माक्र्सवादी 'इको-सिस्टम' से कब बाहर निकलेंगी ममता

Edited By ,Updated: 21 Jun, 2019 03:30 AM

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देश के प्रत्येक आपराधिक मामले में ''हिंदू-मुस्लिमÓ कोण ढूंढने और उसे विकृत तथ्यों के आधार पर स्थापित करने का प्रयास कौन और क्यों कर रहा है, वह पश्चिम बंगाल के हालिया घटनाक्रम से स्पष्ट हो जाता है। भले ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सभी मांगें...

देश के प्रत्येक आपराधिक मामले में 'हिंदू-मुस्लिम' कोण ढूंढने और उसे विकृत तथ्यों के आधार पर स्थापित करने का प्रयास कौन और क्यों कर रहा है, वह पश्चिम बंगाल के हालिया घटनाक्रम से स्पष्ट हो जाता है। भले ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सभी मांगें माने जाने के बाद प्रदेश से प्रारम्भ हुई डाक्टरों की देशव्यापी हड़ताल खत्म हो गई हो, किंतु इस दौरान जो कुछ हुआ, उसने तीन तथ्यों की ओर हमारा ध्यान दिलाया है। पहला, प्रदेश की स्थिति वामपंथियों के ङ्क्षहसक शासन की तुलना में अधिक रसातल में पहुंच गई है। दूसरा, इस्लामी कट्टरवाद और स्थानीय गुंडों को राज्य सरकार का परोक्ष-प्रत्यक्ष समर्थन अब भी प्राप्त है और तीसरा, लोकसभा चुनाव के नतीजों और प्रदेश में अपने हालिया प्रदर्शन से तृणमूल कांग्रेस ने सबक नहीं लिया है। 

नि:संदेह, किसी भी सभ्य समाज में ऐसे किसी भी प्रदर्शन या आंदोलन का समर्थन नहीं किया जा सकता, जिसमें किसी निरपराध के प्राण पर संकट आ जाए। किंतु कटु सत्य यह भी है कि प. बंगाल के इस मामले को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जिनके अधीन प्रदेश का स्वास्थ्य मंत्रालय भी है, डाक्टरों पर हमला करने वालों पर सख्त कार्रवाई करके आसानी से सुलझा सकती थीं लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्या इस मामले में पुलिस की अकर्मण्यता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा हठधर्मिता का परिचय देने का एकमात्र कारण हमलावरों और पीडि़त की मजहबी पहचान में नहीं छिपा है? 

मामला है क्या
आखिर पूरा मामला क्या है? गत 10 जून को नीलरत्न सरकार मैडीकल कॉलेज में उपचार हेतु भर्ती 75 वर्षीय मोहम्मद शाहिद की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि उनकी मृत्यु हृदयाघात के कारण हुई थी। इस पर गुस्साए मृतक के परिजनों सहित 200 की संख्या में विशेष समुदाय के लोग, अस्पताल परिसर में पहुंच गए और देर रात वहां कार्यरत डाक्टरों के साथ हाथापाई शुरू कर दी। जब अस्पताल द्वारा स्थानीय थाने को इसकी सूचना दी गई, तब पुलिस खुलकर कोई ठोस कार्रवाई करने में इसलिए असमर्थ रही क्योंकि सभी हमलावर मुस्लिम समुदाय से थे। टकराव बढऩे से दो डाक्टर घायल हो गए, जिसमें से एक प्रशिक्षु चिकित्सक डा. परिबाह मुखोपाध्याय के सिर की हड्डी तक टूट गई। परिणामस्वरूप, प्रदेश के अधिकतर डाक्टर हड़ताल पर चले गए और एक दर्जन सरकारी अस्पतालों के  700 से अधिक डाक्टरों ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया। देखते ही देखते शेष भारत में 10 लाख डाक्टर भी अपना विरोध जताते हुए हड़ताल में शामिल हो गए। 

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हड़ताली डाक्टरों को भाजपा का एजैंट बताकर उन पर आरोप मढ़ दिया कि भाजपा के कहने पर वे मुस्लिम मरीजों का उपचार करने से इंकार कर रहे हैं। अब यदि इस आरोप को आधार भी बनाया जाए, तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी डाक्टरों की हड़ताल में अपने भतीजे आबेश बनर्जी और कोलकाता नगर निगम के महापौर व तृणमूल नेता फिरहाद हकीम की पुत्री डाक्टर शब्बा हकीम के शामिल होने पर क्या कहेंगी? वास्तव में, पूरा मामला अस्पतालों में डाक्टरों को सुरक्षा देने और स्थानीय कानून-व्यवस्था से जुड़ा था, ङ्क्षकतु यह मुस्लिम समुदाय में कट्टरपंथी वर्ग और संबंधित शरारती-तत्वों को अपने राजनीतिक लाभ के लिए उन्हें संरक्षण देना और प्रोत्साहित करना था। 

सनातन भारत के इतिहास में पश्चिम बंगाल का विशिष्ट स्थान रहा है, जो इसे एक प्रसिद्ध वाक्य 'जो आज पश्चिम बंगाल सोचता है, वह शेष भारत कल सोचता है' चरितार्थ भी करता है। आधुनिक दौर में जिस धरती को स्वामी विवेकानंद ने सनातनी विचार दिए, डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सुभाषचंद्र बोस आदि ने राष्ट्रवादी तो बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय व रबींद्रनाथ टैगोर आदि ने साहित्यिक पहचान दी, उसकी जड़ों को वामपंथियों ने सर्वप्रथम अपने हिंदू विरोधी मानस और हिंसक माक्र्सवादी विचारधारा के माध्यम से 34 वर्षों (1977-2011) तक काटने का प्रयास किया। 

