महाराष्ट्र : भाजपा की पांचों उंगलियां घी में

Edited By ,Updated: 04 Jul, 2022 05:21 AM

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एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे, जिसका उसे बहुत लाभ मिलने वाला है। एकनाथ शिंदे के गले में देवेंद्र फडऩवीस की घंटी टांग दी गई है। शिंदे तो हाथी के दांत ....

एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे, जिसका उसे बहुत लाभ मिलने वाला है। एकनाथ शिंदे के गले में देवेंद्र फडऩवीस की घंटी टांग दी गई है। शिंदे तो हाथी के दांत की तरह सजावटी मुख्यमंत्री रहेंगे। असली सत्ता तो उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस की मार्फत भाजपा के हाथ में रहेगी। महाराष्ट्र देश की अर्थव्यवस्था का केंद्र और आमदनी का सबसे बड़ा स्रोत है। इसलिए महाराष्ट्र की सरकार पर काबिज होकर पिछले 8 वर्षों में दुनिया की सबसे धनी पार्टी बन चुकी भाजपा अपनी आर्थिक स्थिति को और भी मजबूत कर लेगी। 

पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस के लिए उप-मुख्यमंत्री का पद स्वीकारना आसान नहीं था। उन्हें आलाकमान के आदेश से अपमान का घूंट पीना पड़ा। हालांकि उन्हें समझाया यही गया होगा कि इस व्यवस्था में भी सत्ता के केंद्र वही रहेंगे। पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जिसे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया जाता है उसके पर निकलने में देर नहीं लगती। अनेक प्रांतों के उदाहरण हैं, जहां कठपुतली मान कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जिसे बिठाया गया, वही कुछ दिनों में अपने कड़े तेवर दिखाना शुरू कर देता  है। कभी-कभी तो वह नेता गद्दी पर बिठाने वाली पार्टी के बड़े नेताओं को ही आंख दिखाने लगते हैं। 

भाजपा के हाथ में एक ही चाबुक है, जिससे वह एकनाथ शिंदे और उनके साथी विधायकों को अपनी मुट्ठी में रख सकती है। वह है भाजपा के तरकश में ई.डी. और सी.बी.आई. जैसी एजैंसियां। चूंकि पाला पलटने वाले शिवसेना के बागी विधायकों में से ज्यादातर पहले से ही ई.डी. के शिकंजे में हैं, इसलिए जरा सी चूं-चपड़ करने पर उनकी कलाई मरोड़ी जा सकती है। इस पूरी डील में भाजपा का लक्ष्य शिवसेना का आधार खत्म करना है। इसीलिए उसने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया है।

अब भाजपा शिवसेना की पकड़ वाले मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बढ़ाने का हरसंभव प्रयास करेगी। यह बात दूसरी है कि बाला साहेब ठाकरे की विरासत के प्रति समर्पित मराठी जनमानस अब भी उद्धव ठाकरे के साथ खड़ा हो और अगले चुनावों में उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे को सहानुभूति लहर का लाभ मिल जाए और भाजपा व शिव सेना के बागी विधायकों को मराठी जनता के कोप का भाजन बनना पड़े। यह तभी संभव होगा जब उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे आराम त्याग कर आंध्र प्रदेश के जगन रेड्डी या तेलंगाना के के.सी. राव की तरह गांव-गांव नगर-नगर जाकर महाराष्ट्र की जनता को अपने समर्थन में खड़ा कर दें।

इस प्रक्रिया में अगर उद्धव ठाकरे को शरद पवार की सलाह और सहयोग मिलता है तो उनकी स्थिति और मजबूत हो सकती है। हालांकि भाजपा अपने धनबल, बाहुबल व सत्ताबल का उपयोग करके उद्धव को आसानी से सफल नहीं होने देगी। पर यह भी सच है कि पश्चिम बंगाल की जनता की तरह महाराष्ट्र की जनता भी अपनी संस्कृति, जाति और भाषा के प्रति भरपूर आग्रह रखती है। इसलिए उद्धव को हाशिए पर धकेलना आसान नहीं होगा। 

जो भी हो, कुल मिलाकर यह सारा प्रकरण लोकतंत्र में आई भारी गिरावट का प्रमाण है। यह गिरावट भाजपा के कारण ही नहीं आई, जैसा विपक्ष आरोप लगा रहा है। आयाराम-गयाराम की राजनीति और विपक्षी दलों की प्रांतीय सत्ताओं को पलटने की साजिश कांग्रेस के जमाने में ही शुरू हो गई थी, जो भाजपा के मौजूदा दौर में परवान चढ़ गई है। अंतर यह है कि कांग्रेस ने न तो कभी अपने दल को नैतिक और दूसरों से बेहतर बताने का दावा किया और न ही विपक्ष के प्रति इतना द्वेष, घृणा और विषवमन किया, जैसा भाजपा का मौजूदा नेतृत्व हर समय करता आ रहा है। इससे लोकतंत्र में राजनीतिक कटुता व असहजता बढ़ी है। 

सत्ता में बैठे लोग बदल जरूर गए हैं, पर ठेकों और तबादलों में भ्रष्टाचार की मात्रा एक अंश भी घटी नहीं, बल्कि कई जगह तो पहले के मुकाबले बढ़ गई है। ऐसे में इस तरह के सत्ता परिवर्तनों को आम मतदाता बहुत अरुचि और शक से देखता है। दल के कार्यकत्र्ताओं की बात दूसरी है। उनका दल जब जा-बेजा हथकंडे अपना कर सत्ता पर काबिज हो जाता है तो स्वाभाविक है कि कार्यकत्र्ताओं में उत्साह की लहर दौड़ जाती है। पर महाराष्ट्र की ताजा घटनाओं ने भाजपा के कार्यकत्र्ताओं को भी निराश किया है। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री के पद पर उनके नेता देवेंद्र फडऩवीस को ही बिठाया जाएगा, नितिन गडकरी तक को नहीं, जो लम्बे समय से इस पद के दावेदार हैं और जिन्हें नागपुर का वरदहस्त प्राप्त है। 

इस पूरे प्रकरण में जो सबसे रोचक पक्ष है, वह यह कि देश के सबसे बड़े कद्दावर नेता और महाराष्ट्र की राजनीति के कुशल खिलाड़ी शरद पवार भी फिलहाल भाजपा के चाणक्य अमित शाह से मात खा गए, जो कि शरद पवार की फितरत और मराठा खून के विपरीत है। ऐसे में यह मान लेना कि आज अपनी हारी हुई बाजी से हताश होकर शरद पवार चुप बैठ जाएंगे, नासमझी होगी। अपने कार्यकत्र्ताओं और सांसद बेटी सुप्रिया सुले के राजनीतिक भविष्य पर लगे इस ग्रहण से निजात पाने की पवार साहब भरसक कोशिश जरूर करेंगे। उधर कांग्रेस भी इस विषम परिस्थिति में उद्धव ठाकरे का दामन छोडऩे को तैयार नहीं है। इसलिए महाराष्ट्र विकास अघाड़ी और भाजपा के बीच रस्साकशी जारी रहेगी, जिससे महाराष्ट्र की जनता को कोई लाभ नहीं होगा।-विनीत नारायण
      

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