‘जैसा आप कहते हैं वैसा नहीं है’

Edited By ,Updated: 03 Dec, 2019 03:30 AM

its not what you say

श्रीलंका के नए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे द्वारा शपथ लेने के बाद ही भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उन्हें भारत आने का न्यौता दिया था जिसे उन्होंने स्वीकार कर भारत की यात्रा की। चीन के प्रभाव के बीच श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपने...

श्रीलंका के नए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे द्वारा शपथ लेने के बाद ही भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उन्हें भारत आने का न्यौता दिया था जिसे उन्होंने स्वीकार कर भारत की यात्रा की। चीन के प्रभाव के बीच श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपने पहले आधिकारिक विदेशी दौरे के लिए भारत को चुना जिससे जाहिर होता है कि वह भारत के साथ देश के संबंध को किस रूप में देखते हैं।

राजपक्षे द्वारा यात्रा के इस न्यौते को मोदी सरकार की ‘पहले पड़ोसी’ वाली नीति के तहत स्वीकारा गया था। फरवरी 2018 में दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने काठमांडू की ऐसी ही ऐतिहासिक यात्रा की थी जहां पर उन्होंने प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के शपथ ग्रहण करने के दो हफ्तों बाद उनसे मुलाकात की थी। सुषमा ने उनको भी दिल्ली आने का न्यौता दिया था। 2 माह बाद ही ओली ने भारत की यात्रा की थी। 

प्रधानमंत्री मोदी भी भूटान, मालदीव तथा श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं। 2018 में उन्होंने मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत की थी और मोदी ने भी उनको इस वर्ष अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था। भारत के पड़ोसी मुल्कों में चुने हुए नेता हैं जिनके साथ बड़ा राजनीतिक जनादेश है। भारत के पास अपनी नीति के लिए नई चुनौतियां हैं। 

भारत तथा श्रीलंका दोनों की इच्छा है कि वे मिल कर आगे बढ़ें। राष्ट्रपति गोटबाया तथा प्रधानमंत्री महिन्दा राजपक्षे ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत के साथ सांझा किए गए खटास भरे इतिहास को पीछे छोड़ा है। राजपक्षे ने यह आरोप लगाया था कि भारतीय खुफिया एजैंसियों ने 2015 में चुनावों में उनकी हार के लिए साजिश रची थी। श्रीलंका में ईस्टर संडे आतंकी हमलों के बाद दोनों देशों ने खुफिया सहयोग के प्रति तेजी से सुधार किया है। 

गोटबाया ने चुनावों के दौरान आतंकी हमले को बड़ा मुद्दा बनाया था। वहीं नेपाल के साथ भी 2015 में व्यापारिक नाकाबंदी के बाद भारत-नेपाल रिश्तों में खटास आई। दो तरफा समझौतों का मुख्य स्तम्भ विकास परियोजनाओं तथा आर्थिक रिश्तों के ऊपर निर्भर करता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान घोषित की गई परियोजनाओं को पूरा करने की जरूरत है। भारत की भी ख्वाहिश है कि वह उत्तरी तथा पूर्वी प्रांतों में मूलभूत सुविधाओं में अपनी रुचि दिखाए जिसमें जाफना-कोलम्बो रेल ट्रैक तथा अन्य रेल लाइनों की अपग्रेङ्क्षडग शामिल है। इसके अलावा भारत की ओर से बिजली आयात के लिए इलैक्ट्रीसिटी ट्रांसमिशन उपलब्ध कराना भी शामिल है। कोलम्बो की सहयोग करने की इच्छा शक्ति के आगे नई दिल्ली को भी उसको सहयोग करने की इच्छा जतानी होगी। 

परियोजनाओं को पूरा करना
पूर्वी प्रांत में 2017 में पूर्व प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे तथा नई दिल्ली के बीच हुए करारों के तहत परियोजनाओं में भी कम प्रगति हुई है। इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए भारत को रुचि दिखानी होगी। भारत को लंका में चीनी निवेश से भी निपटना होगा। उल्लेखनीय है कि भारत-जापान में एक समझौता हुआ है जिसके तहत कोलम्बो हार्बर में ईस्ट कंटेनर टर्मिनल विकसित करना शामिल है। सैंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका, बंगलादेश बैंक तथा नेपाल राष्ट्र बैंक से एकत्रित किए गए डाटा से पता चलता है कि श्रीलंका ही नहीं, उपमहाद्वीप में भारत निवेश आंकड़ों में पीछे है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाऊंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत का श्रीलंका, बंगलादेश तथा नेपाल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश चीन के 2014-15 से ज्यादा था। यही स्थिति मालदीव की भी है जहां पर कोई भी चीनी परियोजना अटकी नहीं है, न ही यह रद्द हुई है। 

नेपाल में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा के बाद नेपाल-चीन के रिश्ते मजबूत हुए हैं। सड़क, रेल तथा अन्य परियोजनाओं पर कार्यों में प्रगति दिखाई दे रही है। बंगलादेश जोकि इस क्षेत्र में भारत का करीबी सहयोगी है, ने पिछले वर्ष चीन से 3.6 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त किया है जिसमें 50 बिलियन डॉलर का बैल्ट एंड रोड प्रोमिसिस भी शामिल है। ये आंकड़े ऊंचाई की ओर अग्रसर हैं। इन सबको देखते हुए भारत को पड़ोसी देशों से इस मामले में चुनौती मिल रही है। सबसे अहम बात यह है कि मोदी सरकार को कोई उदाहरण पेश करना होगा। भारत के अंदरूनी मामलों जैसे अनुच्छेद 370, नागरिक संशोधन बिल, एन.आर.सी. तथा मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग जैसे मामलों पर पड़ोसी मुल्कों में तेजी से चर्चा हो रही है जिसका नई दिल्ली के साथ बातचीत पर असर पड़ेगा। 

विदेश मंत्री जयशंकर ने एक बयान  में श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटबाया से कहा है कि अल्पसंख्यकों के बीच समानता, न्याय, शांति तथा मर्यादा को कायम रखने के लिए संवैधानिक वायदों को निभाना होगा। जम्मू-कश्मीर में सरकार द्वारा चुनाव करवाने में असफल तथा घाटी के नेताओं की लम्बी गिरफ्तारी से भारत की साख गिरी है। ऐसे में भारत मालदीव, पाकिस्तान तथा बंगलादेश में रह रहे हिंदुओं तथा सिख अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों के बारे में कैसे लैक्चर दे सकता है?  इसलिए हम कह सकते हैं कि जैसा आप कहते हैं वैसा है नहीं।-सुहासिनी हैदर

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