लाखों लोगों को घरों में बंद कर उनकी ‘किस्मत का फैसला’ नहीं किया जा सकता

Edited By ,Updated: 08 Aug, 2019 03:16 AM

lakhs of people cannot be locked and their fate decided

‘‘जब तक दिल और दिमाग में से कोई एक भी बाकी है, तब तक तो मैं इस कदम का समर्थन नहीं कर सकता!’’ बात कश्मीर की हो रही थी। बात एक युवा साथी से हो रही थी। बात इसलिए जरूरी थी कि वह मेरे बयान से बहुत दुखी था। गाली-गलौच की जगह बात इसलिए संभव थी कि वह मेरी...

‘‘जब तक दिल और दिमाग में से कोई एक भी बाकी है, तब तक तो मैं इस कदम का समर्थन नहीं कर सकता!’’ बात कश्मीर की हो रही थी। बात एक युवा साथी से हो रही थी। बात इसलिए जरूरी थी कि वह मेरे बयान से बहुत दुखी था। गाली-गलौच की जगह बात इसलिए संभव थी कि वह मेरी  इज्जत करता था लेकिन कश्मीर मेंं 370 को समाप्त करने और जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले पर मेरे विरोध से बहुत हैरान था। उस बातचीत के दौरान मैं यह तीखा वाक्य बोलने पर मजबूर हुआ। ‘‘कमाल है भाई साहब, हर बात के लिए मोदी जी को दोष देना तो ठीक नहीं है।’’

मैंने सहमति जताई: ‘‘कश्मीर समस्या मोदी जी या भाजपा की बनाई हुई नहीं है। अगर पहला दोष देना हो तो कांग्रेस को देना होगा, जिसने इस समस्या को उलझने दिया, जिसने जम्मू-कश्मीर में बार-बार पिट्ठू सरकारें बनवाईं। दोष राजीव गांधी को देना होगा, जिन्होंने 1987 में चुनाव के नाम पर कश्मीर की जनता के साथ धोखा किया, दोष मनमोहन सिंह की सरकार को देना होगा जिन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के शासन में शुरू की गई अच्छी पहल का सत्यानाश कर दिया। दोष फारूक अब्दुल्ला और मुफ्ती मोहम्मद सईद जैसे नेताओं को देना होगा जिन्होंने कश्मीरियों की भावनाओं से खिलवाड़ कर राजनीतिक दुकानदारी की।’’ 

अब वो सहज हुआ: ‘‘सही कहा आपने! फिर तो आपको सरकार के इस कदम का समर्थन करना चाहिए। पूरा देश इस निर्णय का स्वागत कर रहा है लेकिन आप विरोध क्यों कर रहे हो?’’ 

समस्या और उलझेगी या सुलझेगी
मेरा जवाब था: ‘‘इसमें कोई शक नहीं कि आज देश का जनमत सरकार के इस फैसले के साथ खड़ा है लेकिन सवाल यह है कि इस निर्णय से पुरानी सरकारों द्वारा बनाई गई यह समस्या पहले से ज्यादा उलझेगी या सुलझेगी? अगर हमारी चिंता सिर्फ लोकप्रियता और वोटों की नहीं बल्कि राष्ट्रहित की है तो हमें कई बार जनमत के खिलाफ भी खड़ा होना पड़ेगा। एक सच्चे देशभक्त का धर्म है कि वह देशवासियों को ऐसे बड़े फैसले का आगा-पीछा समझाए, यह सोचे कि इस फैसले का अगले 10 साल या 100 साल तक क्या असर होगा? अगर इसके लिए चार गालियां भी सुननी पड़ें तो सिर झुका कर उसके लिए भी तैयार रहना चाहिए।’’ ‘‘तो आपकी परेशानी क्या पूरे देश द्वारा मोदी जी को वोट देना है? क्या उनका अधिकार नहीं है कि वे अपने मैनीफैस्टो के हिसाब से यह बड़ा फैसला ले सकें? इसमें असंवैधानिक क्या है?’’ 

मैं वकीलों वाली बहस में ज्यादा उलझना नहीं चाहता था इसलिए मैंने छोटा-सा जवाब दिया: ‘‘चुनी हुई सरकार को अपनी समझ के हिसाब से फैसले लेने का अधिकार है लेकिन संविधान के दायरे से बाहर जाकर नहीं। हमारा संविधान साफ कहता  है कि 370 में परिवर्तन करने से पहले जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश जरूरी है। किसी राज्य की सीमा या उसका दर्जा बदलने से पहले वहां की विधानसभा में चर्चा जरूरी है। ये दोनों बातें नहीं हुईं। इसलिए सरकार का कदम संविधान सम्मत नहीं है। लेकिन यह फैसला तो सुप्रीम कोर्ट को करना है। मेरा असली एतराज सिर्फ कानूनी और संवैधानिक नहीं है।’’ ‘‘फिर आपके एतराज की असली वजह क्या है?’’ 

