कश्मीर को आज चाहिए एक ‘महान दूरद्रष्टा’

Edited By Pardeep,Updated: 13 Oct, 2018 02:25 AM

kashmir needs a  great distinction

जम्मू -कश्मीर किस ओर जा रहा है? यह इस राज्य के लिए किसी भी राजनीतिक समीक्षक हेतु एक सदाबहार प्रश्र है, जिसका उत्तर शायद ही घाटी में घटनाक्रमों तथा गैर घटनाक्रमों की पेचीदगियों के तार्किक आकलन के आधार पर दिया जाता हो।  राज्यपाल सत्यपाल मलिक,...

जम्मू -कश्मीर किस ओर जा रहा है? यह इस राज्य के लिए किसी भी राजनीतिक समीक्षक हेतु एक सदाबहार प्रश्र है, जिसका उत्तर शायद ही घाटी में घटनाक्रमों तथा गैर घटनाक्रमों की पेचीदगियों के तार्किक आकलन के आधार पर दिया जाता हो। राज्यपाल सत्यपाल मलिक, जिन्होंने पी.डी.पी.-भाजपा सरकार के पतन के बाद राज्यपाल शासन लगाए जाने के 2 महीनों पश्चात जम्मू-कश्मीर का प्रभार सम्भाला, एक अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं।

उन्होंने पहले ही एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह बात करनी शुरू कर दी है और कहा है कि उनका काम वार्ता के लिए जगह बनाना है। मगर कैसे? यह एक आसान कार्य नहीं है, यदि कोई आगे रोडमैप के बारे में सुनिश्चित नहीं है। वर्षों के दौरान केन्द्र लोगों के बीच अपना एजैंडा व्यापक तौर पर फैलाते हुए मुख्य रूप से राज्य में चुनिन्दा राजनीतिक समूहों के साथ ‘स्वायत्तता’ तथा अन्य संबंधित मुद्दों को लेकर वार्ता करता रहा है। नए राज्यपाल ने कम से कम यह संकेत दिया है कि वह युवा कश्मीरियों की मानसिकता जानने के लिए उन तक पहुंच बनाएंगे। मैं समझता हूं कि यह एक सकारात्मक घटनाक्रम होगा। हालांकि यहां समस्या प्रशासन से सभी स्तरों के साथ-साथ लोगों के बड़े वर्गों के बीच विश्वास की बड़ी कमी है। 

एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में सत्यपाल मलिक ने जोर देकर कहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री से निर्देश मिला है कि यहां कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए, केवल लोगों तक पहुंच बनाकर उनकी समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए। निश्चित तौर पर यह काफी कुछ कहता है। मेरा बिंदु यह है कि राज्यपाल कैसे लोगों तक पहुंच बना सकते हैं जो आंतरिक तथा सीमा पार की विभिन्न निहित हितों वाली अलग-अलग तरह की राजनीति के बल पर इठलाते हैं, बिना जवाबी राजनीतिक पत्ते खेलते हुए। घाटी की राजनीति में पहियों के भीतर स्वाभाविक पहिए हैं और कोई भी इस बारे सुनिश्चित नहीं हो सकता कि कौन-सा पहिया किसकी शह पर कार्य कर रहा है और किस उद्देश्य तथा किसके लाभ के लिए। यह राज्य की मुख्य धारा पार्टियों नैशनल कांफ्रैंस तथा पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) के बारे में भी सच है। ऐसी स्थिति में, चाहे कोई निजी तौर पर पसंद करे अथवा नहीं, भारत का सर्वश्रेष्ठ दाव अभी भी फारूक अब्दुल्ला और उनकी टीम है।

राज्यपाल यह प्रभाव देते हैं कि वह कुछ दार्शनिक छुअन के साथ हवा में बातें कर रहे हैं। वह कहते हैं कि हमने आतंकवाद को मारना है, आतंकवादियों को नहीं...लोगों की नजरों में आतंकवाद को बेकार बनाना है। निश्चित तौर पर सत्यपाल मलिक के विचार नेक इरादे वाले हैं मगर पहले वह कश्मीरी राजनीति की हठी प्रकृति के चंगुल में आ गए हैं। वह यह दावा करने में निश्चित तौर पर सही हैं कि  ‘भारत की गलतियों ने जम्मू-कश्मीर को अलग-थलग कर दिया है।’ सच है, मगर क्या हम एक ही प्रयास में कश्मीर में इतिहास की प्रक्रिया को पलट सकते हैं? निश्चित तौर पर नहीं।  यह अच्छे प्रशासन तथा उचित प्रक्रिया की एक बहुत लम्बी तथा थकाऊ प्रक्रिया है। हमें यह भी समझने की जरूरत है कि दोषारोपण का यह खेल हमें कहीं नहीं ले जा सकता। बड़े दुख की बात है कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह आदत है कि वह अपनी गलतियों तथा वायदे पूरे न करने को छिपाने के  लिए अपने पूर्ववर्तियों को दोष देते हैं। एक सक्षम नेता कारगुजारी की अपनी ताकत से आगे बढ़ता है न कि अन्य पार्टियों तथा नेताओं को दोष देकर। नकारात्मकता की राजनीति एक सर्वांगीण जीवंत राष्ट्र का निर्माण नहीं करती। 

