प्रधानमंत्री मोदी के नाम खुला ‘खत’

Edited By ,Updated: 09 Jan, 2020 12:44 AM

letter open to prime minister modi

इसपत्र के माध्यम से मैं आपसे देश हित में तत्काल कुछ कदम उठाने का अनुरोध करना चाहता हूं। पिछले कुछ दिनों से देश में जो हालात बन रहे हैं वे न तो दीर्घकालिक राष्ट्रीय हित में हैं और न ही आपकी व्यक्तिगत छवि और लोकप्रियता के लिए उचित हैं। अगर आप तत्काल...

इस पत्र के माध्यम से मैं आपसे देश हित में तत्काल कुछ कदम उठाने का अनुरोध करना चाहता हूं। पिछले कुछ दिनों से देश में जो हालात बन रहे हैं वे न तो दीर्घकालिक राष्ट्रीय हित में हैं और न ही आपकी व्यक्तिगत छवि और लोकप्रियता के लिए उचित हैं। अगर आप तत्काल कुछ घोषणाएं कर दें तो देश में बन रहा यह माहौल टाला जा सकता है। आशा है आप इस अनुरोध पर तुरंत विचार करेंगे। 

पिछले एक महीने भर से देश में जो अभूतपूर्व माहौल बना है वह आप से छुपा नहीं है। मेरी जानकारी टी.वी., अखबार, फोन और सोशल मीडिया तक सीमित है लेकिन आपके पास तो जानकारी के बेहतर स्रोत होंगे। जब से नागरिकता संशोधन कानून को संसद में पेश किया गया तभी से देशभर में प्रदर्शन और आंदोलन हो रहे हैं। इस बीच जामिया मिलिया विश्वविद्यालय, अलीगढ़ विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित देश के अनेकों कैम्पस में विद्याॢथयों पर पुलिस का दमन हुआ जिसके खिलाफ देशभर के युवा खड़े हो रहे हैं। लेखक और कलाकार जो पहले नहीं बोल रहे थे वे भी आज बोलने पर मजबूर होने लगे हैं। नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और जनगणना के राष्ट्रीय रजिस्टर को लेकर आज अलग-अलग वर्ग के लोगों में अलग-अलग तरह की चिंताएं हैं।

पूर्वोत्तर के करोड़ों लोगों को अपनी पहचान खोने का डर
पूर्वोत्तर में पिछले एक महीने से चल रहे जन प्रतिरोध की खबर राष्ट्रीय मीडिया में ठीक से नहीं आती लेकिन आप तक तो यह खबर पहुंच रही होगी। हिन्दू और मुसलमान दोनों स्तब्ध हैं कि 1985 में हुए असम समझौते को एकतरफा तरीके से तोड़ दिया गया है। उन्हें आशंका है कि अब बंगलादेश से आए लाखों हिन्दू बंगालियों को नागरिकता दे दी जाएगी और असमिया भाषा अपने ही घर में अल्पसंख्यक हो जाएगी। यही डर त्रिपुरा के हिन्दू आदिवासी समाज का भी है जो पहले ही बंगाली प्रवासियों के संख्या बोझ तले दब चुका है। यह आशंका उन राज्यों में भी है जिन्हें फिलहाल नागरिकता संशोधन कानून से मुक्त रखा गया है। उन्हें लगता है कि देर-सवेर उनका भी नम्बर आएगा। पूर्वोत्तर के इस संवेदनशील इलाके के करोड़ों नागरिकों को आज अपनी पहचान खोने का डर है। 

पक्के कागज न जुटा पाने की वजह से शक के दायरे में आएंगे लोग
उत्तर प्रदेश के लगभग 20 करोड़ मुस्लिम नागरिकों को भारतीय नागरिकता खोने का डर है। यह बात सही है कि खाली नागरिकता संशोधन कानून से ऐसे किसी व्यक्ति की नागरिकता नहीं छीनी जा सकती जो आज भारत का नागरिक है लेकिन डर यह है कि जब नागरिकता का रजिस्टर बनेगा और अगर असम की तरह उन्हें अपनी नागरिकता का प्रमाण देने को कहा जाएगा तो करोड़ों लोग पक्के कागज न जुटा पाने की वजह से शक के दायरे में आ जाएंगे। इनमें खानाबदोश और गरीब लोग होंगे, समाज के हाशिए पर रहने वाले लोग होंगे। ऐसे में नागरिकता संशोधन कानून के चलते गैर-मुस्लिम लोग तो फिर भी बच पाएंगे लेकिन लाखों मुसलमानों के सिर पर अपने ही घर में विदेशी करार दिए जाने की तलवार लटक जाएगी। 

