कश्मीर मसला आंतरिक तौर पर भी हल करने की जरूरत

Edited By ,Updated: 20 Feb, 2019 04:45 AM

kashmir problem needs to be resolved internally

जहां कश्मीर में आतंकवादी हमलों को प्रायोजित करने के लिए पड़ोसी पाकिस्तान को सबक सिखाने की जरूरत है वहीं आंतरिक तौर पर कश्मीर समस्या का समाधान करने की भी जरूरत है। कोई संदेह नहीं कि राज्य में युवाओं को कट्टर बनाने सहित कई ऐसी चीजें हैं जिन पर ध्यान...

जहां कश्मीर में आतंकवादी हमलों को प्रायोजित करने के लिए पड़ोसी पाकिस्तान को सबक सिखाने की जरूरत है वहीं आंतरिक तौर पर कश्मीर समस्या का समाधान करने की भी जरूरत है। कोई संदेह नहीं कि राज्य में युवाओं को कट्टर बनाने सहित कई ऐसी चीजें हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। यह सुनकर निश्चित तौर पर अफसोस हुआ कि यह एक स्थानीय युवा आत्मघाती हमलावर था, जिसने पुलवामा में जवानों पर हमला किया। इस पर और अधिक जांच करने की जरूरत है कि क्यों भटके हुए युवा उग्रवाद तथा आतंकवाद की ओर आकॢषत हो रहे हैं। 

कट्टरवाद के कई कारण
कुछ समय से इस बात को लेकर तीखी बहस चल रही है कि क्यों बड़ी संख्या में शिक्षित युवा दक्षिण तथा उत्तर कश्मीर के कुछ हिस्सों में आतंकवादियों में शामिल हो रहे हैं। जैसा कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा का कहना है, कट्टरवाद का कोई एक कारण नहीं है बल्कि यह कई चीजों का मिश्रण है। इसमें पाकिस्तान की भूमिका, वहाबीकरण तथा इस्लामिक कट्टरवाद शामिल हैं। अलग-थलग होने के साथ-साथ पाकिस्तान की ओर से छद्म युद्ध भी वजहें हैं जिस कारण जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन युवाओं को भर्ती कर रहे हैं। 

पाकिस्तान की इंटर सर्विसिज इंटैलीजैंस (आई.एस.आई.) प्रायोजित दुष्प्रचार तथा असहनशील धार्मिक व वैचारिक कथानक ‘कश्मीरियत’ के आदर्शों को कुरेदने और फिर धीरे-धीरे युवाओं को जेहादी संस्कृति की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसा कि पूर्व सेना प्रमुख जन. विक्रम सिंह ने अपने एक हालिया लेख में जानकारी दी थी कि 2017 में 131 युवाओं के विभिन्न आतंकवादी संगठनों में शामिल होने के मुकाबले यह संख्या 2018 में बढ़ कर 200 से अधिक हो गई। गत कुछ वर्षों के दौरान इस्लामिक स्टेट तथा अल कायदा की विचारधाराओं से संबंधित आई.एस.आई.एस. कश्मीर तथा अन्सार गजवत-उल-हिन्द जैसे कुछ नए आतंकवादी संगठन भी पैदा हुए हैं। 

निराशा से बढ़ रहा कट्टरवाद
विशेषज्ञों का कहना है कि ये संघर्ष क्षेत्र से आने वाले बच्चे हैं जिन्होंने बड़े होने के दौरान सड़कों-गलियों में बंदूकें तथा राइफलें देखी हैं। उन्होंने केवल ङ्क्षहसा तथा संघर्ष देखे जिन्होंने उनसे उनका बचपन छीन लिया। दूसरी चीज है शैक्षणिक अवसरों का अभाव। तीसरे उन्हें पर्याप्त नौकरियां नहीं मिल रहीं। रॉ (रिसर्च एंड एनैलिसिज विंग) के पूर्व प्रमुख ए.एस. दौलत महसूस करते हैं कि वे इसलिए कट्टरवाद की ओर मुड़ रहे हैं क्योंकि वे महसूस करते हैं कि उन्हें कोई आशा नहीं। जमात-ए-इस्लामी सब कुछ व्यवस्थित तरीके से करना चाहती है। उसे पी.डी.पी. का भी समर्थन हासिल है, जिसने जमात के समर्थन से चुनाव जीते थे। अब पी.डी.पी. को लेकर जमात में बहुत निराशा है। सोशल मीडिया आतंकवादियों के मुख्य औजारों में से एक है जिसका इस्तेमाल वे अपनी विचारधारा का प्रचार करने तथा घाटी में युवाओं के मनों को भ्रष्ट करने के लिए करते हैं। 

