सत्यपाल मलिक के सामने होंगी कई चुनौतियां

Edited By Pardeep,Updated: 29 Aug, 2018 03:01 AM

many challenges will be in front of satyapal malik

जम्मू -कश्मीर को 5 दशकों बाद एक राजनीतिक राज्यपाल मिला है। समाजवादी पृष्ठभूमि वाले बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने गत सप्ताह राज्य की कमान संभाली। अंतिम बार कश्मीर को तब एक राजनीतिक राज्यपाल मिला था जब कर्ण सिंह राज्य के पहले राज्यपाल (1965-67)...

जम्मू -कश्मीर को 5 दशकों बाद एक राजनीतिक राज्यपाल मिला है। समाजवादी पृष्ठभूमि वाले बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने गत सप्ताह राज्य की कमान संभाली। अंतिम बार कश्मीर को तब एक राजनीतिक राज्यपाल मिला था जब कर्ण सिंह राज्य के पहले राज्यपाल (1965-67) बने थे। मलिक से पहले के राज्यपाल या तो जगमोहन, जी.एस. सक्सेना तथा वोहरा जैसे नौकरशाह थे अथवा के.वी. कृष्णा राव तथा एस.के. सिन्हा जैसे पूर्व सेना अधिकारी थे। 

यद्यपि यह एक अचरजपूर्ण नाम था मगर इसकी प्रक्रिया एक महीना पहले शुरू हो गई थी। यहां तक कि जब पी.डी.पी. के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पी.डी.पी.-भाजपा गठबंधन का नेतृत्व किया, उन्होंने अपने मित्र मलिक का नाम राज्यपाल के तौर पर सुझाया था। यह तथ्य कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक राजनीतिक व्यक्ति को राज्य में भेजने बारे सोच रहे थे, इस बात का संकेत देता है कि वह राज्य में सभी दावेदारों के साथ एक राजनीतिक वार्तालाप शुरू करने को उत्सुक हैं। 

मलिक ही क्यों? उन्हें हर तरह के राजनीतिक हलकों तक पहुंच प्राप्त है। वह क्रांति दल, लोक दल, जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी तथा जनता दल में रहे हैं और उन्होंने सभी दलों में अपने सम्पर्क बनाए रखे। बिहार का राज्यपाल नियुक्त किए जाने से पहले वह भाजपा के उपाध्यक्ष थे। वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़े हैं। मलिक ने केन्द्रीय संसदीय मामलों तथा पर्यटन राज्य मंत्री के तौर पर सेवाएं दी हैं और केन्द्र व राज्य सरकारों में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं और उन्हें उच्च प्रशासनिक अनुभव भी प्राप्त हैं। 

वह पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद के अंतर्गत केन्द्रीय राज्य मंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं। उनके नैकां नेता डा. फारूक अब्दुल्ला के साथ भी शानदार समीकरण हैं। एक जाट नेता होने के नाते उनका पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा में भी कुछ प्रभाव है। सबसे बढ़कर, मलिक के राज्य में दोनों प्रमुख क्षेत्रीय दलों पी.डी.पी. तथा नैशनल कांफ्रैंस के साथ शानदार समीकरण हैं। यह तथ्य कि महबूबा मुफ्ती और डा. अब्दुल्ला दोनों उनके शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित थे, दिखाता है कि उन्हें सम्भवत: दोनों दलों के साथ कोई कठिनाई नहीं है। 

