परमात्मा हमें इस महामारी से बचाए

Edited By ,Updated: 26 Apr, 2021 01:33 AM

may god save us from this epidemic

यह मेरे जीवन का सबसे खतरनाक समय है। इस वर्ष मैंने कभी भी उम्मीद नहीं की थी कि हम बैठे रहेंगे और हमारी स्वास्थ्य प्रणाली पूरी तरह से धराशायी हो जाएगी। जैसा कि आज है। लोग पीड़ित हैं। जीवन के कोई परिणाम नहीं हैं। अस्पतालों और श्मशानघाटों के बाहर कतारें...

यह मेरे जीवन का सबसे खतरनाक समय है। इस वर्ष मैंने कभी भी उम्मीद नहीं की थी कि हम बैठे रहेंगे और हमारी स्वास्थ्य प्रणाली पूरी तरह से धराशायी हो जाएगी। जैसा कि आज है। लोग पीड़ित हैं। जीवन के कोई परिणाम नहीं हैं। अस्पतालों और श्मशानघाटों के बाहर कतारें लगी हुई हैं। यह एक असहाय स्थिति है। जहां एक व्यक्ति खुद को नाकाबिल समझता है। इस महामारी ने हमें जीवन का तथा स्वास्थ्य का मूल्य बताया है। संकट प्रबंधन पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर है। पिछले वर्ष से स्थिति को संभालने के लिए कई अस्पतालों को अपग्रेड नहीं किया गया था। जैसा कि हम आज देख रहे हैं। मुझे आश्चर्य है कि ऐसा क्यों है? सोचा था कि सब कुछ खत्म हो चुका है या फिर हम आलसी थे। हर चीज के ऊपर हम अपने ही बिगुल फूंक रहे थे। हम कितने अच्छे तरीके से आघात का प्रबंधन कर रहे थे और इसकी वजह से दुनिया कैसे लडख़ड़ा रही थी। 

यह एक दुखद वर्ष है और मैं सोचती हूं कि एक और वर्ष हो सकता है। उस समय तक हम अपने कई भाई-बहनों, माता-पिता, बच्चों, दोस्तों और परिचितों को खो चुके होंगे। मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि हम इस तरह की किसी चीज से निपटेंगे और अचानक महसूस होगा कि एक राष्ट्र की स्थिति कितनी अयोग्य और अनियंत्रित है। राज्य सिर्फ इसलिए ऑक्सीजन के लिए लड़ रहे हैं क्योंकि यहां पर दो अलग-अलग राजनीतिक दल हैं। कितने शर्म की बात है, हम सभी भारतीय हंै जो देश भर से हो सकते हैं लेकिन हम सभी को ऑक्सीजन की जरूरत हो सकती है। देश में किसी भी स्थान पर हमें डाक्टरों द्वारा उपचार की जरूरत है। मुझे अभी तक यह समझ नहीं आया कि महामारी के इस दौर में कुंभ मेला, राज्यों में रैलियां क्यों आयोजित हुईं जहां पर न तो नेता और न ही लोग मास्क पहन रहे थे। 

यह किस तरह का चुनाव है? यहां पर एक कथन है जिसके अनुसार नेता नेतृत्व करते हैं जैसा कि हमने पश्चिम बंगाल में देखा। उसके बाद हम भारतीय साधुओं में विश्वास रखते हैं जिन्हें हमने कुंभ के दौरान देखा। ऐसे हालातों में  इससे ज्यादा और शर्मनाक और शर्मसार कर देने वाली बात क्या हो सकती है? क्या यहां पर लोगों में कोई संवेदनशीलता नहीं है जो संक्रमण को दूसरों में फैलाते हैं जो अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं। प्रशासन इस सबके बाद के माहौल को क्यों नहीं समझ रहा था। मानव जाति के लिए यह शर्म की बात है। हम में से कुछ लोग इस विश्वास की दुनिया में रहते हैं कि कोरोना जैसी कोई चीज नहीं है इसीलिए न तो मास्क पहनते हैं और न ही हाथों को सैनेटाइज करते हैं। इससे सैंकड़ों लोग संक्रमित होते हैं।

