जयपाल व सुषमा ने राष्ट्रीय पटल पर ‘अमिट छाप’ छोड़ी

Edited By ,Updated: 10 Aug, 2019 12:27 AM

jaipal and sushma leave an indelible mark on the national table

दो प्रतिष्ठित तथा प्रिय मित्रों जयपाल रैड्डी तथा सुषमा स्वराज के 10 दिन के भीतर ही निधन ने मुझे भीतर से एक बड़ी कमी की भावना से भर दिया है। जयपाल रैड्डी तथा सुषमा स्वराज मेरे वास्तविक भाई-बहन की तरह अधिक थे। जयपाल मेरे बड़े भाई तथा सुषमा छोटी बहन की...

दो प्रतिष्ठित तथा प्रिय मित्रों जयपाल रैड्डी तथा सुषमा स्वराज के 10 दिन के भीतर ही निधन ने मुझे भीतर से एक बड़ी कमी की भावना से भर दिया है। जयपाल रैड्डी तथा सुषमा स्वराज मेरे वास्तविक भाई-बहन की तरह अधिक थे। जयपाल मेरे बड़े भाई तथा सुषमा छोटी बहन की तरह थीं। वे कुछ उत्कृष्ट सांसदों, कुशल प्रशासकों तथा शानदार वक्ताओं में से थे। दोनों में कई समानताएं थीं और विभिन्नताओं को भी सांझा करते थे। समानताओं में उनकी क्षमताएं, अक्षमताएं तथा अपने लम्बे सार्वजनिक जीवन के दौरान सफल कार्यकाल रहा है। 

पहले अक्षमताएं। 77 वर्षीय जयपाल रैड्डी पोलियो के कारण दिव्यांग थे लेकिन उन्होंने इसे कभी भी अपने उत्साह व मनोबल को कमजोर नहीं करने दिया। मैं आमतौर पर उनसे पूछता था कि क्या उन्होंने जानबूझ कर कभी यह दिखाने का प्रयास किया कि वह अपनी शारीरिक अक्षमता के कारण लाचार नहीं हैं। वह किसी भी ऐसे विचार को दरकिनार कर देते थे और कहते थे कि मनोबल मायने रखता है और शारीरिक अक्षमता उनके अदम्य मनोबल में कोई अंतर पैदा नहीं करती। उनके जीवन में यह रचनात्मक उत्साह ही था जिसने उन्हें इतनी ऊंचाई पर पहुंचाया। 

जयपाल रैड्डी एक महान वक्ता तथा बुद्धिजीवी थे, जिनमें प्रत्येक मुद्दे की समीक्षा करने की क्षमता थी। अपनी तीक्षण बुद्धि तथा हंसी-मजाक की क्षमता के चलते वह अपनी पार्टी के एक ताकतवर प्रवक्ता थे। वह अंग्रेजी तथा तेलगू के एक शानदार वक्ता थे। दरअसल हम दोनों आंध्र प्रदेश विधानसभा में एक-दूसरे के साथ बैठा करते थे और एक-दूसरे के साथ नोट्स सांझा करते थे। सत्ताधारी पार्टी के सदस्य दो प्रसिद्ध तेलगू कवियों के साथ तुलना करते हुए हमें तिरुपति वेंकटा कावुलु बुलाया करते थे जो एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हुए सांझे तौर पर कविताएं रचते थे। 

सुषमा ने सामाजिक अवरोधों को तोड़ा
हमारे सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में ङ्क्षलग भेद अभी भी एक प्रमुख समस्या है और महिलाओं को उनके अधिकार मिलने के रास्ते में बहुत-सी अड़चनें आती हैं। 67 वर्षीय सुषमा स्वराज ने इस सामाजिक अक्षमता को चुनौती दी। उन्होंने दुर्जेय सामाजिक अवरोधों से पार पाया। हरियाणा के एक रूढि़वादी परिवार में जन्मी सुषमा ने राज्य सरकार में सबसे युवा कैबिनेट मंत्री से देश की पहली पूर्णकालिक विदेश मंत्री के तौर पर उत्थान किया। किसी भी मानदंड के लिहाज से यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं थी। 

अब अंतर। जयपाल तथा सुषमा झुकाव के लिहाज से अलग विचारधाराओं से संबंध रखते थे लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम दोनों को एक साथ ले आए, हालांकि कुछ समय के लिए, जब आपातकाल के बाद वह जनता पार्टी में थे। मगर अपने राजनीतिक जुड़ावों के कारण दोनों भारत को वैसा बनाने की अपनी प्रतिबद्धताओं से मजबूती से जुड़े थे, जैसा इसे होना चाहिए था। 

