीन की आर्थिक वृद्धि दर अक्तूबर-दिसम्बर तिमाही में 6.4 प्रतिशत रही। विभिन्न देशों को क्रैडिट रेटिंग देने वाली अमरीकी संस्था मूडीज ने हिन्दुस्तानी अर्थव्यवस्था के कैलेंडर वर्ष 2019 और 2020 में 7.3 फीसदी की दर से बढऩे की उम्मीद जता हमारे बढ़ते रुतबे का संकेत दिया है। 

क्या जन अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी सरकार
इन्हीं आर्थिक आंकड़ोंके बीच चुनावी रण में प्रमुख राजनीतिक दलों के तमाम बड़े नेताओं की बदजुबानी ने जहां मुद्दों से हटकर मतदाताओं को चौंकाया है, वहीं धार्मिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण का खेल भी खूब चल रहा है। लेकिन सवाल फिर वही कि विकास, रोजगार और गरीबी के आंकड़ों के बीच देश में आने वाली नई सरकार क्या घोषणाओं के अनुरूप जन अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी? जहां भाजपा ने 48 पृष्ठों के अपने घोषणा पत्र जिसे ‘संकल्प पत्र’ का नाम दिया है, जिसमें सैंकड़ों वायदों और उपलब्धियों के बीच विशेष रूप से ‘भारत की आजादी के 75 साल के 75 संकल्प’ से जबरदस्त विषयों को छुआ गया है, वहीं कांग्रेस के 55 पृष्ठों के घोषणा पत्र में 53 प्रमुख बिन्दुओं के सभी उप बिन्दुओं में लोक-लुभावन वायदों की शुरूआत ‘हम निभाएंगे’ से करके मतदाताओं में भरोसा जताने की कोशिश की है। 

चुनाव पर दुनिया की नजर
यह भी सही है कि हिन्दुस्तान के 90 करोड़ मतदाताओं में से 90 फीसदी से भी ज्यादा घोषणा पत्रों को देखते तक नहीं हैं। केवल टी.वी. चैनलों और अखबारों के जरिए विभिन्न दलों और नेताओं के वायदों और कथनी की जानकारी ले पाते हैं। ऐसे में 11 अप्रैल से शुरू हुए और 19 मई तक 7 चरणों में चलने वाले हिन्दुस्तान के आम चुनाव पर पूरी दुनिया भर की नजर है क्योंकि चीन जानता है कि भारतीय मजबूत अर्थव्यवस्था के उसके लिए क्या मायने हैं? वह भी तब, जब विश्व बैंक पहले ही कह चुका है कि हिन्दुस्तान वर्ष 2025 तक दुनिया का तीसरा बड़ा बाजार होगा। 

आर्थिक मुद्दों के अलावा इस बार के चुनावी राजनीतिक एजैंडे भी बेहद प्रभावी होंगे। जहां भाजपा दोबारा सत्ता में आने के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कराने, कश्मीर से धारा 370 और 35ए हटाने हेतु वचनबद्ध है तथा सरसरी तौर पर भाजपा की घोषणाएं लगभग 2014 के वायदों और भावनाओं सरीखे ही दिखती हैं। वहीं कांग्रेस 5 करोड़ परिवारों और 25 करोड़ लोगों को हर साल 6000 रुपए देकर गरीबी खत्म करने के अपने वर्षों पुराने नारे को नए अंदाज में कहते हुए 60 साल की उम्र के बाद पैंशन देने की बात पर मतदाताओं को सोचने को मजबूर करती है। 

क्षेत्रीय दलों की होगी अहम भूमिका
इस चुनाव में किसानों पर सभी का फोकस है। भाजपा 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने को संकल्पित दिखाते हुए कृषि और किसान कल्याण नीति, सहयोगी क्षेत्रों का विकास, सिंचाई, सहकारिता, प्रौद्योगिकी का उपयोग, नीली क्रांति और ग्राम स्वराज पर अपना विजन साफ करती है। वहीं कांग्रेस पंडित जवाहरलाल नेहरू को उद्धृत करते हुए ‘सब कुछ इंतजार कर सकता है पर कृषि नहीं’ लिखते हुए 21 बिन्दुओं में बहुत ही बारीकी से किसानों के लिए भावी योजनाओं का जिक्र करती है। लेकिन पूरे देश में क्षेत्रीय दल हर कहीं दोनों ही राष्ट्रीय दलों के लिए चुनौती बने हुए हैं। ऐसे में क्षेत्रीय दलों की भूमिका उसकी जीत के आंकड़ों के हिसाब से तय होगी जो नई सरकार के लिए अपने हिसाब से किंग मेकर की भूमिका में होंगे। निश्चित रूप से बिना गठबंधन नई सरकार के बारे में सोचना बेमानी है। 

भारतीय राजनीति में गठबंधन नया राजनीतिक धर्म बन गया जिसको निभाए बिना कोई भी सरकार नहीं बन सकेगी। बावजूद इसके दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और दूसरी बड़ी आबादी वाले हिन्दुस्तान में आतंकवाद, नक्सलवाद, घुसपैठ की समस्या, जन स्वास्थ्य, महिलाओं के उत्थान, बेहतर शिक्षा व्यवस्था, तकनीकी विकास जैसी दूसरी अहम समस्याएं तो हैं ही लेकिन इन सबसे बढ़कर भ्रष्टाचार बेहद चुनौतीपूर्ण मुद्दा है जिसने बहुत ही गहरी जड़ें जमा ली हैं और इस पर काबू पाना टेढ़ी खीर है। निश्चित रूप से ये सारे वायदे किसी न किसी रूप में सभी दलों की घोषणाओं का हिस्सा पहले भी थे और अब भी हैं। लेकिन अफसोस कि इस पर कितना कुछ हो सका है यह प्याज के छिलकों की तरह सामने है। बावजूद इसके यह आम चुनाव एक अलग नजरिए से देखे जा रहे हैं जो हिन्दुस्तान के दुनिया भर में बढ़ते रुतबे को दिखाता है।-ऋतुपर्ण दवे

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