सशस्त्र सेनाओं का आधुनिकीकरण जरूरी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Oct, 2017 03:03 AM

modernization of the armed forces

हिंद समाचार पत्र समूह के अखबारों में 21 अक्तूबर के तथ्यों के आधार पर छपे सम्पादकीय ‘भारतीय फौज को आधुनिक छोटे हथियारों की भारी कमी’ वाले विषय ने पाठकों और शासकों का ध्यान देश की सुरक्षा के साथ जुड़े बेहद चिंताजनक और संवेदनशील मुद्दों पर दिलाया है।...

हिंद समाचार पत्र समूह के अखबारों में 21 अक्तूबर के तथ्यों के आधार पर छपे सम्पादकीय ‘भारतीय फौज को आधुनिक छोटे हथियारों की भारी कमी’ वाले विषय ने पाठकों और शासकों का ध्यान देश की सुरक्षा के साथ जुड़े बेहद चिंताजनक और संवेदनशील मुद्दों पर दिलाया है। हम मुख्य सम्पादक के  साथ सहमत हैं कि यदि इस किस्म की कमी को समय पर पूरा करने के प्रयास न किए गए तो इसका देश की सुरक्षा क्षमता पर बुरा असर पड़ेगा। खास तौर पर परमाणु युग में जिस तेजी के साथ उच्च दर्जे की टैक्नोलॉजी से लैस लम्बी दूरी तक मार करने वाले बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम का विस्तार हो रहा है, उसके कारण युद्ध का मैदान केवल सीमांत पट्टी तक सीमित नहीं रहेगा। 

सेना में हर किस्म की यूनिट की संरचना, पैमाना, नफरी इत्यादि सरकार द्वारा स्वीकृत युद्ध/शांति व्यवस्था पर आधारित होती है जिसमें अफसर, जे.सी.ओज, जवानों की गिनती, तोपें, टैंक, हथियार, गाडिय़ों और गोला-बारूद तथा अन्य साजो-सामान यानी कि छोटी से छोटी सूई-धागे वाली वस्तु तक का ंअंदाजन माप और उसका इस्तेमाल करने का अधिकार तथा जिम्मेदारी निर्धारित की गई है। प्रत्येक अधिकारी और जवान के लिए रैंक अनुसार बुनियादी हथियार जैसे कि पिस्तौल, कार्बाइन और राइफल निजी तौर पर उसके नाम पर आबंटित किए जाते हैं। जिनका इस्तेमाल वह प्रशिक्षण तथा युद्ध के मैदान में करता है और इनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी निजी तौर पर उसी की होती है। इसका तात्पर्य यह है कि सेना की गिनती 12 या 13 लाख हो तो बुनियादी हथियार भी उतने ही होने चाहिएं। 

इसमें कोई संदेह नहीं कि निर्धारित पैमाने के अनुसार पलटनों में बुनियादी हथियारों की कुछ कमी हो सकती है लेकिन जरूरत के अनुसार ये मौजूद हैं, बेशक उनमें से अधिकतर पुरानी किस्म के हैं। इसलिए योजना अनुसार यदि नए संस्करण की 8,18,500 असाल्ट राइफलों, 418300 क्लोज क्वार्टर लड़ाकू कार्बाइन व अन्य हथियारों की सेना द्वारा मांग की गई है तो इस कमी को पूरा करने के साथ-साथ पुराने हथियारों की अदला-बदली एवं नव स्थापित यूनिटों के लिए हथियारों की जरूरत व ‘वार वेस्टेज रेट’ वाला पैमाना भी शामिल है, जिसकी कमी सैन्य क्षमता को प्रभावित करती है। सबसे बड़ी कमी तो गोला-बारूद की है। रक्षा मामलों की स्थायी संसदीय समिति की एक रिपोर्ट अनुसार भारतीय सेना के पास केवल 10 दिन के युद्ध के लिए ही गोला-बारूद मौजूद  है जबकि निर्धारित ‘वार वेस्टेज रेट’ अनुसार गोला-बारूद का स्टॉक 20-30 दिनों की लड़ाई के लिए पर्याप्त होना चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए लगभग 19 हजार करोड़ रुपए धन की जरूरत होगी। 