अपने संवैधानिक मूल्यों को खोने का डर
इस मामले में आशंकित लोगों में मेरे जैसे नागरिक भी हैं जिन्हें सीधे-सीधे अपनी पहचान या नागरिकता खोने का भय नहीं है। हमारा डर अपने संवैधानिक मूल्यों को खोने का है। डर यह है कि आजाद भारत में पहली बार नागरिकता को धर्म से जोडऩे पर हमारे संविधान का पंथनिरपेक्ष चरित्र नहीं बचेगा। डर यह है कि मुस्लिम और गैर-मुस्लिम में भेदभाव करने वाला यह कानून हमारे संविधान प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का हनन करता है। डर यह भी है कि ऐसे कानून पास करके हम मोहम्मद अली जिन्ना के उस द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार कर रहे हैं जिसे हमारे आजादी के आंदोलन ने खारिज किया था। 

आपकी सरकार का और आपकी पार्टी का यह मानना है कि ये सब फर्जी हैं। आपने बार-बार कहा है कि इस मुद्दे पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है और उनमें झूठे डर का प्रचार किया जा रहा है। मैंने देश के गृह मंत्री जी के बयानों और सरकारी दस्तावेजों को ध्यान से पढ़ा है। मुझे नहीं लगता कि इन तीनों समूहों की आशंकाएं निराधार हैं। लेकिन अगर एक बार मान भी लें कि लोग बिना वजह डरे हुए हैं, फिर भी यह तो सच है न कि वे डरे हुए हैं। देश की इतनी बड़ी आबादी अगर भय और आशंका से ग्रस्त है तो उसकी ङ्क्षचता तो आपको होनी चाहिए न? आप भी चाहेंगे कि जनता के मन से डर खत्म हो और उसके बाद ही इस तरह के कानूनों को लागू किया जाए। आप भी जानते हैं कि इस कानून को एकदम लागू करने की कोई जल्दी नहीं है। अगर इस कानून को सही मान भी लें, तब भी इसे 2 साल-5 साल लागू न करने से देश का कोई बड़ा नुक्सान होने वाला नहीं है।

नागरिकता संबंधी सारे मामले पर किसी भी कार्रवाई को रोकें
इसलिए मैं आपसे यह अनुरोध कर रहा हूं कि देश में व्याप्त भय, आशंका, तनाव, प्रतिरोध और दमन के माहौल को देखते हुए आप नागरिकता संबंधी सारे मामले पर किसी भी कार्रवाई को एकदम रोक दें। अगर आप अपने पद से देश की जनता को स्पष्ट आश्वासन देते हैं कि आपकी सरकार जनता के साथ संवाद कर इस मुद्दे पर एक राय बनाएगी और तभी इसे लागू किया जाएगा तो एकदम से देश में माहौल बेहतर होगा। 

इस आश्वासन का मतलब होगा कि सरकार घोषित करे कि अप्रैल के महीने में शुरू होने वाली जनगणना की प्रक्रिया में वे दो सवाल हटा दिए जाएंगे जिनको लेकर नागरिकता की आशंका है यानी कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में ये नए सवाल नहीं जोड़े जाएंगे जो हर व्यक्ति के मां-पिता के जन्म स्थान और जन्म की तारीख पूछते हैं। साथ ही आप इशारे करने की बजाय स्वयं स्पष्ट घोषणा करें कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाने की सरकार की कोई योजना नहीं है। या फिर आप कोई समयावधि बांध सकते हैं जब तक सरकार इस रजिस्टर पर कोई कार्रवाई नहीं करेगी। इसे पक्का करने के लिए आप यह घोषणा भी कर सकते हैं कि हालांकि नागरिकता संशोधन कानून संसद से पास हो चुका है, उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो चुके हैं, लेकिन उसे सरकार अभी नोटिफाई नहीं करेगी ताकि उस पर तत्काल अमल शुरू न हो। उसके लिए भी आप कोई समय अवधि घोषित कर सकते हैं।

नेता आएंगे-जाएंगे लेकिन देश का हित सर्वोपरि
प्रधानमंत्री जी, कुछ महीने पहले ही इस देश की जनता ने आपको दोबारा सत्ता सौंपी है। मुझ जैसे विरोधियों की बात न सुनकर जनता ने आप में भरोसा जताया है इसलिए मुझे विश्वास है कि अगर आप स्पष्ट शब्दों में यह घोषणा करेंगे तो देश में आज जो आशंका और तनाव का माहौल है वह एकदम सुधर जाएगा। मुझे यह भी विश्वास है कि अपने पद की गरिमा को देखते हुए आप ऐसी और कोई टिप्पणी नहीं करेंगे जिससे हालात और बिगड़ें। नेता आएंगे-जाएंगे, पाॢटयां चुनाव जीतेंगी-हारेंगी लेकिन देश का हित सर्वोपरि है। मुझे विश्वास है कि आप देश के हित को ध्यान में रखते हुए तुरंत ऐसा कोई कदम उठाएंगे। भवदीय,हम भारत के लोग-योगेन्द्र यादव
 

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