जयपाल तथा मैं उल्लेखनीय समय तक संयुक्त आंध्र प्रदेश की राजनीति में सहयात्री रहे। जन महत्व के मुद्दों को जोरदार तरीके से उठाकर राज्य विधानसभा की कार्रवाई में उथल-पुथल मचाने तथा तत्कालीन सरकारों की गलतियों पर ध्यान केन्द्रित करने में हम सबसे आगे थे। विधानसभा में एक कार्यकाल के लिहाज से मुझसे वरिष्ठ होने के नाते राजनीति के प्रारम्भिक वर्षों में, जब मैं 1978 में पहली बार आंध्र प्रदेश विधानसभा में दाखिल हुआ, वह एक तरह से मैत्रीपूर्ण मार्गदर्शक थे। विधानसभा की दिन की कार्रवाई के लिए एजैंडे पर चर्चा करने और उसे निर्धारित करने के लिए हम रोज नाश्ते पर एक-दूसरे के घर में मिलते थे और दिन का अंत मीडिया के लोगों द्वारा अपनी अगले दिन के लिए सुर्खियों हेतु हम दोनों की जांच के साथ होता था कि विधानसभा में हमने जो व्यवधान डाले वे सही थे।

नैतिक-राजनीतिक मूल्यों से समझौता नहीं
यद्यपि वह एक सामंती परिवार में जन्मे थे, जयपाल ने आधुनिक निष्पक्षता तथा अधिकारों पर आधारित एक दृष्टिकोण प्राप्त किया जिसने उनके राजनीतिक जीवन को दिशा दी। उन्होंने कभी भी महत्वपूर्ण नैतिक तथा राजनीतिक मूल्यों से समझौता नहीं किया और न ही उस  राजनीतिक दल तथा उसके नेताओं के खिलाफ आवाज उठाने से संकोच किया जिससे वह संबंधित थे। हम आमतौर पर अपने देश की राजनीति में हो रहे बदलाव तथा विकास के बारे में चर्चा करते थे।

सुषमा राजनीति में मेरी अत्यंत घनिष्ठ मित्र थीं। हमारे बीच भाईचारे का एक ऐसा मजबूत संबंध बन गया जो हर गुजरते दिन के साथ और मजबूत होता गया। जब मैं सुषमा को अपनी श्रद्धांजलि भेंट करने गया तो उनकी बेटी बांसुरी के आंसू फूट पड़े और उसने बताया कि उसकी मां कहा करती थीं कि जब भी वह वेंकैया जी से मिलती हैं तो उनके दिमाग से हर तरह का बोझ उतर जाता है। निर्दयी भाग्य ने इतना प्रेम करने वाली बहन को मेरे हाथों से छीन लिया है। मैं सुषमा की राजनीतिक यात्रा तथा इसके उत्थान के बीच आने वाले उतार-चढ़ावों से जुड़ा रहा। 1998 में जब मैं कर्नाटक का प्रभारी था, वह कर्नाटक में बेल्लारी से चुनाव लडऩे के मेरे सुझाव पर तुरंत सहमत हो गईं और बाद में जब मैं पार्टी की ओर से दिल्ली का प्रभारी था, उन्होंने दिल्ली की मुख्यमंत्री बनना स्वीकार किया। वह विजय तथा पराजय दोनों में दृढ़ तथा खुशमिजाज थीं। 

सुषमा स्वराज ने खुद को भारतीय जनता की लाडली बना लिया क्योंकि उन्हें भारतीय संस्कृति के प्रतिमान तथा हमारे देश के मूलभूत मूल्यों की सच्ची प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता था। उनका पहरावा, उनका व्यवहार, उनका शब्दों का चयन व उन्हें प्रकट करने का तरीका, उनकी भावनात्मक गर्मजोशी तथा लगाव, उनकी विनम्रता, वरिष्ठों तथा बड़ों के लिए प्रदॢशत उनका सम्मान, अन्यों को चोट पहुंचाए बिना बोलने की ताकत ने सुषमा को आधुनिक काल के सर्वाधिक मिलनसार राजनीतिज्ञों में से एक बना दिया था, जिन्हें दूसरी पाॢटयों के नेताओं तथा लोगों से सम्मान तथा प्रशंसा मिली। 

प्रभावशाली वक्ता थे जयपाल व सुषमा
जयपाल तथा सुषमा दोनों ही प्रतिभाशाली वक्ता थे। जयपाल की ताकत अंग्रेजी भाषा पर उनका पांडित्य तथा असामान्य प्रभुत्व था। सुषमा उल्लेखनीय स्पष्टता के साथ अपनी भावना को प्रकट करती थीं, उनकी हिंदी त्रुटिहीन थी और उन्हें संस्कृत तथा भारतीय संस्कृति की व्यापक जानकारी थी। दोनों को ही संसद में ध्यानपूर्वक सुना जाता था। जयपाल तथा सुषमा को जो कीॢत प्राप्त हुई, उसके वे हकदार थे। वे दोनों राजनीतिज्ञों के उस समूह से संबंधित थे जिनकी मजबूत आस्था उनकी जानकारी तथा समृद्ध अनुभव पर आधारित थी। यदि कोई उनके भावपूर्ण, तर्कशील तथा जोशीले भाषणों को सुने तो वे युवा राजनेताओं के लिए प्रेरणास्रोत हो सकते हैं। आज उनकी आवाजें चुप हो गई हैं। वे शारीरिक रूप से हमारे साथ नहीं हैं। यद्यपि उनकी उपस्थिति महसूस की जा सकती है, यदि कोई उनके भाषणों तथा भावपूर्ण लेखों को पढ़े। वे आने वाले कई वर्षों तक प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।-एम. वेंकैया नायडू   

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