इस रुझान को पलटने का एकमात्र रास्ता उन्हें अपने करीब लाना है। आवश्यक जरूरत अपने भीतर झांकने तथा चीजों को सही करने की है क्योंकि अभी भी बहुत देर नहीं हुई है। यह निराशाजनक है कि एक कश्मीरी बच्चे ने पुलवामा में आत्मघाती हमलावर बनने का निर्णय लिया। यह लड़का उनमें से एक है जो यह महसूस करते हैं कि कश्मीर में कोई आशा नहीं बची। उसका पिता एक किसान है और कुछ समय पहले लड़के की टांग में गोली लगी थी, सम्भवत: सड़कों पर पत्थरबाजी करते समय। इसलिए उसने खुद को उड़ाने का निर्णय लिया। यह हमला युवाओं के अत्यंत अलग-थलग होने को दर्शाता है। 

राजनीतिक दल भी आगे आएं
तुरंत जरूरत है एक प्रत्युत्तर कथानक की और सरकार के साथ-साथ राजनीतिक दलों को भी प्राथमिकता के आधार पर इसका समाधान करना चाहिए। कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने मुझे बताया था कि शाम को 6 बजे के बाद गांवों में कोई हलचल नहीं होती और इसके समाधान के लिए उन्होंने सिनेमा, रेडियो शोज तथा कुछ खेल गतिविधियों की शुरूआत की है ताकि युवाओं को व्यस्त रखा जा सके। यह एक स्वागतयोग्य कदम है कि राज्यपाल ने पहले ही प्रत्युत्तर कथानक के लिए कुछ समूहों का गठन कर दिया है और कट्टरवाद से निपटने के लिए मौलवियों से बात कर रहे हैं ताकि उन्हें साथ लाया जा सके। राज्यपाल मलिक महसूस करते हैं कि मुख्यधारा के नेता जिम्मेदारी नहीं ले रहे। अत्यंत कट्टर लोग अधिक नहीं हैं और उन्होंने सुरक्षा बलों को गृहजनित कट्टरवाद की समस्या पर ध्यान देने को कहा है। उन्हें चिंता है कि युवा ‘जन्नत में जाने का है’ भाषा बरत रहे हैं। 

हमें सबसे पहले अपने घर को व्यवस्थित करना होगा। अधिक बंदूकें उत्तर नहीं हैं, मगर कुछ अन्य प्रयास की जरूरत है। दौलत जैसे कश्मीर विशेषज्ञ महसूस करते हैं कि यदि उचित कदम उठाए जाएं तो कट्टरवाद के रुझान को पलटा जा सकता है। पहले कदम के तौर पर केन्द्र डा. फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और यहां तक कि हर्रियत जैसे राज्य के नेताओं से बात कर सकता है क्योंकि आप वास्तव में आत्मघाती हमलावरों से बात नहीं कर सकते। अगली चीज एक लोकप्रिय सरकार की नियुक्ति होनी चाहिए क्योंकि एक लोकतांत्रिक सरकार ही राज्य में चीजों को निर्धारित करने के लिए सही उत्तर है न कि राज्यपाल शासन। सबसे बड़ी बात, तुरंत जरूरत लोगों की भावनाओं को शांत करने तथा राज्य में सामान्य माहौल वापस लाना है। संक्षेप में, जरूरत है एक टिकाऊ तथा दीर्घकालिक कश्मीर नीति की। (यह लेखिका के निजी विचार हैं।)-कल्याणी शंकर
 

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!