इस सबके बावजूद मलिक को कांटों भरा ताज पहनना पड़ेगा। उन्होंने एक ऐसे समय में कमान सम्भाली है जब राज्य एक कठिन दौर से गुजर रहा है। उनके सामने तुरंत आने वाली चुनौतियां होंगी-धारा 35ए से अदालत में निपटना तथा पंचायती चुनाव, जो अंतिम बार 2011 में करवाए गए थे। शांतिपूर्ण तथा निष्पक्ष चुनाव एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होगी। प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में स्थानीय निकाय चुनाव करवाने की अपनी इच्छा का संकेत दिया था। कैसे वह धारा 35ए से निपटेंगे, जो गैर-स्थानीय लोगों के राज्य में सम्पत्ति खरीदने से संबंधित है, जिस पर अदालत सुनवाई कर रही है क्योंकि इसमें जरा-सा भी परिवर्तन घाटी में आग लगा देगा। उनकी इच्छा इस विवाद से खुद को अलग रखने की होगी। तीसरे, सामान्य स्थितियां तथा कानून व्यवस्था को बहाल करना तथा आतंकवाद विरोधी उपायों को जारी रखना होगा। यह उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी क्योंकि उन्हें स्थानीय पुलिस तथा सशस्त्र बलों के बीच शांति बनानी होगी। 

चौथे, राज्य में युवाओं को हिंसा तथा कट्टरवाद का रास्ता चुनने से रोकने की जरूरत होगी। उन्हें नौकरियों तथा अच्छी शिक्षा की जरूरत है। उन्हें किसी न किसी काम में उलझाए रखना तथा उचित दिशा की जरूरत है। पांचवीं तथा सबसे महत्वपूर्ण चीज सभी क्षेत्रों के लोगों का विश्वास जीतना होगी। शपथ ग्रहण के बाद खुद मलिक ने कहा था कि उनका इरादा लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करना तथा क्षेत्रों के बीच असंतुलन का समाधान करना है। उन्होंने उनको यह विश्वास दिलाया है कि वह भाजपा के पिट्ठू नहीं हैं और न ही केन्द्र के एजैंट बल्कि सभी क्षेत्रों के लिए राज्यपाल हैं। सफल होने के लिए छवि में यह परिवर्तन बहुत आवश्यक है। 

शुक्रवार को अधिकारियों के साथ पहली बैठक के बाद अपनी प्राथमिकताओं बारे संकेत देते हुए उन्होंने कहा कि प्रशासन में उत्कृष्टता की संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए, जिसके गुण समग्रता तथा उच्च गुणवत्तापूर्ण परिणाम हों, के लिए उनका ध्यान पारदर्शिता तथा विचार-विमर्श के साथ काम करना होगा। स्रोतों का उचित तथा लाभदायक इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाएगा ताकि व्यापक जनहित तथा आधारभूत सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए कोष का प्राथमिकताओं के अनुसार इस्तेमाल किया जा सके। उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास तथा समाज कल्याण क्षेत्रों पर भी आवश्यक रूप से ध्यान केन्द्रित करना होगा। जहां यह कहा जा रहा है कि राज्य आबंटित किए गए एक लाख करोड़ रुपयों में से अभी तक केवल आधा ही खर्च करने में सफल रहा है, उन्हें बचा हुआ धन तेजी से खर्च करने के लिए योजनाएं बनानी होंगी और अभी तक खर्च किए गए धन का ऑडिट भी करवाना होगा। 

छठे, मलिक को एक राजनीतिक वार्तालाप के लिए अन्य दावेदारों को भी शामिल करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने अच्छी शुरूआत की जब अधिकतर दलों के नेता उनका स्वागत करने के लिए हवाई अड्डे पर पहुंचे। अब प्रश्र यह है कि वह कैसे अलगाववादियों और विशेष तौर पर हुॢरयत नेताओं से निपटेंगे, जो पहले ही अविश्वसनीय हैं। क्या वह एक लोकप्रिय सरकार चलाने का प्रयास करेंगे? भीतरी लोगों का कहना है कि वह ऐसा करने की जल्दबाजी में नहीं हैं। मलिक संयत तथा एक समाजवादी हैं और राज्य में एक ताजा चेहरा हैं। मौका तथा केन्द्र व राज्य दोनों से समर्थन मिलने पर यदि वह स्थिति को 10 से 20 प्रतिशत भी सुधार सकें तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे। राज्य विकास तथा राजनीतिक वार्तालाप के लिए क्रंदन कर रहा है और हमें आशा करनी चाहिए कि मलिक सफल होंगे।-कल्याणी शंकर

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