‘पटरी पर लौटती जिंदगी’ मगर लापरवाही न हो

Edited By ,Updated: 12 Feb, 2021 03:51 AM

life on track  but don t be careless

कोरोना महामारी अपने साथ एक ऐसा मंजर व दहशत का दौर लाई थी जिसने जन-जन को डरा कर रख दिया था यानी घरों के अंदर कैद होने के लिए विवश कर दिया था। पूरे देश में लॉकडाऊन तक की स्थिति आ गई लेकिन यह एक वक्त था जो बीत गया और कुछ बचा बीत भी रहा है

कोरोना महामारी अपने साथ एक ऐसा मंजर व दहशत का दौर लाई थी जिसने जन-जन को डरा कर रख दिया था यानी घरों के अंदर कैद होने के लिए विवश कर दिया था। पूरे देश में लॉकडाऊन तक की स्थिति आ गई लेकिन यह एक वक्त था जो बीत गया और कुछ बचा बीत भी रहा है लेकिन अब धीरे-धीरे जिंदगी एक बार फिर पटरी पर लौटती नजर आ रही है चाहे शहरी परिवेश की बात हो या फिर ग्रामीण की ही। कई लोगों ने कमाई के लिए एक बार फिर से शहरों का रुख करना प्रारंभ कर दिया है तो कइयों ने घर-गांव में ही अपने लिए शहर ढूंढ लिया है यानी कमाई का जरिया ढूंढ लिया है। 

फिर से सड़कों पर वाहन दौड़ने लगे हैं, बाजारों में लोगों का आवागमन शुरू हुआ है, आज एक बार फिर से सवारियों के लिए बसें अपने गंतव्य की ओर जा रही हैं, जिंदगी को एक बार फिर से पटरी पर आते देखने की उमंग रूपी खुशी है। फिर से स्कूल कॉलेज खुल रहे हैं और विद्यार्थी अपनी पढ़ाई के लिए संस्थानों की तरफ चल पड़े हैं। भले ही मन में अभी भी कोरोना महामारी का भय बना हुआ है लेकिन जीवन में कई समस्याएं ऐसी आती हैं जिनका सामना करना बहुत कठिन होता है। उन समस्याओं से निपटने के लिए हमें उनकी समांतर गति से साथ-साथ चलकर पार पाना है। महामारी भी ऐसी समस्या है जिसका हमें मुकाबला नहीं करना है बल्कि इसके साथ-साथ चलकर एक नया जीवन जीने की आदत डालनी है।

महामारी की वैक्सीन तो आ गई है लेकिन इसका प्रभाव कैसा रहता है, इसका अभी तक कोई जवाब नहीं है इसलिए एक नई दिनचर्या व जीवनयापन सलीके के साथ कोरोना महामारी के साथ चल कर जीना सीखना होगा और लोग इस कला को भली-भांति सीख रहे हैं। भारत एक सामाजिक देश है, यहां हर एक व्यक्ति समाज के साथ जुड़कर अपना जीवनयापन करता है तथा व्यक्ति समाज के साथ ही स्वयं को परिभाषित करता है और समाज के साथ ही अपनी जीवन रूपी परिभाषा समाप्त भी कर देता है। 

जिंदगी पटरी पर कई बदलावों के साथ लौट रही है, जिस जेब में कभी मोबाइल फोन ठाठ से रहा करता था, वहां अब सैनिटाइजर भी अपनी जगह बना चुका है। जिस मुंह को सुंदर दिखाने के लिए रंग-रोगन किया जाता था, आज उस मुंह को मास्क से छिपाना पड़ रहा है जहां लोग गले मिलने से नहीं रुक पाते थे वहीं आज शारीरिक दूरी जैसी जरूरी धारणाओं को जीवन का हिस्सा बनाया जा रहा है। जहां पहले अभिवादन स्वरूप गर्मजोशी के साथ हाथ मिला कर स्वागत किया जाता था, वहां अब हाथ जोड़े जा रहे हैं। मगर कुछ भी हो यह जिंदगी रूपी ट्रेन एक मोड़ पर जाकर अब फिर से नए बदलाव के साथ पटरी पर चलने को तैयार है। सच में अब एक अलग सा जीवन जीते प्रतीत हो रहा है। 

धीरे-धीरे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आ रहा है, मजदूरों को रोजगार मिल रहा है, दुकानदारों को खरीददार मिल रहे हैं बसों को सवारियां मिल रही हैं, यही तो है एक बार फिर से पटरी पर लौटती जिंदगी।लेकिन उस खतरनाक मोड़ से पटरी पर लौटी जिंदगी को अब सावधानीपूर्वक, संवेदनशीलता के साथ और लापरवाही को भुला कर जीना होगा वरना न जाने यह जिन्दगी कब बोल दे पीछे मुड़। अगर ऐसा हुआ तो फिर वहां से लौटना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा।-डा. मनोज डोगरा
 

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