अफसोस की बात है कि प्रधानमंत्री मोदी घाटी में ऐसा करने से परहेज किए हुए हैं। हालांकि मैं उनके लिए  अफसोस प्रकट करता हूं कि वह वहां अपनी लोकप्रियता को भुनाने तथा 2015 की बाढ़ के कारण हुए विनाश के मद्देनजर लोगों को निराशा से निकालने के लिए किए गए शानदार कार्य के बाद घाटी में अपना मजबूत आधार बनाने में असफल रहे। इसके लिए उन्हें लोगों तथा उनकी समस्याओं में खुद को सक्रिय रूप से शामिल करने की बजाय विदेशी दौरों के साथ अपने अत्यधिक लगाव तथा खुद को दोष देना चाहिए। पीछे देखें तो एक ऐसा समय था  जब केन्द्र ने स्थानीय नेताओं की चापलूसी करना चुना, उनकी तथा स्थानीय लोगों की साख को समझे बिना। इसने भ्रष्टाचार में बढ़ौतरी तथा कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य को चलाने के लिए नीतियों तथा नियमों के अभाव की भी अनदेखी की। अतीत में की गई गलतियों से सबक लेते समय वर्तमान राज्यपाल को न केवल घाटी में बल्कि राज्य के जम्मू तथा लद्दाख क्षेत्रों में भी लोगों की मानसिकता को समझना होगा। उनको तेजी से बढ़ती हुई कट्टरता तथा आतंकवाद पर भी ध्यान देना होगा। उतना ही प्रासंगिक घाटी में कश्मीरी पंडितों का भविष्य है। 

यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि कट्टरपंथी अतीत में शताब्दियों के दौरान धर्मांतरित किए गए लोगों को राज्य की संस्कृति से दूर करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि उन्हें एक पैन-इस्लामिक संस्कृति का हिस्सा बना सकें। यह दृष्टांत अपने आप में एक बड़ी विडम्बना है क्योंकि घाटी के अधिकतर मुसलमानों का इतिहास अन्य मतों का सम्मान करना रहा है। इसके बावजूद कि अतीत में मुस्लिम शासकों ने इस रुझान का कड़ाई से विरोध किया था, सूफीवाद की समृद्ध परम्परा के साथ-साथ ऋषि-मुनियों ने जमीनी स्तर पर एक स्वस्थ तथा बहुस्तरीय धार्मिक एकरूपता उपलब्ध करवाई। दरअसल घाटी में आज हम जो वैमनस्य की भावना देख रहे हैं और जो व्यक्ति से व्यक्ति के स्तर पर धर्म से प्रभावित लगती है, काफी हद तक अर्थव्यवस्था के साथ मिश्रित हो गई है। यहां तक कि साम्प्रदायिक मामलों में भी पंडितों तथा मुसलमानों के बीच आर्थिक अंतर आमतौर पर प्रदर्शित किए जाते रहे। कोई हैरानी की बात नहीं कि घाटी में राजनीति मुसलमानों  तथा गैर-मुसलमानों के गिर्द केन्द्रित होने लगी। राजनीति के बीजों ने तब अत्यंत कड़वे साम्प्रदायिक फल  देने शुरू किए। नि:संदेह इस स्थिति के लिए ब्रिटिश भी कुछ जिम्मेदार थे। राज्य तथा केन्द्रीय नेताओं ने इसके बाद इस पेचीदा स्थिति को और खराब बना दिया। 

सत्यपाल मलिक ने कहा है कि उनकी प्राथमिकता ‘विश्वास का एक माहौल बनाना है’ जिसमें केन्द्र मुख्यधारा पाॢटयों के साथ और यहां तक कि हुर्रियत के साथ भी वार्ता शुरू कर सकता है यदि वे ‘पाकिस्तान को शामिल करने की शर्त के बिना’ मेज पर आ जाएं। यह एक आसान कार्य नहीं होगा। हम हुर्रियत नेताओं के पाकिस्तान के प्रति झुकाव, हवाला राशि से संबंधों तथा पैन-इस्लामिक मानसिकता से वाकिफ हैं जो ‘कश्मीरियत’ से रहित है। जिस व्यक्ति को प्रशासन चलाना है उसे कश्मीरियों की मानसिकता को समझना होगा। घाटी में मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिकता का वर्तमान उभार दर्शाता है कि उनकी मानसिकता में एक बड़ा लौटाव आया है। 

दरअसल निरंतर दुष्प्रचार तथा पाकिस्तान से हथियारों का समर्थन मिलने के कारण आतंकवादी संगठन व्यवहार के नियमों को त्याग रहे हैं और इसके लिए उन्हें बंदूकधारी आतंकी मजबूर कर रहे हैं। इसलिए घाटी के मुसलमान शायद ही स्वतंत्रतापूर्वक आवाज उठा सकते हैं। वह कश्मीर की पेचीदगियों से खुद को वाकिफ करने के लिए जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन की शानदार पुस्तक ‘माई फ्रोजन टर्बुलैंस इन कश्मीर’ पढ़ कर अच्छा करेंगे। यदि वह अपने पूर्ववर्ती एन.एन. वोहरा से भी स्थिति बारे जानकारी हासिल करें तो बेहतर होगा, जो एक सर्वकालिक महान प्रशासक रहे हैं। वोहरा जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के तौर पर जब कभी भी अपने संस्मरण लिखने का निर्णय करते हैं तो मुझे आशा है कि वह हर किसी के लिए एक सबक उपलब्ध करवाएंगे कि कश्मीर पर कैसे शासन नहीं करना है। इस बीच राज्यपाल मलिक को मेरी शुभेच्छाएं। वह एक तीक्ष्ण राजनीतिज्ञ हैं। हालांकि कश्मीर को आज एक महान दूरद्रष्टा की जरूरत है, जो लोगों को आतंकवाद से एक आॢथक तथा अच्छे प्रशासन के साथ-साथ वास्तविक लोकतंत्र की ओर मुडऩे में मदद कर सकें, जो भारत के राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक वातावरण में फिट हो सकें। यह केन्द्रीय तथा राज्य के नेताओं के लिए आगे चुपचाप करने वाला कार्य होगा।-हरि जयसिंह

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!