माक्र्सवादी राजनीति का केन्द्र बिंदु
हिंसा और 'असहमति के अधिकार' का गला घोंटना माक्र्सवादी राजनीति के केन्द्र ङ्क्षबदु में है। इसी के अंतर्गत, योजनाबद्ध तरीके से पहले स्थानीय गुंडों और अराजक तत्वों को संरक्षण दिया गया और फिर उन्हीं के माध्यम से माक्र्सवादियों ने प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा सहित अन्य राष्ट्रवादी संगठनों और उसके कार्यकत्र्ताओं को नियंत्रित और प्रताडि़त करने का प्रपंची जाल बुना। 

वामपंथियों की वैचारिक असहिष्णुता से छुटकारा पाने के लिए प्रदेश की जनता ने तृणमूल कांग्रेस पर विश्वास किया, परिणामस्वरूप ममता बनर्जी वर्ष 2011 और 2016 के विधानसभा के चुनाव में विजयी होकर लगातार दो बार मुख्यमंत्री बनीं। स्वाभाविक रूप से लोगों को प. बंगाल की स्थिति में परिवर्तन की आशा थी और अपेक्षा थी कि वामपंथियों से मुक्ति के बाद प्रदेश में गुंडों का राज न होकर कानून का राज और सुशासन होगा, परंतु जनता की अपेक्षाएं धूल-धूसरित हो गईं।

वामपंथी शासन में प्रदेश में जो गुंडे माक्र्सवादियों की केंचुली पहनकर घूमा करते थे, वे रातों-रात तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ता और नेता बन गए। अर्थात प्रदेश की सत्ता केन्द्रित राजनीति, जो पहले से रक्तरंजित और हिंदू विरोधी थी, वह न केवल अपरिवर्तित रही, अपितु उसे और अधिक बल भी मिलने लगा। राजनीतिक विरोधियों की हत्या या उन पर हमलों के साथ प. बंगाल के मुख्य पर्व-दुर्गापूजा और सरस्वती पूजा तक को बाधित करने की कोशिश की गई। तृणमूल कांग्रेस की राजनीति भी अपने पूर्ववर्ती वामपंथियों की तरह हिंसक और सनातन संस्कृति विरोधी है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के आशीर्वाद से उसके कार्यकत्र्ता और स्थानीय नेता, भाजपा को समर्थन देने वालों, विशेषकर अति निर्धन और वंचितों को निशाना बना रहे हैं। प्रदेश में भाजपा के उभार के बाद 2016 से अब तक 100 से अधिक भाजपा कार्यकत्र्ताओं की हत्या हो चुकी है।

राज्य की स्थिति और ममता की बौखलाहट का कारण इस स्थिति और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बौखलाहट का कारण प्रदेश में भाजपा का लगातार बढ़ता जनाधार है। गत वर्ष पंचायत चुनाव और उप-चुनावों में भाजपा का मत प्रतिशत बढऩे के बाद इस लोकसभा चुनाव में उसे प्रदेश की 42 में से 18 सीटों के साथ 40 प्रतिशत से अधिक मत भी प्राप्त हुए हैं। रोचक बात तो यह है कि 34 वर्षों तक बंगाल पर अबाधित शासन करने वाले वामपंथियों का इस बार यहां खाता भी नहीं खुला और वे 7 प्रतिशत मतों पर सिमट गए हैं। 

प्रदेश में खिसकते जनाधार को बचाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन्हीं दशकों पुराने साम्प्रदायिक जुमलों का उपयोग कर रही हैं, जिन्हें जनता 2014 के बाद से लगातार खारिज कर रही है। मरीज की मौत पर उग्र मुस्लिम भीड़ द्वारा डाक्टर की पिटाई और विरोधस्वरूप देशभर में चिकित्सकों की हड़ताल पर ममता की टिप्पणी 'भाजपा के उकसाने पर डाक्टर मुस्लिम मरीजों का इलाज नहीं कर रहे हैं' इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। 

अक्सर, भाजपा विरोधियों के चुनावी गणित में बार-बार यह स्थापित करने का प्रयास किया जाता है कि भाजपा मुस्लिम विरोधी है, इसलिए मुसलमान भाजपा के पक्ष में कभी वोट नहीं करेगा। क्या इस मिथक को पहले 2014, फिर 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने गलत सिद्ध नहीं किया है? क्या यह सत्य नहीं कि समाज के सभी वर्र्गों के समर्थन के साथ भाजपा को मुस्लिम समुदाय का भी वोट प्राप्त हुआ है? सी.एस.डी.एस. पोल सर्वे के अनुसार, 2014 की भांति इस बार भी भाजपा को 8 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले हैं। 

पिछले 5 वर्षों में यह पहला अवसर नहीं है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से विरोध के नाम पर देश की हर छोटी-बड़ी घटनाओं में 'मुस्लिम शोषण' को ढूंढने का प्रयास हुआ है। अखलाक, जुनैद, कठुआ आदि मामलों में वामपंथी समॢथत 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' सहित स्वयंभू सैकुलरिस्टों ने ऐसा ही किया था। तब इस जमात ने देश की बहुलतावादी छवि और सहिष्णु चरित्र को भी कलंकित करने से गुरेज नहीं किया। भारत सहित शेष विश्व में आज वामपंथी वैचारिक कारणों से अप्रासंगिक हो चुके हैं। यदि तृणमूल कांग्रेस, विशेषकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी माक्र्सवादियों द्वारा स्थापित हिंसक और अराजक पारिस्थितिकी तंत्र (इको-सिस्टम) से बाहर नहीं निकलीं, तो उनके दल का भी वही हश्र होगा, जो आज भारतीय वामपंथियों का है।-बलबीर पुंज 

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