‘आगामी चुनावों में कांग्रेस अपनी साख बचाए तो अच्छा होगा’

Edited By ,Updated: 07 Mar, 2021 04:18 AM

it will be good if the congress saves its credibility in the upcoming elections

मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने घर के बगीचे पर एक सजीला कार्पेट बिछा रखा था। वह इस कार्पेट पर डंड बैठकें लगा रहा था ताकि अपने घर को बचाने के लिए शक्तिशाली बन सके। इस दौरान चोर उसके पीछे 2 अलग-अलग प्रवेश द्वारों से घर के अंदर दाखिल ...

मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने घर के बगीचे पर एक सजीला कार्पेट बिछा रखा था। वह इस कार्पेट पर डंड बैठकें लगा रहा था ताकि अपने घर को बचाने के लिए शक्तिशाली बन सके। इस दौरान चोर उसके पीछे 2 अलग-अलग प्रवेश द्वारों से घर के अंदर दाखिल हुए। सामने वाले प्रवेश द्वार पर उसके पड़ोसी दोस्तों ने मुल्ला को सचेत किया कि उसके घर को चोरों के दो गिरोह लूटने वाले हैं। मुल्ला यह सब सुन कर उन पर हंसने लगा और वह बोला, ‘‘तुम लोग गलत हो, वे दो गिरोह हैं। वे इस स्कीम में दोनों इकट्ठे हैं और मैं जानता हूं कि वह क्या करने वाले हैं?’’ इतने में पड़ोसियों ने पूूछा, ‘‘ऐसा क्या है?’’

मुल्ला बोला, ‘‘यदि मैं एक गिरोह को पकडऩे के लिए भागता हूं तो दूसरा मेरे कार्पेट को चुरा लेगा। इतने में वह फिर से डंड बैठकें लगाने लगा।’’ यह सुन कर पड़ोसी अपनी छातियां पीटने लगे और चोरों ने मुल्ला के घर में पड़े सारे सामान को चुरा लिया। मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी एक वैश्विक सच्चाई है। इसे तमिलनाडु के सेंट जोसेफ्स हायर सैकंडरी स्कूल में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा बलवान दिखने के लिए दिखाए गए प्रदर्शन से जोड़ा जा सकता है। उन्होंने 10वीं ग्रेड के छात्र निरोली को भी प्रतियोगिता से बाहर कर दिया। 50 वर्षीय राहुल ने 10 सैकंड्स में 14 डंड बैठकें लगाईं जोकि एक रिकार्ड ही है। 

शारीरिक फिटनैस तो उनके डी.एन.ए. में है। उनके पूर्वज पंडित जवाहर लाल नेहरू का योग शीर्ष आसन के बिना अधूरा था जबकि नेहरू अपने अभ्यास के लिए पूरी तरह से निजी थे वहीं राहुल प्रदर्शक हैं। नेहरू अपनी कश्मीरी पंडित विरासत पर गर्व महसूस करते थे। उन्होंने धार्मिक तौर पर अनुष्ठान नहीं किया। अपनी वसीयत में उन्होंने अपने संस्कार के लिए अनुष्ठानों को त्याग दिया। इनके सहयोगी उनसे ज्यादा हिंदू थे। अंतिम संस्कार बिना किसी वैदिक अनुष्ठान के आयोजित हुआ। राहुल गांधी के सबसे ज्यादा विश्वसनीय रणदीप सुर्जेवाला ने उन्हें एक जनेऊधारी ब्राह्मण घोषित कर दिया। राहुल ने प्रत्येक मंदिर के आधार को छूना शुरू किया। 

यही नहीं उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी अपने माथे पर तिलक लगाना शुरू कर दिया जो एक योगिनी के लिए काफी होता है। कड़ाके की ठंड में प्रियंका पवित्र नदियों में डुबकियां लगा चुकी हैं। यदि उनके भाई शारीरिक फिटनैस का उदाहरण पेश कर रहे हैं तो प्रियंका भी फैंसी ड्रैसों में अपनी यात्राओं के दौरान नजर आ रही हैं। असम के चाय बागानों में वह दो पत्तियों को तोड़ती नजर आई। 

