कई भारतीय ‘अर्थव्यवस्था और अपनी भलाई’ जैसे मुद्दों पर मतदान नहीं कर रहे

Edited By ,Updated: 29 Mar, 2021 04:10 AM

many indians are not voting on issues like economy and their own well being

मैंने कुछ महीने पहले एक किताब लिखी थी। भारत में किताबें लिखने के साथ समस्या विशेष रूप से गैर-कल्पना तथा इतिहास से संबंधित है। ऐसी कई किताबें पढ़ी नहीं जाती हैं। पुस्तक की गुणवत्ता और लेखक की प्रसिद्धि अधिकांश भाग के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। मुद्रित...

मैंने कुछ महीने पहले एक किताब लिखी थी। भारत में किताबें लिखने के साथ समस्या विशेष रूप से गैर-कल्पना तथा इतिहास से संबंधित है। ऐसी कई किताबें पढ़ी नहीं जाती हैं। पुस्तक की गुणवत्ता और लेखक की प्रसिद्धि अधिकांश भाग के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। मुद्रित पुस्तकों की संख्या कुछ हजार तक सीमित है। 

आमतौर पर वह प्रिंट सालों तक चलता है और उन किताबों को देखना असामान्य नहीं है जो सालों पहले प्रकाशित हुई थीं और अभी भी अलमारियों पर रखी हुई हैं। 2014 में मैंने सादात हसन मंटो के उर्दू नॉन फिक्शन लेखन का अनुवाद करते हुए एक किताब लिखी। मंटो साहित्य में बहुत प्रसिद्ध नाम है। हालांकि वह किताब अभी भी अपने पहले प्रिंट रन में है। नई किताब हमारे हिंदू राष्ट्र के बारे में कहती है और यह जांच करती है कि भारत आज धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश होने के अपने संवैधानिक वायदे के संबंध में कहां खड़ा है? 

हम एक लोकतंत्र हैं अगर आप लोकतंत्र को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव मानते हैं। बाकी की दुनिया ऐसी नहीं है। फ्रीडम हाऊस की रैंकिंग में जिसने हाल ही में भारत को आंशिक रूप से मुक्त घोषित किया था, इसमें नागरिकों के राजनीतिक अधिकारों को 40 प्रतिशत महत्ता दी गई है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए पूरे अंक दिए गए थे। नागरिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों पर भारत का स्कोर इतना बुरा था कि निष्पक्ष चुनावों द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को नकार दिया गया। 

मेरी किताब ऐसी प्रक्रिया की पड़ताल करती है। इस किताब को ‘हमारा हिंदू राष्ट्र’ के नाम से बुलाया जाता है क्योंकि मेरे विचार में हम पहले से ही एक हो चुके हैं। 2014 से भारत जो कर रहा है उसे जारी रखने के लिए किसी संवैधानिक या अन्य बड़े बदलाव की आवश्यकता नहीं है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का बहिष्कार कानून द्वारा किया गया है और भारत में इसे प्रक्रिया द्वारा किया गया है। दोनों राष्ट्रों में यही एकमात्र फर्क है। हम पाकिस्तान की तरह धार्मिक देश बन गए हैं और यह एक सच्चाई है। पाकिस्तान के चार राज्यों में कोई ङ्क्षहदू मुख्यमंत्री नहीं है और भारत के 28 राज्यों में कोई भी मुस्लिम मुख्यमंत्री नहीं है। 