निर्णय लोकतंत्र की भावना के खिलाफ 
मैंने अपनी बात समझाई: ‘‘मेरी असली चिंता यह है कि सरकार का यह निर्णय हमारे देश की विरासत, हमारे लोकतंत्र की भावना और राष्ट्र निर्माण की हमारी समझ के खिलाफ है। अगर सरदार पटेल ने 370 का फार्मूला बनाया था तो इसलिए नहीं कि उनके मन में कोई कमजोरी थी। अगर जयप्रकाश नारायण ने कश्मीर में जोर-जबरदस्ती की बजाय शांति और बातचीत का रास्ता सुझाया था तो इसलिए नहीं कि उनका देश प्रेम कमजोर था। 

अगर एक जमाने में 370 के खिलाफ  बोलने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इंसानियत जम्हूरियत और कश्मीरियत की बात की तो इसलिए नहीं उनकी समझ कमजोर थी। इन सब राष्ट्र निर्माताओं की यह समझ थी कि कश्मीर को भारत के साथ भावनात्मक रूप से जोडऩा होगा और उसके लिए लाठी-गोली से काम नहीं चलेगा। उन्हें एहसास था कि कश्मीर की जनता और शेष भारत की जनता के मन के बीच एक खाई है। वे जानते थे कि अनुच्छेद 370 इस खाई के आर-पार खड़े भारत के नागरिकों को जोडऩे का एक सेतु है। वे समझते थे कि इस खाई को पाटे बिना पुल को तोड़ देना राष्ट्रहित में नहीं है।’’ ‘‘यानी कि आप नहीं मानते कि 370 खत्म करने से कश्मीर और बाकी भारत का एकीकरण होगा?’’

खाई और बढ़ेगी 
मैंने उसका हाथ थामा और कहा ‘‘देखो! कश्मीर और शेष भारत का एकीकरण हो जाए तो इससे खूबसूरत और  क्या होगा? अगर अनुच्छेद 370 खत्म करने से यह एकीकरण हो जाए तो मैं खुशी से उसका समर्थन करूंगा। मैं तो कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानता हूं, इसीलिए तो सरकार के निर्णय का विरोध कर रहा हूं। इस फैसले से कश्मीर की जनता और शेष भारत के बीच की खाई खत्म होने की बजाय और ज्यादा बढ़ जाएगी। 

कश्मीरी अलगाववादियों और पाकिस्तान समॢथत आतंकवादियों को तो इस निर्णय से बहुत खुशी होगी क्योंकि अब उनका धंधा पहले से ज्यादा चल निकलेगा। वह तो चाहते थे कि भारत सरकार कुछ ऐसा करे जिससे कश्मीर की जनता के मन में भारत के प्रति गुस्सा और बढ़े, बच्चा-बच्चा भारत विरोधी नारे लगाए। अभी तो कश्मीर की जनता की प्रतिक्रिया हमें मीडिया में नहीं दिख रही है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यह निर्णय और इसे लेने का तरीका एक औसत कश्मीरी के मन में अपमान बोध पैदा करेगा, पिछले 70 सालों से घाटी में तिरंगा उठाने वालों का मुंह बंद कर देगा और भारत से आजादी या पाकिस्तान से विलय की बात करने वालों की आवाज पहले से ज्यादा सुनी जाएगी।’’ ‘‘यह तो आपने दिमाग की बात कही। दिल की क्या बात है जिसका आपने शुरू में जिक्र किया?’’ 

‘‘पता नहीं अभी के माहौल में कौन दिल की आवाज सुनना चाहेगा लेकिन सच कहूं तो मेरा मन इसकी गवाही नहीं देता कि हम लाखों लोगों को अपने घरों में बंद कर उनकी किस्मत का फैसला करें और फिर अपने आप को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भी बताएं। अगर हम कभी कश्मीर में वह करें जो इसराईल फिलस्तीनियों के साथ करता है, जो इंगलैंड ने आयरलैंड में किया तो उस स्थिति में मैं सिर उठा कर नहीं कह पाऊंगा कि मुझे भारतीय होने में गर्व है। इसलिए मेरा धर्म है कि ऐसा होने से पहले मैं देशवासियों को आगाह करूं, चाहे आप जैसे कुछ साथी कुछ समय के लिए नाराज ही हो जाएं।’’ मेरे युवा साथी की नाराजगी कुछ कम हो गई थी।-योगेन्द्र यादव

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