लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का मामला उलझा

Edited By ,Updated: 03 Jun, 2019 03:46 AM

leader of opposition in the lok sabha confused

ऐसा लगातार दूसरी बार हुआ है कि कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनावों के बाद नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के लिए जरूरी सीटें नहीं जुटा पाई है। नियमों के अनुसार इस पद के लिए किसी पार्टी के पास लोकसभा के कुल 545 सदस्यों की 10 प्रतिशत संख्या होनी चाहिए।...

ऐसा लगातार दूसरी बार हुआ है कि कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनावों के बाद नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के लिए जरूरी सीटें नहीं जुटा पाई है। नियमों के अनुसार इस पद के लिए किसी पार्टी के पास लोकसभा के कुल 545 सदस्यों की 10 प्रतिशत संख्या होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि नेता प्रतिपक्ष का दर्जा कैबिनेट रैंक के मंत्री के बराबर होता है। लेकिन कांग्रेस को निचले सदन में केवल 52 सीटें मिली हैं जो जरूरी संख्या बल से 2 कम हैं।

अब कांग्रेस इस पद की दावेदारी के लिए आर.एस.पी. तथा  केरल कांग्रेस (मणि) और अमरावती से जीते आजाद उम्मीदवार नवनीत रवि राणा जैसे लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए प्रयासरत है। अंतिम निर्णय लोकसभा अध्यक्ष को लेना है। फैसला जो भी हो लेकिन राहुल गांधी इस पद की दौड़ में शामिल नहीं हैं। इस पद के दावेदार पार्टी के दो पूर्व मंत्री शशि थरूर और मनीष तिवारी हैं। ये दोनों प्रखर वक्ता हैं। कांग्रेस संसदीय दल की नई चुनी गई नेता सोनिया गांधी आगामी रणनीति तय करेंगी। 

विदेश सचिव से विदेश मंत्री का सफर
मोदी के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री के तौर पर एस. जयशंकर का शामिल होना एक अप्रत्याशित कदम रहा। मनमोहन सिंह के बाद सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति (सी.सी.एस.) में शामिल होने वाले वह दूसरे लेटरल एंट्री वाले व्यक्ति हैं। मनमोहन सिंह वित्त मंत्री के तौर पर नरसिम्हा राव सरकार में शामिल हुए थे। उनके मंत्रिमंडल में शामिल होने से जे.एन.यू. के दो प्रतिनिधि सी.सी.एस. में पहुंच गए हैं। जे.एन.यू. से आने वाली दूसरी मंत्री हैं निर्मला सीतारमण। 

देवेगौड़ा और लालू के परिवार में कलह
लोकसभा चुनावों में हार का असर  लालू प्रसाद यादव और एच.डी. देवेगौड़ा के परिवारों पर भी पड़ा है। देवेगौड़ा के परिवार से केवल प्रज्जवल रेवन्ना ही चुनाव जीतने में सफल हुए हैं। एच.डी. देवेगौड़ा खुद भी चुनाव हार गए हैं तथा उनके पौत्र निखिल कुमार स्वामी जोकि मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के बेटे हैं, चुनाव हार गए हैं और उन्होंने अपनी हार के लिए देवेगौड़ा को जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि प्रज्जवल ने अपने दादा एच.डी. देवेगौड़ा के लिए हसन की सीट छोडऩे का प्रस्ताव दिया है जोकि देवेगौड़ा का पुराना लोकसभा क्षेत्र है लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया है। उधर बिहार में लालू के बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव में आंतरिक कलह की वजह से राजद  एक भी सीट नहीं जीत पाई। 

लालू यादव की पुत्री मीसा भारती पाटलिपुत्र से चुनाव हार गई और तेजप्रताप के ससुर चंद्रिका राय लालू की लोकसभा सीट सारन से चुनाव हार गए हैं। चुनाव के बाद जब लालू ने जेल में 2 दिन तक खाना खाने से मना कर दिया तो तेज प्रताप यादव ने अपने भाई तेजस्वी यादव को समर्थन देते हुए पत्र लिखा लेकिन सब व्यर्थ रहा क्योंकि पत्र जारी होने से पहले परिणाम घोषित हो चुका था। 

