मोदी सरकार के ‘दोहरे दोष’

Edited By ,Updated: 10 Dec, 2019 03:39 AM

modi government s  double faults

2014 के बाद से मोदी सरकार द्वारा किए गए अधिक उल्लेखनीय सुधारों के बीच सरकार के कार्य करने के तरीके स्पष्ट हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में चल रहे जालसाजों पर नौकरशाहों की प्राथमिकता सर्वविदित है। इसने शासन को बेहतर बनाने और नौकरशाही में...

2014 के बाद से मोदी सरकार द्वारा किए गए अधिक उल्लेखनीय सुधारों के बीच सरकार के कार्य करने के तरीके स्पष्ट हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में चल रहे जालसाजों पर नौकरशाहों की प्राथमिकता सर्वविदित है। इसने शासन को बेहतर बनाने और नौकरशाही में सुधार लाने के लिए कई नीतियों को आगे बढ़ाया है। हालांकि, सरकार नौकरशाही में जाति और लिंग असंतुलन को दूर करने के लिए कदम उठाने से चूक रही है या बस चूक गई है। 

संसद को हाल ही में सूचित किया गया था कि सरकार के 82 सचिवों में से, सिर्फ चार ही अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदायों  से हैं। उन्हें दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग, भूमि संसाधन विभाग, फार्मास्यूटिकल्स विभाग और श्रम और रोजगार मंत्रालय में तैनात किया जाता है। 

इसी तरह, सरकार में सचिवों के रूप में नियुक्त महिलाओं की संख्या 82 में से केवल 12 है जबकि स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन और सचिव (पूर्व) विजय ठाकुर सिंह जैसे कुछ महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, जिनमें से अधिकांश मत्स्य पालन, आधिकारिक भाषा,  विकलांगता या युवा मामले जैसे विभागों और मंत्रालयों में तैनात हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से स्कूल शिक्षा सचिव रीना रे का हालिया निष्कासन अभी भी महिला बाबुओं के दिमाग में ताजा है। सूत्रों का यह भी कहना है कि केन्द्र में संयुक्त सचिव के रूप में काम करने वाले 700 अधिकारियों में से केवल 134 महिलाएं हैं। हालांकि, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए, यह एक ऐसी नौकरी से संबंधित है, जिससे केवल सांख्यिकीय रूप से नहीं बल्कि संवेदनशील तरीके से निपटने की आवश्यकता है। 

राजधानी में एन.ई. से आए अधिकारी
मोदी सरकार द्वारा विशेष ध्यान देने के लिए पूर्वोत्तर को चिन्हित किया गया है। बुनियादी ढांचा कनैक्टिविटी में सुधार और रोजगार के अवसर पैदा करने के प्रयासों पर जोर है। लेकिन पूर्वोत्तर समर्थक ‘‘झुकाव’’ को स्पष्ट रूप से राजधानी की नौकरशाही के भीतर परिलक्षित नहीं किया गया है। हालांकि कम से कम 10 सीनियर यू.टी. कैडर के आई.पी.एस. अधिकारी वर्तमान में दिल्ली पुलिस में सेवारत हैं, वे आमतौर पर प्रशिक्षण, वी.आई.पी. सुरक्षा या दिल्ली सशस्त्र पुलिस जैसे असाइनमैंट पर होते हैं, जोकि क्रम में काफी नीचे है। दिल्ली पुलिस में, अपराध, कानून और व्यवस्था, आर्थिक अपराध शाखा, लाइसैंस और यातायात में पोस्टिंग को अधिक ‘प्रतिष्ठित’ माना जाता है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इन विभागों में पूर्वोत्तर के कुछ अधिकारियों को पोस्टिंग दी जाती है। ऐसे कुछ उदाहरणों में, पी.एन. खमीरी, 2004 बैच के यू.टी. कैडर के अधिकारी, दिल्ली सशस्त्र पुलिस के डी.आई.जी. हैं, उसी बैच से मिक्की पाकु भी डी.आई.जी. पुलिस ट्रेनिंग कालेज और अपूर्वा बिथिन डी.आई.जी. प्रशिक्षण हैं। 

गुजरात में बढ़ती परेशानी
ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा के मुख्यमंत्री विजय रूपानी द्वारा चलाए जाने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में सब कुछ ठीक नहीं है। मोदी के भरोसेमंद नौकरशाह अनिल मुकीम को राज्य के नए मुख्य सचिव के रूप में वापस भेजने के कई अर्थ लगाए जा रहे हैं। मोदी के इस अचानक कदम पर अधिकांश पर्यवेक्षकों ने यह प्रतिक्रिया दी है। मुकीम की नियुक्ति ने गुजरात के सबसे वरिष्ठ बाबू अरविंद अग्रवाल की संभावनाओं को भी खतरे में डाल दिया है जो जे.एन. सिंह को राज्य में शीर्ष पद को सफल बनाने में सबसे आगे थे। 

चर्चा है कि अग्रवाल मुख्यमंत्री रूपानी के करीबी थे, जिन्होंने उनकी वरिष्ठता और दक्षता का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी। लेकिन स्पष्ट रूप से, इससे पी.एम.ओ. के साथ रिश्तों में अधिक गर्माहट नहीं आई है। सूत्रों का कहना है कि रूपानी की मुख्य सचिव के लिए पसंद को दरकिनार करते हुए पी.एम.ओ. ने दिखाया है कि वह खुश नहीं है कि गुजरात को कैसे संभाला जा रहा है। राज्य में एक ‘राजकोट कॉटरी’( रूपानी और उनके पसंदीदा बाबुओं को पढ़ा जाए) की चर्चा है, जिससे पी.एम.ओ. अधिक खुश नहीं है। मुकीम जाहिर तौर पर ‘‘चीजों’’ को सही तरीके से तय करने के लिए भेजे गए हैं, एक तरह से पी.एम.ओ. के लिए स्वीकार्य है। ऐसे में इस बारे में अपडेट के लिए यह सही जगह है।-दिल्ली का बाबू दिलीप चेरियन

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