बोफोर्स घाटाले के बाद पिछले दशकों से भारतीय तोपखाने को नई तोपें उपलब्ध नहीं करवाई गईं। इस समय पुरानी तोपों के बदले 155 एम.एम./52 कैलीबर वाली 3000 तोपों की जरूरत होगी क्योंकि अभी तक तो अविकसित तोपों के बूते ही गुजारा किया जा रहा है। अमरीका से एम 777, 155 एन.एम./45 कैलीबर वाली 145 तोपें आयात करने का सौदा हो चुका है और बोफोर्स माडल आधारित असला फैक्टरियों से 114 तोपें खरीदने की प्रक्रिया जारी है। आधुनिक युग में युद्ध तो काली रातों के अंधेरे में लड़े जाएंगे। रूस के टी-90 एस. टैंक के अलावा शेष सभी टैंकों में नाइट विजन डिवाइसिस की भी कमी है। इसके अलावा बख्तरबंद गाडिय़ों की भी कमी है। इसी तरह इंफैंटरी पलटनों को  तीसरी पीढ़ी के 30 हजार से ज्यादा नाइट विजन उपकरणों की जरूरत होगी। संसद की स्थायी समिति की पिछली रिपोर्ट अनुसार 1,86,138 बुलेट प्रूफ जैकेटों, 2,17,388 हाई एंकल बूटों, 4,47,000 स्काई मास्कों और तथा कई अन्य वस्तुओं की सेना में कमी है। 

भारतीय नौसेना (नेवी) के पास जंगी बेड़ों की भी कमी है। इस समय नौसेना के पास 13 पुरानी पनडुब्बियां हैं जिनमें एक रूस से पट्टे पर ली गई है और जो परमाणु शक्ति के साथ लैस है। वायु सेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने रिटायरमैंट से पहले हवाई जहाजों की जरूरत के संदर्भ में कहा था: ‘‘वायुसेना के पास निर्धारित 43 स्क्वाड्रन की बजाय सिर्फ 33 स्क्वाड्रन हैं और फ्रांस से उपलब्ध होने वाले 36 राफेल लड़ाकू जहाजों के अलावा मध्यम आकार के 200-250 लड़ाकू विमानों की भी जरूरत है। वास्तविकता तो यह है कि जिस ढंग से पुराने हो चुके मिग-21 तथा मिग-27 विमान दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे हैं उससे यह आभास होता है कि इन विमानोंं के 11 स्क्वाड्रनों को सेवामुक्त करने की जरूरत है। 

समीक्षा और सुझाव: पिछले लगभग साढ़े तीन वर्षों से मोदी सरकार ने सेना को दुश्मन देश से लगती सीमा पर दुश्मनों से निपटने के संबंध में अधिक अधिकार सौंपे हैं। प्रधानमंत्री की ‘मेक इन इंडिया’ वाली अवधारणा भी ठीक है। परन्तु पिछले लगभग 6 दशकों दौरान डी.आर.डी.ओ. सेना को जरूरत के अनुसार असाल्ट राइफलें उपलब्ध नहीं करवा सका। इस काम में जितना विलंब होगा, उतना ही खर्च बढ़ेगा और टैक्नोलॉजी भी बदलती जाएगी। इस समय रक्षा बजट जी.डी.पी. का मात्र 1.7 प्रतिशत है जो कि 1962 के चीन युद्ध के जमाने से भी कम है। ऐसे में रक्षा जरूरतें कैसे पूरी हो सकेंगी? संसदीय समिति ने बार-बार रक्षा बजट को बढ़ाकर तीन प्रतिशत करने की सिफारिश की है लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। 

सैन्य समुदाय को यह उम्मीद थी कि देश की महिला रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण सेना का खोया हुआ गौरव बहाल करके सैन्य जरूरतों को पहल के आधार पर पूरा करेंगी लेकिन खेद की बात है कि रक्षा मंत्रालय ने सेना को पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटकों द्वारा फैलाई गई गंदगी की सफाई करने का आदेश जारी कर दिया है। इससे सेना का स्वाभिमान आहत हुआ है। स्मरण रहे कि 1950 के दशक में सेना का प्रयोग आवासीय इमारतों व नहरों के निर्माण के लिए किया गया था। इसी का नतीजा था कि 1962 में चीन से हुए युद्ध में हमें शर्मनाक पराजय का मुंह देखना पड़ा था इसलिए रक्षा मंत्री को चाहिए कि आगामी 18 महीनों दौरान देश की रक्षा और सुरक्षा की ओर ध्यान दें।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!