‘पुलिस कल्याण के लिए आगे आई महाराष्ट्र सरकार’

Edited By ,Updated: 11 Feb, 2021 03:59 AM

maharashtra government comes forward for police welfare

दत्ता पड़सलगीकर की मैंने इसलिए प्रशंसा की क्योंकि पुलिस कांस्टेबलों के लिए उन्हें ङ्क्षचता थी, जो पुलिस प्रशासन में सबसे निचला क्रम है। प्रमुख के निपटान में कांस्टेबल 90 प्रतिशत से अधिक मानव शक्ति का निर्माण करते हैं। यदि पुलिस बल को अपनी सेवा को...

दत्ता पड़सलगीकर की मैंने इसलिए प्रशंसा की क्योंकि पुलिस कांस्टेबलों के लिए उन्हें ङ्क्षचता थी, जो पुलिस प्रशासन में सबसे निचला क्रम है। प्रमुख के निपटान में कांस्टेबल 90 प्रतिशत से अधिक मानव शक्ति का निर्माण करते हैं। यदि पुलिस बल को अपनी सेवा को निभाना है तो पुलिस प्रशासन के सुपरवाइजरी स्तर को उनके कल्याण तथा उनके मन की स्थिति की चिंता करनी चाहिए। दत्ता को उनके लिए कार्य करने वाले लोगों के घरों में जाने के लिए कोई हिचकिचाहट नहीं थी। फिर चाहे यह एक चौराहे पर हो या फिर एक कार्यालय में। यहां तक कि किसी बच्चे के जन्मदिन के अवसर पर भी दत्ता उपलब्ध हो जाते। 

पुलिस लाइन में वह बर्थडे केक काटने के लिए उपस्थित हो जाते। मेरे जानने वाले पुलिस अधिकारियों में से ऐसा एक भी नहीं जो इस तरह का रवैया रखता हो। दत्ता पड़सलगीकर को देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चुना है जो उनके  तीन लैफ्टिनैंटों में से एक हैं। दत्ता को अभी भी याद किया जाता है। पुलिस कल्याण में उनका सबसे बड़ा योगदान शहर के 19 पुलिस स्टेशनों में 8 घंटे की शिफ्ट की अवधारणा को पेश करना था। 

पुलिस में किसी ने भी नहीं सोचा कि ऐसी उपलब्धि संभव हो पाएगी। मगर एक पुलिस स्टेशन के कांस्टेबल जिसकी ड्यूटी उसके विशेष पुलिस स्टेशन में कर्मियों को ड्यूटियां बांटने की थी, से सुनने के बाद दत्ता ने उसी पुलिस स्टेशन में यह कदम उठाया। इसी अनुभव के बाद यह प्रक्रिया शहर के अन्य पुलिस स्टेशनों में भी चलाई गई। जिन अधिकारियों से मैं मिला उनकी प्रतिक्रिया एकदम उत्साही थी। न तो वर्तमान और न ही पूर्व में ऐसा प्रबंध करने की कोशिश की गई। इसलिए जब मुझे राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने पुलिस कल्याण को लेकर मुझसे विचार-विमर्श करने के लिए मुझे एक डिनर पर आमंत्रित किया जिसमें दर्जनों भर सेवानिवृत्त आई.पी.एस. अधिकारी शामिल हुए थे, उसमें मैंने पुलिस कल्याण के लिए 8 घंटे की ड्यूटी को सूचीबद्ध किया जिसे निम्न रैंकों वाले लोगों ने बहुत सराहा। 

मेरी शारीरिक दुर्बलताओं के मद्देनजर मुझे मंत्री के डिनर के निमंत्रण को अस्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ा। मगर मैंने उन्हें महत्वपूर्ण उपायों के बारे में लिखा। मैंने सोचा पुलिस कर्मियों के जीवन की गुणवत्ता और बेहतर करने के लिए मंत्री अपने स्तर पर सुविधा प्रदान करनी चाहिए। महाराष्ट्र में एक पुलिस कर्मी औसतन 14 घंटे की शारीरिक ड्यूटी निभाता है। साधारण शिफ्ट 12 घंटों की होती है। यदि कोई एमरजैंसी पड़ जाए तो यह ड्यूटी 14 घंटे से भी आगे बढ़ जाती है। ऐसी लम्बी ड्यूटी आमतौर पर मुम्बई जैसे व्यापारिक शहर में हो ही जाती है। यदि पुलिस कर्मी के कुल समय में उनके घर से आने-जाने में लगने वाले समय को शामिल कर लिया जाए तो शायद ही पुरुष तथा महिला कर्मी को अपने परिवार के साथ बातचीत करने का मौका मिलता हो। 

ये बातें पुरुष या महिला पुलिस कर्मी की मानसिक शांति को भंग करती हैं और उनकी भावना का संतुलन भी बिगाड़ती हैं। इस संतुलन के साथ उसके लिए अपना बेहतर देना मुश्किल हो जाता है। पुलिस कर्मियों का अन्य साथी सदस्यों के साथ व्यवहार करने का तरीका भी प्रभावित होता है। गृहमंत्री देशमुख ने मुझे लिखे पत्र में कोविड तथा लॉकडाऊन के दौरान पुलिस कर्मियों के बलिदानों के बारे में भी उल्लेख किया। संक्रमण के दौरान खाकी वर्दी धारी लोगों ने सरकार के नियमों को लागू करने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया। इस दौरान ड्यूटी निभाते हुए उन्हें संक्रमित लोगों के साथ भी निपटना पड़ा। राज्य में पिछले 9 महीनों के दौरान महामारी से 200 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से आधे लोग तो मुम्बई शहर में ही मरे हैं। 

सरकार पुलिस विभाग की बहुत आभारी है जिन्होंने सैनिकों के तौर पर कार्य किया। मैंने पुलिस और पुलिस के विचार के लिए मंत्री और उनकी सरकार की सराहना की। 8 घंटों की शिफ्ट के अलावा मैंने पुलिस कर्मियों तथा उनके पारिवारिक सदस्यों के लिए एक वाॢषक स्वास्थ्य चैकअप का सुझाव भी दिया। एक अन्य तत्काल कल्याणकारी उपाय जो मैंने सुझाया वह यह था कि पुलिस कर्मियों के क्वार्टरों की मुरम्मत तथा उनका रख-रखाव किया जाए। ऐसे क्वार्टर एक दर्जन पुलिस लाइनों में हैं। इनमें से कुछ क्वार्टर तो अंग्रेजों के समय के हैं। कुछेक की खस्ताहालत है जिससे दुर्घटना की आशंका बनी रहती है जो उन फ्लैटों में रहने वाले लोगों की मानसिक शांति को विचलित करती है। 

1953 की तुलना में आज के कांस्टेबल ज्यादा शिक्षित और ज्ञान रखने वाले हैं। जब मैंने आई.पी.एस. ज्वाइन किया था तब ऐसी हालत नहीं थी। न्यूनतम शैक्षिक योग्यता हाई स्कूल सर्टीफिकेट से आज आगे बढ़ चुकी है। मगर हाई स्कूल के योग्य उम्मीदवार के पास कम मौके हैं क्योंकि डिग्री होल्डर भर्ती के लिए उनको चुनौती दे रहे हैं। मंत्री की सबसे बेहतर बात मुझे यह लगी कि उन्होंने दर्शाया कि वह निश्चित तौर पर ङ्क्षचता कर रहे हैं। वे वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारियों के अनुभव का फायदा उठाना चाहते हैं।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी) 
 

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