नदियों की छाती पर नाच रहा खनन माफिया

Edited By ,Updated: 18 Aug, 2022 06:36 AM

mining mafia dancing on the chest of rivers

सदियों से नदियों, झरनों, पेड़-पौधों और पहाड़ों की पूजा करने वाले देश के वासी आज बड़ी ही निर्दयता के साथ इन सभी का अंधाधुंध खनन तथा शोषण कर रहे हैं, जिसका प्रभाव हमारे पर्यावरण

सदियों से नदियों, झरनों, पेड़-पौधों और पहाड़ों की पूजा करने वाले देश के वासी आज बड़ी ही निर्दयता के साथ इन सभी का अंधाधुंध खनन तथा शोषण कर रहे हैं, जिसका प्रभाव हमारे पर्यावरण पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों ही रूप से पड़ रहा है। खनन के बाद निकाली गई रेत व बालू हवा में उड़कर शुद्ध वायु को भी दूषित करती है। इसका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है।
सांस के साथ रेत के कण हमारे फेफड़ों में पहुंच कर नई बीमारियों को जन्म देते हैं।

नदियों व तालाबों से खनन करके लाई गई रेत का परिवहन खुले वाहनों में किया जाता है, जो हवा के साथ उड़कर पर्यावरण को दूषित करती है। वर्तमान समय में खनन एक बहुत गंभीर समस्या बनती जा रही है, इसको रोकना अत्यंत आवश्यक है। खनन के कारण पर्यावरण को नुक्सान हो रहा है। पहाड़ों की सुंदरता खोती जा रही है, अवैध खनन की गतिविधियों को रोका जाना चाहिए। 

इस संदर्भ में उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय द्वारा भी कई आदेश जारी किए गए हैं, जिसकी पालना सुनिश्चित होनी चाहिए। सरकार द्वारा भले ही अवैध खनन पर रोक लगा दी गई है लेकिन यहां पर आज भी यह खेल जारी है। अवैध खनन में लगे इन माफियाओं को न ही नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) की परवाह है और न ही प्रशासन का डर। शाम होते ही अवैध खनन का धंधा शुरू हो जाता है। सड़कों पर रात भर ट्रैक्टर-ट्राली रेता, मिट्टी, बालू भरकर बेरोकटोक दौडऩा शुरू कर देती है। सुबह होने से पहले बंद कर दिया जाता है। यह कारोबार खूब फल फूल रहा है। अच्छी इंकम होने के कारण खनन माफिया इस धंधे को छोडऩे को तैयार नहीं है।

विशेष रूप से गंगा किनारे चल रहे अवैध खनन से जहां गंगा की जलधारा प्रभावित हो रही है। वहीं जल जीवों पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। खासकर डॉल्फिन की संख्या में तेजी से कमी आई है। यह माफिया दरअसल सरकार से कुछ जगह पर खनन की अनुमति लेते हैं, जिस पर वह एक तय टैक्स भी चुकाते हैं। लेकिन बाद में वह एक बड़े इलाके में अतिक्रमण कर लेते हैं और मोटा मुनाफा कमाना शुरू कर देते हैं। यही होता है खनन माफिया के काम का तरीका जो लगभग हर जगह एक जैसा ही होता है। 

खनन माफिया के आतंक से परेशान होकर पवित्र नदियों की अविरलता और अखंडता को बनाए रखने के लिए अब साधु-संतों को सामने आना पड़ रहा है। हाल ही में राजस्थान में एक 65 वर्षीय संत बाबा विजयदास जी ने रात-दिन लगातार हो रहे खनन से तंग आकर स्थानीय टावर पर चढ़कर अपने शरीर पर कैरोसीन डालकर आत्मदाह करने की कोशिश की, गंभीर रूप से झुलसने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराकर बचाया गया। 

इतना ही नहीं मां गंगा की अविरलता और अखंडता की लड़ाई लडऩे वाली एक और संस्था मातृसदन हरिद्वार समय-समय पर अवैध खनन के खिलाफ सक्रिय रूप में खनन माफियाओं का विरोध करती आई है। मातृसदन मां गंगा के संकट समाधान हेतु कार्य कर रहा है। मातृसदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद सरस्वती जी ने मां गंगा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पण किया है। अंधाधुंध खनन करना अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारने के समान है। इससे वन क्षेत्र में कमी होती है। इससे वर्षा भी कम होती है।

भविष्य के लिए संसाधन कम होने से प्लास्टिक जैसे पर्यावरण के लिए हानिकारक पदार्थों पर निर्भर होना होगा। वायुमंडल में मिट्टी के कणों की अधिकता प्रदूषण बढ़ाती है। नदियों से रेत और पत्थर निकाल कर उसकी जैविक निर्मलता का हनन करके हरे-भरे प्राकृतिक वनों और पर्वतों को माफिया द्वारा रौंदा जा रहा है। इसके बाद भी इंसान को शुद्ध हवा और प्राकृतिक वातावरण चाहिए। 

घाटों तक जलधारा लाने, मलबा हटाने और गंगा की सफाई के बहाने अवैध खनन किया जा रहा है। इससे गंगा में जगह जगह 20 से 25 फुट तक गहरे गड्ढे हो गए हैं। जिससे कई जगह गंगा की जलधारा बदल गई है। जबकि अन्य कई जगहों पर भी जलधारा बदलने का खतरा बढ़ गया है।  अवैध खनन कोई लाइलाज बीमारी नहीं है जो रोका नहीं जा सके, इसे रोकना थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन नामुमकिन नहीं।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा
 

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