मुल्ला की कहानी के अनुरूप ही दोनों भाई-बहन कार्पेट पर पकड़ जमाए हुए हैं। कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ सदस्य पहले से ही विद्रोह कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। बाकी के बचे-खुचे इधर-उधर भाग रहे हैं क्योंकि गांधी परिवार उनको आगे का रास्ता दिखाने में असमर्थ है। यह निश्चित है कि वे खुद भी नहीं जानते होंगे कि किधर जाना है। गुजरात में पिछले सप्ताह स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस को बुरी तरह पछाड़ा। यहां तक कि आम आदमी पार्टी और ओवैसी ने बेहद आश्चर्यजनक तरीकों से अपने खाते खोले। 

जी-23 कांग्रेसी विरोधी एक बारात की तरह नजर आए जो मानो जीव-जंतुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हों। गुलाम नबी आजाद 2019 के चुनावों के बाद से पीड़ा दिखा रहे हैं। ऐसे भी दिन थे जब बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी व्यावहारिक राजनीति का सहारा लेते थे। वह चुनावों के दौरान मुसलमानों के साथ दिखाई नहीं देते थे क्योंकि इससे भाजपा को वोटों के ध्रुवीकरण करने में सहायता मिल जाती। उसके बाद राहुल गांधी ने कुछ भी नहीं सीखा। न नीतियां न कूटनीतियां और न ही चालें। जब 2019 के आम चुनावों में भाजपा ने 303 सीटें जीतीं तो कांग्रेस ने 52 सीटें जीतीं। तब राहुल गांधी ने इस हार की जिम्मेदारी लेते हुए बतौर पार्टी अध्यक्ष इस्तीफा दे डाला। कांग्रेस तथा राष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में एक अध्याय खत्म हो चुका था मगर सुर्जेवाला जैसे राहुल के साथियों ने कांग्रेस के पुनरुद्धार के बोल नहीं बोले। कुछ तो होते मोहब्बत में जुनून के आसार और कुछ लोग भी दीवाना बना देते हैं। 

545 वाले सदन में 52 सदस्यों के साथ खड़े एक नेता पर आखिर इतना ध्यान क्यों है? उद्योगपतियों तथा सत्ताधारी पार्टी द्वारा नियंत्रित मीडिया गांधियों पर ऐसे ध्यान क्यों देता है?  यह इसलिए क्योंकि उनसे कोई डर नहीं है। लोगों को रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य सेवाएं, यूनिवर्सल नि:शुल्क शिक्षा के एक प्लेटफार्म पर लाने की क्षमता रखने वाले वामदलों को नकार दिया जाता है। भाजपा तथा कांग्रेस के बीच फर्क न्यूनतम है। विदेश, आॢथक और यहां तक कि सामाजिक नीतियां ज्यादा नहीं तो एक जैसी हैं। 

भाजपा की मुस्लिम विरोधी मुद्रा हिंदुओं को संगठित करने के लिए है। मुसलमानों का नकारना कांग्रेस के लिए भी वही मंतव्य है। जीवित रहने के लिए मां, बेटा और बेटी कब तक एक धागे से बंधे रहेंगे। जी-23 नेता इस क्षण घाव देने के लिए तैयार हैं मगर हमला करने के लिए डरते हैं। वे केवल एक नुक्स तो निकालना चाहते हैं मगर नापसंद करने के लिए हिचकिचाहट करते हैं। ऐसी हिचकिचाहटें उस दिन रास्ता देंगी जब मई में पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी के विधानसभा चुनावों के नतीजे आएंगे। पांच में से दो राज्यों में यदि कांग्रेस अपनी साख बचा पाई तो यह अच्छा ही होगा।-सईद नकवी
      

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