केजरीवाल को चार मुख्यमंत्रियों का समर्थन आम चुनाव की ओर बढ़ रहे देश में एक महत्वपूर्ण घटना

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jun, 2018 03:49 AM

kejriwal s support for four chief ministers

दिल्ली में उप-राज्यपाल निवास के समक्ष अभूतपूर्व धरने पर बैठे दिल्ली के मुख्यमंत्री को 4 गैर-भाजपा एवं गैर-कांग्रेस मुख्यमंत्रियों द्वारा समर्थन दिया जाना अगले आम चुनाव की ओर बढ़ रहे देश में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए...

दिल्ली में उप-राज्यपाल निवास के समक्ष अभूतपूर्व धरने पर बैठे दिल्ली के मुख्यमंत्री को 4 गैर-भाजपा एवं गैर-कांग्रेस मुख्यमंत्रियों द्वारा समर्थन दिया जाना अगले आम चुनाव की ओर बढ़ रहे देश में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए असुखद सवालों के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपना रोष धरना उठा लिया है। डूबते को तिनके का सहारा की तरह उन्होंने भी आई.ए.एस. अधिकारी संघ द्वारा दिलाए गए इस विश्वास का सहारा ढूंढ लिया कि दिल्ली की सरकार हड़ताल पर नहीं है। अफसरों के इसी बयान से ‘आप’ ने अपनी इज्जत बचाने का प्रयास किया। फिर भी पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी, कर्नाटक से एम. कुमारस्वामी, आंध्र प्रदेश से चंद्रबाबू नायडू और केरल से पिनरई विजयन, इन चारों मुख्यमंत्रियों द्वारा दिए गए समर्थन ने ऐसे राजनीतिक संकेत दिए हैं जो एक वर्ष से भी कम दूर रह गए आम चुनाव  के परिणामों पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। 

केजरीवाल का समर्थन करते हुए इन मुख्यमंत्रियों ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि वह राज्यों के मामलों में बेवजह टांग न अड़ाए। केंद्र द्वारा राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप को लेकर इन मुख्यमंत्रियों में से हर किसी को कुछ न कुछ शिकायत है। इन शिकायतों में से कुछ इस प्रकार हैं-राज्यों को दिए जाने वाले कोष का आबंटन, परियोजनाओं का आबंटन, विभिन्न स्कीमों के अंतर्गत मिलने वाले कोष को प्रयोग करने के संबंध में शर्तें लगाना या ऐसी स्कीमें जबरदस्ती थोपना जो सभी राज्यों के लिए उपयुक्त न हों। इस मुद्दे को आम चुनाव से पूर्व गैर- भाजपा मुख्यमंत्रियों द्वारा जोर-शोर से उठाए जाने की संभावना है। 

दिल्ली में अगले चुनाव के लिए एजैंडे को सफलतापूर्वक बदल देने वाले केजरीवाल के साथ इन चारों मुख्यमंत्रियों का हाथ मिलाना कांग्रेस के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए। यह पार्टी केजरीवाल के हर कदम की आलोचना करती रही है और दिल्ली में ‘आप’ को अपनी मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती है। अब जब गैर-भाजपा पार्टियों ने हाथ मिला लिया है और ममता बनर्जी के नेतृत्व में तीसरा मोर्चा उभर रहा है तो कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई है। ऐसी स्थिति राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को मजबूर कर देगी कि यदि वह गैर-भाजपा गठबंधन का अंग बने रहना चाहती है तो अपनी रणनीति पर नए सिरे से चिंतन-मनन करे। 

उल्लेखनीय है कि जो चारों मुख्यमंत्री केजरीवाल के समर्थन में आए हैं उनमें से एक वाम मोर्चे से संबंधित हैं, हालांकि पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस और वाम मोर्चे के बीच हमेशा तलवारें खिंची रहती हैं। इन चारों के एकजुट होने का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि उनमें से कम से कम 2 ऐसे हैं जो किसी न किसी पड़ाव पर भाजपा के सहयोगी रह चुके हैं। राजग सरकार के विरुद्ध बढ़ते रोष और विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव में इसकी कमजोर होती कारगुजारी के चलते अगले आम चुनाव से पहले ही राजनीतिक तूफान खड़ा होने के आसार बन रहे हैं। यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण होगी कि अपने मतभेदों के बावजूद इस गठबंधन के सहयोगी किस तरह मिलकर चल पाएंगे। इसी प्रकार भाजपा को भी अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ बेहतर ढंग से पेश आने की कला सीखनी होगी। 

तेलगू देशम पार्टी पहले ही राजग से बाहर निकल चुकी है और शिवसेना विभिन्न मुद्दों पर भाजपा के नाक में दम किए हुए है। यहां तक कि शिरोमणि अकाली दल भी भाजपा द्वारा मनमाने ढंग से लिए जा रहे फैसलों से असुखद महसूस कर रहा है। इन स्थितियों के चलते भाजपा अध्यक्ष अमित शाह स्पष्ट तौर पर गठबंधन सहयोगियों के साथ संबंध सुधारने को प्रेरित हुए हैं। वह उनके साथ मीटिंगें कर रहे हैं और अगले चुनाव के लिए पहले ही रणनीति तैयार कर रहे हैं। जहां तक गैर-भाजपा गठबंधन का ताल्लुक है, उसके पास ऐसा कोई करिश्माई नेता नहीं जो 20 से भी अधिक ऐसी पाॢटयों का नेतृत्व कर सके जिनमें वह कांग्रेस भी शामिल है जो अभी तक इस भ्रम में फंसी हुई है कि इसके हाथों में नेतृत्व देने के सिवाय विपक्षी दलों के पास अन्य कोई विकल्प नहीं। यदि यह सभी गैर-भाजपा पार्टियों को साथ लेकर चलने के योग्य न हो पाई तो इसे अपनी भूमिका फिर से निर्धारित करने के लिए नई रणनीति गढऩी होगी।-विपिन पब्बी

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