भारत-पाक बैठक रद्द करने बारे क्या मोदी सरकार स्पष्टीकरण देगी

Edited By Pardeep,Updated: 30 Sep, 2018 04:14 AM

modi government will clarify about cancellation of indo pak meeting

इस  बात में कोई संदेह नहीं कि भारत-पाक के संबंध घटनाओं से भरपूर हैं और जब मुद्दों की बात आती है तो  अर्थपूर्ण उत्तर उपलब्ध करवाने की बजाय आमतौर पर ये परेशान करने वाले प्रश्र उठाते हैं। फिर भी इन मानदंडों के लिहाज से गत सप्ताह जो हुआ वह इस मान्यता को...

इस बात में कोई संदेह नहीं कि भारत-पाक के संबंध घटनाओं से भरपूर हैं और जब मुद्दों की बात आती है तो  अर्थपूर्ण उत्तर उपलब्ध करवाने की बजाय आमतौर पर ये परेशान करने वाले प्रश्र उठाते हैं। फिर भी इन मानदंडों के लिहाज से गत सप्ताह जो हुआ वह इस मान्यता को पूरी तरह से नकारता है। मोदी सरकार को इस बारे में काफी स्पष्टीकरण देना होगा। मगर क्या वह ऐसा करेगी? या हमें फिर मूर्ख बना दिया जाएगा? 

शुरूआत इस बात से करते हैं कि क्यों इस बार सरकार न्यूयार्क में भारतीय तथा पाकिस्तानी विदेश मंत्रियों के बीच बैठक के लिए सहमत हो गई? यह घोषणा बी.एस.एफ. के एक जवान की नृशंस हत्या के दो दिन बाद की गई, जिसका शव कटे हुए गले के साथ पाया गया। दरअसल एक दिन पहले रक्षा मंत्री ने खुलासा किया था कि भारतीय सेना ‘भी सिर काट रही है मगर वह उनका प्रदर्शन नहीं कर रही।’ इसके बाद एक और घोषणा की गई कि 29 सितम्बर को सॢजकल स्ट्राइक दिवस के तौर पर मनाया जाएगा और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीर में हिंसा का चक्र धीरे-धीरे और बिगड़ता जा रहा है, जिसके लिए पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह  जिम्मेदार हैं। तो विदेश मंत्रियों की बैठक निर्धारित करने का क्या यह सही समय था?

दूसरे, दावा कि यह मात्र एक बैठक थी न कि वार्ता, संदेह पैदा करता है। नि:संदेह दोनों मंत्री आतंकवाद पर चर्चा करते जिसमें कश्मीर की स्थिति शामिल होती। विदेश मंत्रालय ने भी इस बात की पुष्टि की कि करतारपुर गुरुद्वारा तक पहुंच का मुद्दा उठाया जाएगा। क्या यह सारभूत बात नहीं होती? और क्या यह एक वार्ता के बराबर नहीं होती? फिर भी बैठक के लिए सहमत होने के 24 घंटों बाद भारत सरकार ने बातचीत को रद्द कर दिया। इसने जो दो कारण बताए, वे प्रभावित करने से कोसों दूर हैं। वे केवल और प्रश्र पैदा करते हैं। पहला, इसमें शोपियां में तीन विशेष पुलिस अधिकारियों (एस.पी.ओज) की हत्या का हवाला दिया गया। 

हालांकि, जैसे कि पहले रिपोर्ट दी जा चुकी है कि इस वर्ष पहले ही 37 कश्मीरी पुलिस कर्मी आतंकवादियों की गोलियों का शिकार बन चुके हैं, जबकि बी.एस.एफ. के 13 जवान नियंत्रण रेखा अथवा अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास मारे जा चुके हैं। यदि पहले की 50 हत्याएं बैठक को नहीं रोक पाईं तो यह अत्यंत हैरानी की बात है कि तीन अन्य ने इसे असफल बना दिया। सरकार का बातचीत रद्द करने का दूसरा कारण और भी अजीब है। यह पाकिस्तानी डाक सेवा द्वारा जारी डाक टिकटें हैं, जिनमें कश्मीरी आतंकवादियों को गौरवान्वित किया गया है, विशेषकर बुरहान वानी को। इस बात में कोई संदेह नहीं कि डाक टिकट आक्रामक तथा उकसाने वाले हैं, मगर उन्हें जुलाई में जारी किया गया था, चुनावों से पहले जो इमरान खान की सरकार को सत्ता में लाए। दो महीनों बाद उनके उल्लेख का कोई तुक नहीं बनता। इससे यह पता चलता है कि सरकार को पहले उनके बारे में जानकारी नहीं थी और अगर यह सच है तो यदि परेशान करने वाला नहीं तो हैरान करने वाला जरूर है। 

अंतत: ऐसा दिखाई देता है कि बातचीत को रद्द करने का वक्तव्य जानबूझ कर सतर्कतापूर्ण लहजे तथा नम्र भाषा से अलग था, जैसा कि भारत अतीत में करता रहा है। इसकी बजाय  इसने पाकिस्तान के ‘दुष्ट एजैंडे’ तथा ‘पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के असल चेहरे’ बारे बात की। नि:संदेह इमरान खान भी अपने प्रस्ताव को लेकर उतने ही उत्सुक थे मगर पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्तों ने भारतीय वक्तव्य की अपनी आलोचना को दबाए रखा। तो वास्तव में हुआ क्या? क्या हमें कभी भी इस बारे बताया जाएगा? इस बार कम से कम हमारे समाचार पत्रों तथा टैलीविजन चैनलों ने सही प्रश्र उठाए, मगर सरकार चुप्पी की दीवार के पीछे छिप गई। विदेशी मामलों के मंत्रालय के प्रवक्ता के अलावा किसी को भी इस बारे स्पष्टीकरण देने के काबिल नहीं समझा गया। 

एक लोकतंत्र में यह अजीब व्यवहार है। नागरिकों के जानने के अधिकार को न केवल नजरअंदाज किया गया बल्कि उसका उल्लंघन किया गया। इस बीच पाकिस्तान को पीड़ित पक्ष की तरह देखने के लिए छोड़ दिया गया या कम से कम एक ऐसे पक्ष के तौर पर जो संबंध सुधारने के लिए पहला कदम उठाने का इच्छुक हो। घटनाओं का यह क्रम कितना अनोखा है।-करण थापर

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