कश्मीर को एक ‘राजनेता’ की जरूरत है न कि ‘नौकरशाह’ की

Edited By ,Updated: 25 Aug, 2020 05:39 AM

kashmir needs a  politician  and not a  bureaucrat

जम्मू -कश्मीर में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम हुआ है। जहां पर मुख्यधारा की विशेष राजनीतिक पाॢटयों ने आर्टीकल 370 तथा राज्य के दर्जे की वापसी की मांग को लेकर हाथ मिलाए

जम्मू -कश्मीर में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम हुआ है। जहां पर मुख्यधारा की विशेष राजनीतिक पाॢटयों ने आर्टीकल 370 तथा राज्य के दर्जे की वापसी की मांग को लेकर हाथ मिलाए हैं। पिछले वर्ष 5 अगस्त को केंद्र ने सेना की संख्या को बढ़ाकर कश्मीर के नेताओं को हिरासत में लिया था। केंद्र ने आर्टीकल 370 तथा 35ए को निरस्त कर राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। सर्वोच्च न्यायालय में इसकी संवैधानिकता को लेकर कई याचिकाएं पैंडिंग पड़ी हुई हैं। 

पिछले एक वर्ष के दौरान ऐसा पहली बार है कि कुछ राजनीतिक गतिविधियों का संकेत मिला है। मार्च में नैकां नेता डा. फारूक अब्दुल्ला को छोड़ा गया था, मगर महबूबा मुफ्ती तथा अन्य कुछ नेता अभी भी हिरासत में हैं। मानवाधिकार को लेकर इस मुद्दे ने अन्तर्राष्ट्रीय जगत का ध्यान केंद्रित करवाया था। ऐसे हालात में शनिवार को डाक्टर अब्दुल्ला की अन्य राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय पाॢटयों जिसमें कांग्रेस तथा पी.डी.पी. राजनीतिक महत्ता रखती हैं, के साथ पहली बैठक के बाद बयान जारी किया गया था।

संयुक्त बयान में कहा गया ‘‘हम सभी आर्टीकल 370, 35ए, जम्मू-कश्मीर के संविधान तथा राज्य के दर्जे की वापसी के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम एकमत होकर दोहराते हैं कि हमारे बिना यहां पर कुछ भी नहीं।’’ इन पार्टियों ने एक संयुक्त अभियान चलाने का भी संकेत दिया। इसके अलावा पहली बार 2 प्रतिद्वन्द्वी पी.डी.पी. तथा नैैशनल कान्फ्रैंस एक प्लेटफार्म पर इकट्ठे आए हैं ताकि राजनीतिक गतिविधियां शुरू की जा सकें।

दूसरा यह कि राज्य प्रशासन ने कुछ राजनीतिक गतिविधियों को चलाने के लिए अनुमति प्रदान की है, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण कदम है। कुछ दिन पूर्व फारूक अब्दुल्ला को कोई भी बैठक आयोजित करने की अनुमति नहीं दी गई थी। मगर जब केंद्र ने कोर्ट को सूचित किया कि सभी नेता स्वतंत्र हैं, तब अब्दुल्ला ने शनिवार को बैठक बुलाई। अब्दुल्ला ने दावा किया है कि केंद्र सरकार विपक्ष को बांटने की कोशिश में है, तभी तो इसने कुछ नेताओं को रिहा किया है तथा कुछ को अभी भी हिरासत में रखा है। 

नैकां अध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला, पी.डी.पी. अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती, कांग्रेस के राज्य अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर, माकपा महासचिव एम.वाई. तरिगामी, पीपुल्स कांफ्रैंस चेयरमैन सज्जाद गनी लोन तथा उपाध्यक्ष आवामी नैशनल कान्फ्रैंस मुजफ्फर शाह ने बैठक में भाग लिया। महबूबा मुफ्ती जोकि अभी भी हाऊस अरैस्ट हैं, ने अब्दुल्ला के समर्थन में ट्वीट किया। अब सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र सरकार आर्टीकल 370 जोकि भाजपा के कोर एजैंडा का एक हिस्सा है, को निरस्त करेगी? राज्य के भाजपा प्रमुख ने तुरंत ही इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि आर्टीकल 370 तथा 35ए की वापसी असंभव है तथा जो पाॢटयां इसे आगे बढ़ा रही हैं, उन्हें सिवाय एक सपने के कुछ भी हासिल नहीं होगा। 

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की नियुक्ति पिछले एक वर्ष में राज्य में दूसरी नियुक्ति है। राजनीतिक गलियारे में इसका स्वागत किया गया है क्योंकि कश्मीर को एक राजनेता की जरूरत है, न कि एक नौकरशाह की। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान, चीन तथा आतंकियों जैसे अन्य बाहरी प्रभाव भी हैं। मनोज सिन्हा के पास इस समय मुख्य रूप से घाटी में शांति स्थापित करना, राजनीतिक श्रेणी से निपटना तथा शीघ्र ही विकास कार्यों को अंजाम देना आदि दायित्व हैं। इसके अलावा परिसीमन की बात भी है।

परिसीमन जिससे भाजपा उम्मीद करती है कि जम्मू में 5 से लेकर 6 और सीटें उपलब्ध हो पाएंगी जोकि अगले वर्ष अक्तूबर तक ही संभव हो पाएगा। अब यह देखना होगा कि पहले परिसीमन या फिर चुनाव पूर्ण होते हैं। दूसरा यह कि जम्मू-कश्मीर में एक राजनीतिक शून्य की स्थिति पैदा हुई है। उसे भी पूरा करने की जरूरत है। तीसरा यहां पर चुनाव आयोजित करने हैं। 

जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियों को शुरू करने का श्रेय मनोज सिन्हा लेना चाहेंगे। सिन्हा जानते हैं कि अन्य राजनीतिक गतिविधियां फिर से अवश्य शुरू होनी चाहिएं। प्रशासन दावा करता है कि पिछले एक वर्ष में कुछ कश्मीरी युवक जिन्होंने आतंकवाद के साथ हाथ मिलाया था, की गिनती लगभग 40 प्रतिशत कम हुई है। कश्मीर के लोगों का न केवल मुख्यधारा के नेतृत्व बल्कि अलगाववादियों की नीतियों के साथ मोहभंग हुआ है। 

भाजपा तथा हाल ही में गठित की गई ‘अपनी पार्टी’ जिसका नेतृत्व पी.डी.पी. विरोधी अल्ताफ बुखारी कर रहे हैं, ही क्रियाशील है। प्रशासन को अब हिरासत में रह रहे राजनीतिज्ञों को रिहा करना चाहिए तथा राजनीतिक गतिविधियों को शुरू करने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए। नई दिल्ली को सुरक्षा बलों द्वारा उत्पीडऩ पर भी अंकुश लगाना होगा। सरकार को शांति स्थापित करनी होगी। राज्य का दर्जा बहाल करना होगा।आशा है कि कश्मीर को लेकर केंद्र अपना दृष्टिकोण बदलेगा।-कल्याणी शंकर 
  

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