ममता बनर्जी : व्यक्तित्व व चुनौतियां

Edited By ,Updated: 10 May, 2021 03:59 AM

mamta banerjee personality and challenges

बेहद ताकतवर, भारी साधन स पन्न और हरफनमौला भाजपा के इतने तगड़े हमले के बावजूद एक महिला का बहादुरी से लड़ कर इतनी शानदार जीत हासिल करना साधारण बात नहीं है। इसीलिए आ

बेहद ताकतवर, भारी साधन स पन्न और हरफनमौला भाजपा के इतने तगड़े हमले के बावजूद एक महिला का बहादुरी से लड़ कर इतनी शानदार जीत हासिल करना साधारण बात नहीं है। इसीलिए आज पश्चिम बंगाल के चुनावों के परिणामों को पूरे देश में एक खास नजरिए से देखा जा रहा है। आज ममता बनर्जी की छवि अपने आप एक राष्ट्रीय नेता की बन गई है। इससे पहले कि हम ममता बनर्जी के सामने खड़ी चुनौतियों की चर्चा करें, उनके व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं को जानना अच्छा रहेगा। 

गत दस वर्षों से पश्चिम बंगाल की मु यमंत्री होते हुए भी वे आलीशान सरकारी बंगले में नहीं बल्कि गरीब लोगों की बस्ती में छोटे से निजी मकान में रहती हैं। जब वह केंद्र में रेलमंत्री थीं तब उनसे मेरा कई बार मिलना हुआ। तब भी वह मंत्री के बंगले में न जाकर सांसदों के लैट में ही रहीं। जिसकी आंतरिक सज्जा एक सरकारी बाबू के घर से भी नि न स्तर की थी। जहां कोई भी बिना रोक-टोक के कभी भी जा सकता था। रेल मंत्रालय की गाडिय़ों और सुरक्षा काफिले की बजाय वह अपनी पुरानी मारुति में आती-जाती थीं। 

रेलमंत्री के कार्यालय में बहुत वैभवपूर्ण आतिथ्य की व्यवस्था होती है तब भी ममता दीदी कंटीन के कांच के गिलास में ही चाय पिलाती थीं और उसका भुगतान अपने पैसे से करती थीं। एक बार जाड़े की कोहरे से भरी अंधेरी रात को दो बजे वह जयपुर के रेलवे स्टेशन पहुंचीं और स्टेशन मैनेजर से कहा कि वह रेल मंत्री हैं और उनका हवाई जहाज कोहरे की वजह से जयपुर हवाई अड्डे पर उतर गया था। अब उन्हें किसी भी ट्रेन में किसी भी श्रेणी की बर्थ देकर दिल्ली पहुंचवा दें।

स्टेशन मैनेजर बिना गर्म कपड़े पहने, सूती धोती और हवाई चप्पल  में एक साधारण महिला को इस तरह देख कर उनकी बात पर विश्वास नहीं कर सका। उसने जयपुर में तैनात रेलवे के महा प्रबंधक श्री अजित किशोर, जो मेरी पत्नी के मामा हैं, को फोन किया और ममता बनर्जी से बात करवाई। 

अजित मामा हड़बड़ा कर स्टेशन दौड़े आए और ममता बनर्जी से बार-बार अनुरोध किया कि वह जी.एम. के सैलून में दिल्ली चली जाएं, जो किसी भी गाड़ी में जोड़ दिया जाएगा। जिन पाठकों को जानकारी नहीं है, यह सैलून रेल का एक डिब्बा होता है, जिसमें दो बैडरूम, बाथरूम, ड्राइंग रूम, डाइनिंग रूम, आफिस और सहायकों सहित रसोई होती है। हर महाप्रबंधक का एक सैलून होता है। पर ममता बनर्जी किसी कीमत पर यह सुविधा लेने को राजी नहीं हुईं। उन्होंने जिद्द की कि उन्हें अगली दिल्ली जाने वाली ट्रेन के 2 ए.सी. या 3 टियर में ही एक बर्थ दे दी जाए, पर इसके लिए किसी यात्री को परेशान न किया जाए। 

मधु दंडवते और जार्ज फर्नांडीज को छोड़ कर हर रेल मंत्री उसके लिए चलाए जाने वाली विशेष ट्रेन ‘एम आर स्पैशल’ में यात्रा करता है। जो बिना रोक-टोक के प्राथमिकता से अपने गंतव्य को जाती है। ममता बनर्जी ने भी कभी इसका प्रयोग नहीं किया। यहां तक कि उन्होंने लोकसभा से मिलने वाली लाख रुपए महीने की सांसद पैंशन भी नहीं ली। 

जिस देश की करोड़ों जनता बदहाली में जी रही हो या जिस देश की जनता कोरोना महामारी में दवाई, अस्पताल व ऑक्सीजन के लिए बदहवास होकर ठोकरें खा रही हो उस देश में ममता बनर्जी का जीवन हर राजनीतिक दल के नेता के लिए अनुकरणीय है। मशहूर कूटनीतिज्ञ चाणक्य ने भी कहा है, ‘जिस देश का राजा महलों में रहता है उसकी प्रजा झोंपडिय़ों में वास करती है। जिस देश का राजा झोंंपड़ी में रहता है उसकी प्रजा महलों में वास करती है।’ एेसी ममता दीदी को इस चुनाव में जिस तरह तंग किया गया और उनका मजाक उड़ाया गया उसका विपरीत प्रभाव आम बंगाली के मन पर पड़ा और वह ममता बनर्जी के साथ खड़ा हो गया।

जहां तक पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद की राजनीतिक हिंसा का आरोप है तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश का कोई भी राजनीतिक दल इस दुर्गुण से अछूता नहीं है। सत्ता कब्जाने के लालच में या अपने राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए सभी राजनीतिक दल समय-समय पर ङ्क्षहसा का सहारा लेते आए हैं। वैसे त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में चुनावी ङ्क्षहसा का इतिहास छह दशक पुराना है। त्रिपुरा के पिछले चुनावों के बाद सत्ता में आई भाजपा के कार्यकत्र्ताआें ने सी.पी.एम. के विरुद्ध जो ङ्क्षहसा और तोड़-फोड़ की थी उस पर वह मीडिया खामोश रहा जो आज बंगाल की ङ्क्षहसा पर शोर मचा रहा है। अगर हम लोकतंत्र के चौथे स्त भ हैं तो हमें भय और लालच के बिना कबीरदास जी के शब्दों में, ‘ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया’ वाले भाव से राष्ट्र और समाज के प्रति अपने कत्र्तव्य का निर्वहन करना चाहिए।-वनीत नारायण
 
 

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