मैंने दिल्ली में इस पाखंडी समाज, जिसका मैं हिस्सा हूं, खुद देखा है कि अनेकों शिक्षित लोगों का मानना है कि कोरोना उन्हें छू नहीं सकता। मगर यह दुखद है कि यह सभी जगह है जहां कुछ अच्छे अस्पतालों में लोग अपने जीवन के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं और कुछेक घरों में अपना खुद का उपचार कर रहे हैं। शादियों को बड़ी संख्या में आयोजित किया जा रहा था फिर चाहे यह राजनेताओं या फिर आम आदमी की हो। इनमें से किसी भी शादी में कोरोना के मानदंडों का पालन नहीं किया गया था। दुख की बात है कि हमारे अधिकांश राजनेताओं ने मास्क तक नहीं पहने थे। यह हमारे उच्च समाज के लोगों का अहंकार है जो हमारी स्वास्थ्य प्रणाली और समाज पर बोझ डालते हैं। सैंकड़ों की तादाद में डाक्टर स्वच्छता कर्मचारियों का पालन-पोषण करते हैं। काम तथा संक्रमण को लेकर झेले गए दबाव के कारण उनकी मौतें हुई हैं।

मुझे एहसास है कि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली और अस्पताल आज संकट में हैं। यदि हम कोविड के प्रतिबंधों का ठीक से पालन करते हैं और व्यवहार करते हैं तो हम डाक्टरों के दबाव को हल्का कर सकते हैं। सरकार को तैयार रहना चाहिए था। कोरोना की दूसरी लहर और वैक्सीनेशन ड्राइव के लिए हमारे पास बेहतर और शांत प्रक्रिया हो सकती थी। कोरोना ने कई लापरवाह अभिमानी वी.आई.पी.लोगों को अस्पतालों में भर्ती करवाया।  चुनावी राज्यों और कुंभ मेले में और ज्यादा सख्ती बरतनी चाहिए थी। कोविड के लिए नए आपदा प्रबंधन विभाग स्थापित करने चाहिएं थे। हमारे पास युवा डाक्टरों, नेताओं और अधिकारियों की एक अच्छी टीम होनी चाहिए थी जो 24 घंटे स्थिति से निपटती। ज्यादातर मंत्री चुनावी राज्यों में रैलियों में थे और उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि हो क्या रहा है? जब सभी चीजें पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर हो गईं तो प्रधानमंत्री को सब कुछ अपने हाथ में ले लेना चाहिए था। 

मुझे आश्चर्य होता है कि हमारे अमीर टाइकून जो हर वर्ष फोब्र्स की समृद्ध सूची में आते हैं और सबसे अमीर एन.आर.आई. भी हैं, संकट के इस दौर में देश भर में ऑक्सीजन संयंत्रों और नि:शुल्क अस्पतालों की स्थापना कर सकते थे। उन्हें बिना किसी लाभ के चिकित्सीय उपचार में मदद करनी चाहिए थी। आखिर चीजों का आकार नियंत्रण से क्यों बाहर हो गया, यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब सबको देना होगा। युवा भारतीयों के स्वास्थ्य से कोई समझौता नहीं किया जा सकता क्योंकि कोरोना की इस दूसरी लहर ने उन्हें बुरी तरह से प्रभावित किया है। यह युवा पीढ़ी हमारे देश के कार्य का भविष्य है। मैं उम्मीद करती हूं कि हमें इस संकट से पार पाना होगा। 

प्रशासन को दिन-रात काम करके इस पर नियंत्रण रखना होगा। हमारा युवा वर्ग कुप्रबंधन को बर्दाश्त नहीं करता। वे शीघ्र जवाब चाहते हैं। स्कूल, कालेज और प्रत्येक कार्य प्रणाली धराशायी हो रही है। हम सब परमात्मा की दयालुता पर निर्भर हैं जो हमें इस महामारी से बचाए। हमारे दिग्गज बिजनैस घराने, सरकार और दबाव झेलने वाले डाक्टर सभी आपदा कमेटी का हिस्सा होने चाहिए। अंत में मैं अपने सभी फ्रंटलाइन कर्मियों को सलाम करती हूं।

-देवी चेरियन 

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