राजस्थान कांग्रेस में अंतर्कलह
लोकसभा चुनाव के बाद राजस्थान में गहलोत और सचिन पायलट समर्थकों के बीच लड़ाई तेज हो गई है। राजस्थान में लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के कारण बहुत से विधायक और मंत्री अशोक गहलोत का इस्तीफा मांग रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी  इस बात से काफी हैरान हैं कि राजस्थान विधानसभा चुनाव जीतने के 6 महीने में ही तस्वीर इतनी कैसे बदल गई। यहां तक कि जोधपुर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत भी चुनाव हार गए जहां भाजपा उम्मीदवार गजेन्द्र सिंह विजयी रहे। 

भाजपा ने 2014 की तरह एक बार फिर सभी 25 सीटें जीत लीं। कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में राहुल गांधी ने अशोक गहलोत पर आरोप लगाया था कि उन्होंने सारा समय अपने बेटे के लोकसभा क्षेत्र में ही लगा दिया और राजस्थान की अन्य सीटों को नजरअंदाज किया। इस समय यहां 200 में से 99 विधायक कांग्रेस के हैं और गहलोत बसपा के 6 तथा 12 आजाद विधायकों की मदद से सरकार चला रहे हैं। जोधपुर की हार ने गहलोत को कमजोर कर दिया है और सचिन  जल्दी से जल्दी उनको हटाने के लिए प्रयासरत हैं। गहलोत और सचिन पायलट दोनों ने राहुल गांधी से दिल्ली में मुलाकात की है लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। 

पश्चिम बंगाल में टी.एम.सी. बनाम भाजपा
इन लोकसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में टी.एम.सी. और भाजपा के बीच लड़ाई मौखिक होने के साथ-साथ ङ्क्षहसक भी हो गई।  2014 के लोकसभा चुनावों में दोनों पाॢटयों के बीच काफी मौखिक लड़ाई हुई थी लेकिन यह ङ्क्षहसक नहीं थी। विधानसभा चुनावों के दौरान भी दोनों पाॢटयों के बीच काफी लड़ाई थी लेकिन यह गलियों तक नहीं पहुंची थी। पंचायत चुनावों के दौरान यह लड़ाई इतनी बढ़ गई कि भाजपा ने यह आरोप लगाया कि टी.एम.सी. उसके उम्मीदवारों को नामांकन भरने से रोक रही है। इन लोकसभा चुनावों में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 22 सीटें जीतने का लक्ष्य  रखा था पर भाजपा ने 18 सीटें जीतीं। 

चुनावों की शुरूआत में ममता नैशनल फ्रंट बनाने के लिए कोशिश कर रही थी लेकिन आखिर में उन्होंने लैफ्ट और कांग्रेस दोनों को नकार दिया और अकेले चुनाव लड़ा जिसके परिणामस्वरूप उनकी पार्टी की हार हुई। हार का एक अन्य कारण अमित शाह, योगी आदित्यनाथ की बैठकों की अनुमति न देना तथा अमित शाह और भाजपा नेताओं की रैलियां रोक देना था लेकिन चुनावों के बाद दीदी ने एक बार फिर अपना निर्णय बदला है।  पहले उन्होंने  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ समारोह में भाग लेने की बात कही थी लेकिन बाद में समारोह में जाने से इंकार कर दिया। ममता ने इस बात को नकारा है कि टी.एम.सी. द्वारा भड़काई गई हिंसा में भाजपा के कार्यकत्र्ता मारे गए हैं। 23 मई को नतीजे घोषित होने के बाद दोनों पाॢटयों के समर्थकों के बीच झड़पों की खबरें अब भी जारी हैं।-राहिल नोरा चोपड़ा

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