गड़बड़ा गया ‘जी.एस.टी.’ का गणित

Edited By ,Updated: 27 Sep, 2019 02:47 AM

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वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) को लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक को लाने में देरी का एक बड़ा कारण केन्द्र की तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) सरकार का राज्यों की मांग पर सहमत नहीं होना था। राज्य राजस्व के नुक्सान की भरपाई चाहते...

वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) को लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक को लाने में देरी का एक बड़ा कारण केन्द्र की तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) सरकार का राज्यों की मांग पर सहमत नहीं होना था। राज्य राजस्व के नुक्सान की भरपाई चाहते थे जो इसके लांच के साथ उत्पन्न होने वाले राजस्व के साथ उत्पन्न होगा, जो उत्पाद शुल्क, बिक्री कर या मूल्यवद्र्धित कर और अन्य कई स्थानीय करों के अधीन वितरण के तहत मिलेगा। नरेंद्र मोदी सरकार ने आखिरकार इस मांग से सहमत होकर सभी राज्यों में सर्वसम्मति बनाने में सफलता प्राप्त की। 

इसने जी.एस.टी. मुआवजा अधिनियम (2018) में एक संशोधन पारित करके कुछ वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर उपकर लगाया। उन वस्तुओं पर उपकर लगाया जाता है जो 28 प्रतिशत कर स्लैब में आती हैं, जैसे कि ऑटोमोबाइल, तम्बाकू, पेय और अन्य, जो कि कमी का सामना करने वाले राज्यों की क्षतिपूर्ति के लिए था। उपकर 5 साल तक लागू रहना था। समय सीमा के लिए अभी भी 3 साल हैं फिर भी उन्होंने इसे 5 और वर्षों तक जारी रखने की मांग उठाई है। पहले से ही उन्होंने इस संबंध में 15वें वित्त आयोग को प्रस्तुत कर दिया है। यह असामान्य नहीं है क्योंकि राज्य सुरक्षा की तलाश में हैं। 

हालांकि जी.एस.टी. के तहत कर संग्रह में कुल वृद्धि 12 प्रतिशत के लक्ष्य के मुकाबले 5 प्रतिशत से भी कम है, यहां तक कि उपकर से प्राप्त होने वाली आय, जिसका उपयोग राज्यों को कमी की क्षतिपूर्ति के लिए किया जाता है, बहुत पीछे है। अप्रैल-अगस्त, 2019 के दौरान 65,000 करोड़ रुपए (एक महीने में 13,000 करोड़ रुपए की दर से) की आवश्यकता के खिलाफ वास्तविक संग्रह 24,000 करोड़ रुपए की कमी के साथ 41,000 करोड़ रुपए (लगभग 8,000 करोड़ रुपए प्रति माह) था। इसे पूरा करने के लिए वर्ष के शेष 7 महीनों में संग्रह 16,500 करोड़ रुपए प्रति माह की दर से करना होगा, जो कि वर्तमान नाममात्र जी.डी.पी. वृद्धि के मद्देनजर हासिल करना लगभग असंभव है। 

यहां तक कि कमी बनी रहने के बावजूद, संवैधानिक दायित्व होने के नाते, केन्द्र को राज्यों को अपने कोष में से मुआवजे का भुगतान करना होगा, जो स्वयं घट रहा है। केन्द्र और राज्य सरकारों दोनों को गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है क्योंकि 2 साल से अधिक समय तक जी.एस.टी. शासन लागू होने के बावजूद कर राजस्व में वांछित उछाल हासिल नहीं किया गया है। इस परिवर्तनकारी सुधार को शुरू करने के पीछे के उद्देश्य, एक राष्ट्र, एक कर, का लक्ष्य एक तरफ राजस्व में वृद्धि करना था और दूसरे, उन लाखों लोगों को कर के दायरे में लाना था जो कर चोरी आदि में संलग्र थे। दोनों मामलों में प्रदर्शन उम्मीदों से काफी नीचे रहा है। 

चोरी पर अंकुश लगाने और कर जाल को चौड़ा करने के मामले में स्थिति पहले से कहीं अधिक गंभीर है। ऐसा लगता है कि संदिग्ध व्यापारियों और वास्तविक व्यापारियों के बीच घमासान चल रहा है। वर्तमान में जी.एस.टी. के तहत पंजीकृत संस्थाओं की संख्या लगभग 1.20 करोड़ है। यह 1 जुलाई, 2017 से पहले की पूर्व स्थिति के तहत पंजीकृत संस्थाओं से 50 लाख अधिक है। इस बात की आशंका है कि इस वृद्धि का एक हिस्सा नकली संस्थाएं हो सकती हैं, जो केवल धोखाधड़ी के लिए स्थापित की गई थीं। यह विभाग में अधिकारियों की मिलीभगत के कारण सिस्टम में सड़ांध की सीमा को दर्शाता है। 

कोई आश्चर्य नहीं कि जी.एस.टी. के तहत वास्तविक संग्रह एक महीने में लगभग 1,00,000 करोड़ रुपए (कुछ महीनों में, उदाहरण के लिए अगस्त, 2019) के आसपास रहा है जो और भी कम हो गया है जबकि सरकार को कम से कम 1,50,000 करोड़ रुपए प्रति माह का लक्ष्य चाहिए। 2021-22 और मामूली कर दरों से परे बिना मुआवजे के परिदृश्य को सुचारू रूप से परिवर्तित करने के अलावा हमें 28 प्रतिशत स्लैब को पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए तथा 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत को एक ही 15 प्रतिशत में विलय करना चाहिए, यह अभी तक एक और कोण से महत्वपूर्ण है। 

वर्तमान में कच्चे तेल, गैस, विमानन टर्बाइन ईंधन (ए.टी.एफ.) पैट्रोल और डीजल जैसे पैट्रोलियम उत्पादों को जी.एस.टी. के दायरे से बाहर रखा गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि केन्द्र और राज्यों दोनों को इन उत्पादों से अधिकतम कर राजस्व प्राप्त होता है, जो कि जी.एस.टी. शासन के तहत लाए जाने पर गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। यह तब भी होगा जब इन्हें 28 प्रतिशत के उच्चतम कर स्लैब के तहत रखा जाएगा। हालांकि अर्थव्यवस्था इसकी भारी कीमत चुका रही है क्योंकि उत्पाद शुल्क और मूल्यवॢद्धत कर के व्यापक प्रभाव के कारण जी.एस.टी. से इन उत्पादों को बाहर रखने से उनकी कीमतों में तेज वृद्धि हुई है। इससे बचा जा सकता है, अगर जी.एस.टी. मजबूती प्राप्त करता है और वांछित राजस्व प्राप्त करने के लिए आवश्यक लचीलापन हासिल करता है, जो बदले में राज्य सरकारों को उनके समावेश के लिए सहमत करने में मदद करेगा।-यू. गुप्ता

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