लोकसभा चुनाव : 2019 , 30 साल बाद फिर चोर-चोर का शोर

Edited By ,Updated: 04 May, 2019 04:16 AM

lok sabha elections 2019 30 years after the thief and thief noise

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चोर कहे जाने पर भाजपा नेता गुस्से से लाल हो रहे हैं। उनका कहना है कि यह एक गाली है जिसे देश के सबसे बड़े निर्वाचित पद पर बैठे व्यक्ति के प्रति इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री को...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चोर कहे जाने पर भाजपा नेता गुस्से से लाल हो रहे हैं। उनका कहना है कि यह एक गाली है जिसे देश के सबसे बड़े निर्वाचित पद पर बैठे व्यक्ति के प्रति इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री को चोर कहा जा रहा है। 30 साल पहले इन्हीं लोगों द्वारा राजीव गांधी को चोर कहा जा रहा था जो आज इस शब्द के इस्तेमाल से परेशान हो रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ने कभी भी इस बात को मुद्दा नहीं बनाया। 

1989 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष (भाजपा भी जिसका हिस्सा थी) का यह मशहूर नारा था, ‘‘गली-गली में शोर है, राजीव गांधी चोर है।’’ राजीव गांधी उस समय प्रधानमंत्री थे और कांग्रेस 541 में से 414 सीटें जीत कर भारी बहुमत से लोकसभा में पहुंची थी। 2014 की मोदी लहर के बावजूद भाजपा इस आंकड़े के करीब भी नहीं पहुंच पाई।  यदि भाजपा यह दावा करती है कि मोदी भारतीय इतिहास में सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं और इसलिए उन्हें चोर नहीं कहा जा सकता तो उन्हें यह पता होना चाहिए कि 1984 में राजीव गांधी 49.10 प्रतिशत मत हासिल कर प्रधानमंत्री बने थे जबकि 2014 में मोदी को केवल 31.3 प्रतिशत वोट शेयर मिला था। 

जो लोग आज कांग्रेस के चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किए जा रहे ‘‘चौकीदार चोर है’’ के नारे का विरोध कर रहे हैं, वही लोग 30 साल पहले  ‘‘राजीव गांधी चोर है’’ का नारा जोर-जोर से लगाते थे। यह कुछ उसी तरह का मामला है जैसे शत्रुघ्न सिन्हा चुनावों में एक नारा लगाते थे ‘‘तुम करो रास लीला और हम करें करैक्टर ढीला’’। 1989 के चुनाव तथा वर्तमान चुनाव में केवल यही समानता नहीं है। 30 साल पहले जनता दल के संस्थापक वी.पी. सिंह की अध्यक्षता में पूरा विपक्ष राजीव गांधी को हराने के लिए एकजुट हो गया था। इस बार विपक्ष ने मोदी को हटाने के लिए भाजपा के खिलाफ गठबंधन बनाया है। 

मोदी विपक्ष को महामिलावट खिचड़ी बताते हैं जो कमजोर सरकार बनाएगी और लम्बे समय तक नहीं चल पाएगी। 1989 में कांग्रेस ने विपक्ष को एक ऐसा फ्रंट बताकर नकार दिया था जिसमें नेता अधिक और कार्यकत्र्ता कम थे। तब भी यही कहा गया था कि विपक्षी फ्रंट स्थायी सरकार नहीं दे सकता। उस समय विपक्ष के विभिन्न समूहों और क्षेत्रीय दलों ने मिलकर नैशनल फ्रंट सरकार बनाई थी जो केवल एक साल तक चली क्योंकि भाजपा द्वारा समर्थन वापस लेने से यह गिर गई थी। 

अमेठी से भाजपा की उम्मीदवार स्मृति ईरानी राहुल गांधी की इस बात के लिए आलोचना करती हैं कि उन्होंने अमेठी का विकास नहीं करवाया लेकिन  तीन दशक पहले इसी गांधी परिवार पर यह आरोप लगता था कि वह अमेठी और रायबरेली को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं। तब एक पिछड़े हुए राज्य में अमेठी और रायबरेली को काफी विकसित माना जाता था। यहां की अच्छी सड़कों , उपजाऊ खेतों, शैक्षणिक संस्थाओं और उद्योगों  को अन्य क्षेत्रों के लोग ईष्र्या के भाव से देखते थे। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रभाव घटने और 30 वर्षों से उसके सत्ता में नहीं होने के कारण अमेठी का महत्व भी कम हो गया। दरअसल, बाद में आई उत्तर प्रदेश की सरकारों ने इन लोकसभा क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दिया। इसके बावजूद गांधी परिवार ने इस लोकसभा क्षेत्र को नहीं छोड़ा जिसने केवल एक वर्ष 1998 को छोड़ कर 1981 से लेकर कांग्रेस उम्मीदवार को जिताया था। 

इन मायनों में अलग था 1989 का चुनाव
1989 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अलग भी था। यह चुनाव उस समय लड़ा गया जब 24 घंटे के टी.वी.चैनल, इंटरनैट, मोबाइल फोन और सोशल मीडिया नहीं होते थे। सूचना के एकमात्र माध्यम समाचारपत्र हुआ करते थे जिन पर काफी नजर  रखी जाती थी। उस समय अफवाहें और फेक न्यूज सोशल मीडिया के माध्यम से नहीं फैलाई जा सकती थीं। राजनीतिक दलों को रैलियों के माध्यम से लोगों से मिलना होता था। प्रधानमंत्री को मीडिया का सामना करना पड़ता था और प्रैस कांफ्रैंस में सवालों के जवाब देने पड़ते थे। 

आज की तरह राजनीतिक नारे नहीं होते थे, राजनेता एक-दूसरे के प्रति जहर नहीं उगलते थे तथा विरोधियों को गालियां अथवा उनका मजाक नहीं उड़ाते थे। चोर संभवत: सबसे कड़ा शब्द था जो चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किया गया था। उस जमाने में उम्मीदवारों को जनता का दिल जीतना पड़ता था न कि खुले तौर पर धमकियां दी जाती थीं। 1984 में लोकसभा में दो सीटें जीतने वाली भाजपा ने अभी तक ध्रुवीकरण की खोज नहीं की थी। उस समय देश में मतदान पत्र के माध्यम से वोट डाले जाते थे। हालांकि उस समय भी हेरा-फेरी होती थी लेकिन चुनाव आयोग को उसका पता चल जाता था और उन स्थानों पर दोबारा पोलिंग करवाई जाती थी। लेकिन आज के दौर में कई स्थानों पर ई.वी.एम. में गड़बड़ी पाए जाने के बावजूद चुनाव आयोग यह मानने को तैयार नहीं है कि ऐसा संभव है।

तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों पर रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार के आरोप लगे। 1989 के चुनाव में विपक्ष ने यह प्रचार किया कि राजीव गांधी ने अपने मित्रों को बोफोर्स तोपों का सौदा दिलवाने के लिए गड़बड़ी की जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस चुनाव हार गई। वहीं इन चुनावों में विपक्ष ने मोदी पर राफेल लड़ाकू विमान सौदे में अनिल अम्बानी को ऑफसैट दिलवाने का आरोप लगाया है। ये दोनों उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। बोफोर्स ने 1989 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया; अब देखना यह है कि क्या राफेल सौदा भी मोदी के मामले में 30 साल पुरानी कहानी को दोहराएगा।-एस. मोमिन

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