भारत की सत्तारुढ़ पार्टी के 303 लोकसभा सदस्यों में से कोई मुस्लिम सदस्य नहीं है और 15 राज्यों में कोई मुस्लिम मंत्री नहीं है। 10 अन्य राज्यों में केवल एक ही है जिसे आमतौर पर अल्पसंख्यक मामलों का पोर्टफोलियो दिया गया है। विशेषरूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों को अधिकार देने वाले कानून जैसे कि प्रचार और व्यवसाय हैं, उन्हें भारत द्वारा नष्ट कर दिया गया।  भारतीय राज्यों द्वारा पारित धार्मिक स्वतंत्रता के कानूनों ने वास्तव में हमसे स्वतंत्रता को छीन लिया। पशु वध पर प्रतिबंध व्यवसाय के अधिकार देने वाले कानून के खिलाफ जाता है जो एक नाम का ही मौलिक अधिकार है। एक राष्ट्र के रूप में हमें इन चीजों  से कोई समस्या नहीं है और यही कारण है कि वह एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है (केवल कुछ स्तंभकार हर समय उनके बारे में सोचते रहते हैं।) 

यही कारण है कि मैं कहता हूं कि हम पहले ही संरचनात्मक रूप से हिंदू राष्ट्र हैं। दूसरी बात यह है कि भारत के अल्पसंख्यकों को हाशिए पर रखने तथा कानूनों और नीतियों का लेखन जो असुविधा का कारण बनता है उसे भारतीयों के वोट देने के लिए एक बहुत बड़़ा हिस्सा दिया गया है। भारत एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो जी.डी.पी. वृद्धि के मामले में धीमी गति के चौथे वर्ष में है। लेकिन इस तथ्य के बारे में मीडिया ज्यादा आसपास भी नहीं रहता। भारत दक्षिण एशिया में एकमात्र अर्थव्यवस्था है जो मंदी में है लेकिन हम इससे चिंतित नहीं हैं। या तो यह एक चुनावी मुद्दा होगा या फिर मीडिया का विषय होगा। इसी तरह बेरोजगारी जो अपने ऐतिहासिक चरम पर है, वह 2017 से ही ऐसी है। बतौर कानून यह स्पष्ट तौर पर महत्वपूर्ण नहीं है जो महिलाओं को उनके धर्म के बाहर शादी करने से रोकते हैं। 

हमें बताया गया है कि हम एक राष्ट्रवादी पार्टी के नेतृत्व में हैं। लेकिन हमें यह भी सूचित किया गया है कि लद्दाख की स्थिति पिछले वर्ष के अंत की तुलना में आज अलग नहीं है। तथ्यों के बारे में समाचार पत्रों की रिपोर्टें कहती हैं कि 1000 वर्ग किलोमीटर की भूमि जिस पर हम पहले पैट्रोङ्क्षलग कर सकते थे, आज हम ऐसा नहीं कर सकते। आज इस विचार का सवाल नहीं उठता कि यह राष्ट्रवादी सरकार है। इसकी राष्ट्रवादी साख अपने ही नागरिकों, अल्पसंख्यकों और बाहरी तौर पर उसके खिलाफ की गई कार्रवाइयों से स्थापित हुई है। यही दूसरा कारण है कि मैं मानता हूं कि हम पहले से हिंदू राष्ट्र के रूप में रह रहे हैं। 

सवाल यह है कि इसके बाद क्या आता है? मेरा मानना है कि यह उसी से अधिक होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि कई भारतीय ज्यादातर अर्थव्यवस्था और अपनी भलाई जैसे मुद्दों के आधार पर मतदान नहीं कर रहे, जैसा कि सरकार द्वारा उपलब्ध करवाए गए आंकड़ों से पता चलता है। वह अन्य चीजों के बारे में शायद अधिक चिंतित हैं। विशेष रूप से भारत के अल्पसंख्यकों के उत्पीडऩ को लेकर चिंतित हैं। मीडिया ने इसमें उनका साथ दिया है। यहां नौकरियों और आर्थिक गिरावट जैसे मुद्दों से बचा जाता है। भले ही राहुल गांधी के कद के नेता उन्हें उठाते हैं। यह उस राष्ट्र में काफी उल्लेखनीय है जो लोकतांत्रिक है तथा यह कहते हुए दुनिया से नाराज हो जाता है कि यह गलत तरीके से चल रहा है।-आकार पटेल

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!