अपनी दूसरी पारी में ‘लड़खड़ा’ गई मोदी सरकार

Edited By ,Updated: 04 Dec, 2019 03:07 AM

modi government  stumbles  in its second innings

केन्द्र की भाजपा सरकार अपनी दूसरी पारी में लगता है लड़ख़ड़ा गई है। मई 2019 में जनता ने भाजपा को पहले से अधिक सीटें दीं लेकिन मात्र 5 महीने बाद ही जनता अपने आप को ठगा सा महसूस कर रही है। नरेन्द्र मोदी को जनता ने वास्तव में, 2014 में एक चमत्कार मान कर...

केन्द्र की भाजपा सरकार अपनी दूसरी पारी में लगता है लड़ख़ड़ा गई है। मई 2019 में जनता ने भाजपा को पहले से अधिक सीटें दीं लेकिन मात्र 5 महीने बाद ही जनता अपने आप को ठगा सा महसूस कर रही है। नरेन्द्र मोदी को जनता ने वास्तव में, 2014 में एक चमत्कार मान कर वोट दिया था, वहीं दूसरी पारी में जनता को उनसे और अधिक अपेक्षाएं हो गई थीं। जनता को जिसमें गरीब मजदूर, किसान, मध्यम वर्ग शामिल हैं, सभी को लग रहा था कि नरेन्द्र मोदी उनके दिन बदलेंगे। इस दिशा में नरेन्द्र मोदी ने पहली पारी में किया तो बहुत किंतु वह नाकाफी था। व्यवस्था को भी बदला गया। जैसे नोटबंदी, जी.एस.टी. इनके परिणाम देर से आने थे। 

वर्तमान हालात में ऐसा लग रहा है कि इन दोनों ही मामलों में विपरीत परिणाम मिल रहे हैं। जी.एस.टी. से पहले के कर संग्रह के मुकाबले कम प्राप्ति हो रही है। राज्य सरकार वित्तीय मामलों में केन्द्र पर निर्भर होकर रह गई है, जिससे राज्यों में विकास के कार्यों में बाधा उत्पन्न हो रही है। इस व्यवस्था से छोटा-मंझोला व्यापारी परेशान हुआ, उसके खर्चे बढ़े और आमदनी को झटका लगा। जी.एस.टी. संबंधित कानूनों ने व्यापारी को अधिक डरा दिया और इससे संबंधित नौकरशाही को सरकार द्वारा दी गई आजादी ने उसे निरकुंश बना दिया। 

कुल मिलाकर व्यापारी वर्ग में भय का वातावरण उत्पन्न हो गया। रही-सही कसर आॢथक मंदी जिसे सरकार मानने को तैयार नहीं और इंटरनैट व्यापार ने पूरी कर दी। ग्रामीण क्षेत्रों में हालात और भी विकट हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश लोग असंगठित मजदूर के रूप में छोटी-बड़ी कम्पनियों में लगे हुए थे, जिनमें से ज्यादातर लोग नोटबंदी के बाद से ही छंटनी होकर अपने गांवों में आ गए। किसान की हालत भी बेहद चिंताजनक हो गई। वह चाहे उ.प्र. और महाराष्ट्र के गन्ना किसान हों या धान, कपास आदि उगाने वाले किसान हों। गन्ने की सही कीमत और समय पर भुगतान नहीं होने के चलते किसान की जेब भी खाली है। खाली जेब से किसान कब तक उधारी पर सामान खरीदेगा या व्यापारी ही कब तक उसे उधार देगा? 

किसान/मजदूर की खाली जेब ने गांवों में छोटे व्यापारियों की जेब भी खाली कर दी। उनका व्यापार आधा भी नहीं रहा और उनकी रही-सही कमर जी.एस.टी. ने तोड़ दी। भारत का अधिकांश क्षेत्र ग्रामीण है। गांवों में खपत घटने के कारण अनेक छोटे-बड़े उद्योगों में उत्पादन कम हुआ। इससे कर्मचारियों की और छंटनी की गई तथा बेरोजगारों में इजाफा होता गया। मैं कोई अर्थशास्त्री तो नहीं हूं परंतु इतना समझता हूं कि जो चेन घूम रही थी उसमें भारी गड़बड़ी हो गई है, जिसे सरकार समझ नहीं रही या फिर समझने की कोशिश भी नहीं कर रही है। 

केन्द्र सरकार लोगों के लिए कर भी बहुत कुछ रही है। जैसे घर-घर गैस पहुंचाना, बिजली, सड़क और अधिकांश घरों को पक्का करने की दिशा में सरकार जुटी है लेकिन जिस जनता के लिए सरकार ये सब कर रही है, उसकी जेब खाली होने के चलते उसे ये सब सूझ नहीं रहा है क्योंकि खर्चा करने को रुपए नहीं हैं। सरकार द्वारा बनवाए गए पक्के मकान और खाली रखा गैस का सिलैंडर खाने को आते हैं। मैं समझता हूं कि यही सब कारण है कि केन्द्र सरकार के अनेक राष्ट्रवादी कामों जैसे कश्मीर से धारा 370 व 35ए को खत्म करना, पाकिस्तान में हुई तीसरी सर्जिकल स्ट्राइक जैसी बातों से जनता में कोई उत्साह सा नहीं है। इसका कारण वही है यानी बेरोजगारों की बढ़ती फौज, परेशान किसान, बेहाल व्यापारी तो फिर। इन्हें अगर सच्ची खुशी देनी है तो सरकार को इन पर ध्यान केन्द्रित करना ही होगा। मेरे विचार से नोटबंदी के बाद सरकार ने डिजीटल लेन-देन को बढ़ावा दिया मगर ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी को लोग सर्वोपरि मानते हैं। 

सरकार को ध्यान देना होगा कि मजदूर और किसान लेन-देन नकदी में करते हैं। अधिकांश भारत में इन्हीं दोनों से हर प्रकार की चेन घूमती है। इसलिए सरकार इन क्षेत्रों में कम से कम डिजीटल लेन-देन को ज्यादा जोर न दे। नोटबंदी के बाद सरकार कहती है कि आयकर देने वाले बढ़े हैं और आयकर रिटर्न दाखिल करने वाले भी। मेरा मानना है कि कुछ चोर थे जो कर चोरी करते रहे थे। उन पर लगाम लगी है मगर उन्होंने फिर से रास्ते खोजने शुरू कर दिए हैं। रही बात ज्यादा रिटर्न दाखिल होने की तो नोटबंदी में डरे हुए लोगों ने ताबड़-तोड़ रिटर्न भरे, उन्हें डर था कि कहीं उनका पैसा जब्त न हो जाए। उनमें से अधिकतर का रिटर्न भरना निरर्थक और उनके खर्चे को बढ़ावा देने वाला है। 

कुछेक लोग जो प्राइवेट सैक्टर में 10-15 हजार रुपए महीना ले रहे हैं, उन्होंने भी डर के कारण रिटर्न भरा। हो सकता है कि इससे सरकार को आयकर के मद में ज्यादा राशि प्राप्त हुई हो। लेकिन जो बेरोजगार और मंदी के हालात हैं, उनसे हो सकता है सरकार को जी.एस.टी. जैसे करों में भारी कमी झेलनी पड़ रही हो। तो कुल मिलाकर कोई लाभ होता नहीं दिख रहा। खैर, केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह मंदी को स्वीकारे तथा उसके लिए जिम्मेदार कारणों को खोजे और लोगों के चेहरे पर सच्ची खुशियां लाए क्योंकि राष्ट्रवादी चीजें भी खाली जेब नहीं भातीं।-वकील अहमद

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