अपने प्रयासों से सारा ‘श्रेय’ लूट रहे मोदी

Edited By ,Updated: 12 Oct, 2019 12:39 AM

modi is robbing all the  credit  from his efforts

महात्मा गांधी जोकि शांति, अहिंसा तथा आदर्शवाद के दूत हैं, आजकल प्रतीकवाद में रह रहे हैं तथा नई दिल्ली में वी.वी.आई.पी. उन्मुख वाले राजघाट से लेकर अहमदाबाद स्थित सुर्खियों में कम रहने वाले साबरमती आश्रम तक देशभर में उनकी जयंती अथवा पुण्यतिथियों के...

महात्मा गांधी जोकि शांति, अहिंसा तथा आदर्शवाद के दूत हैं, आजकल प्रतीकवाद में रह रहे हैं तथा नई दिल्ली में वी.वी.आई.पी. उन्मुख वाले राजघाट से लेकर अहमदाबाद स्थित सुर्खियों में कम रहने वाले साबरमती आश्रम तक देशभर में उनकी जयंती अथवा पुण्यतिथियों के विशेष अवसरों पर प्रभावशाली रस्मों में याद किए जाते हैं। इस बार उनकी 150वीं जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी उल्लेखनीय घोषणा के साथ सारा श्रेय लूट लिया कि उनके प्रयासों से 60 महीनों में 60 करोड़ से अधिक लोगों को 10 करोड़ शौचालयों की सुविधा उपलब्ध करवाने से भारत के गांवों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया है।

स्वच्छता ढांचे के साथ शौचालय उपलब्ध करवाना एक उपलब्धि
मोदी ने दावा किया कि उनकी इस उपलब्धि ने सारी दुनिया को ‘आश्चर्यचकित’ कर दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जमीनी स्तर पर अच्छी कार्यशील हालत में पानी की नियमित आपूर्ति तथा स्वच्छता ढांचे के साथ शौचालय उपलब्ध करवाना एक असामान्य उपलब्धि है। आज तक हम मोदी के शब्दों पर विश्वास करते हैं। उनका ईमानदारी तथा उद्देश्यपूर्ण ढंग से आकलन करने के लिए मीडिया कर्मियों को विश्वसनीय जमीनी रिपोट्स हेतु कुछ समय इंतजार करना होगा।
ऐसा कहना प्रधानमंत्री मोदी के विशाल प्रयासों पर संदेह करना या प्रश्र उठाना नहीं है। हम ‘स्वच्छ भारत’ के उनके प्रयासों तथा गांवों के सरपंचों को प्रेरित करने, जिन्होंने ‘स्वच्छता’ के लिए कड़ी मेहनत की, हेतु उनकी प्रशंसा करते हैं।

हालांकि मैं अत्यंत विभिन्नतापूर्ण अपने देश में गांधी को एक वृहद परिप्रेक्ष्य में देखता हूं। आपको याद होगा कि 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के शीघ्र बाद गांधी ने सबसे पहले राजनीति में ‘धर्म’ तथा धार्मिक प्रतीकवाद शामिल किया था। तब उन्होंने कहा था कि राजनीति को धर्म से तलाक नहीं दिया जा सकता। वर्तमान में मैं इस मुद्दे के लाभों तथा हानियों के विवाद में नहीं जाना चाहता। धर्म तथा राजनीति को वृहद राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य तथा युवा भारतीय बदलती मन:स्थिति के अनुसार आधुनिक राजनीतिक वाक्पद्धति की तर्कसंगकता में देखना चाहिए।

विडम्बना देखिए कि उनके समय में जिन्ना इस्लाम के माध्यम से मुसलमानों को गतिशील करने में सफल रहे। यहां गांधी के प्रतीकवाद को भी एक अखंड भारत को आगे बढ़ाने के लिए देखा जाना चाहिए।यद्यपि विभाजन के परिणामों से पूरी तरह से जानकार गांधी ने नेहरू के हितों को नजरअंदाज नहीं किया। यदि जिन्ना को भारत का प्रधानमंत्री बना दिया जाता तो सम्भवत: साम्प्रदायिक आधार पर उनके द्वारा पाकिस्तान के लिए मांग एक अलग कहानी होती। हालांकि यह एक अत्यंत पेचीदा तथा बहस योग्य मुद्दा है।

जिन्ना ने खुद को कायदे आजम के तौर पर स्थापित किया
1946 में भारत में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत अंतिम चुनाव हुए। मुस्लिम लीग ने मुस्लिम निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग सभी सीटें जीत लीं। जिन्ना ने खुद को भारतीय मुसलमानों के कायदे आजम के तौर पर स्थापित कर लिया, उनका अधिकृत प्रवक्ता, कांग्रेस तथा ब्रिटिश के साथ वार्ता में बराबर का भागीदार।
1946 में ब्रिटिश सरकार की ओर से एक कैबिनेट मिशन ने 1942 के क्रिप्स मिशन के आधार पर संवैधानिक व्यवस्था का प्रस्ताव दिया, जो कमजोर केन्द्र/मजबूत प्रांत फार्मूले के बदलाव पर आधारित था। नेहरू ने अंतत: इसे कांग्रेस के लिए खारिज कर दिया।

जिन्ना ने 15 अगस्त 1946 को ‘मुसलमानों के लिए सीधी कार्रवाई दिवस’ के तौर पर घोषित कर दिया। इसके साथ ही डर का काल शुरू हो गया। उपमहाद्वीप का विभाजन हो गया तथा मौतों व विनाश के भंवर से पाकिस्तान का जन्म हुआ। 1971  में वह भी दो हिस्सों में बंट गया, जब इसका बंगाली हिस्सा अलग होकर बंगलादेश बन गया। पीछे की ओर देखें तो आजादी के बाद भारतीय प्रशासनिक ढांचे का जोर एक संयुक्त प्रणाली का गठन करना था जिसका मकसद विकेन्द्रीयकरण तथा अधिक उलझे हुए समाज को जोडऩा था।

भारत की अनेकता को देखते हुए संयुक्त भारत का निर्माण करना था जोकि  जनसंख्या तथा लोगों के विशाल जनसमूह से उत्पन्न हुआ था। यह एक पार्टी प्रणाली के चलते संभव हुआ जिसने यकीनी बनाया कि  वैस्टमिंस्टर मॉडल की विरासत से मिली नौकरशाही ताकत तथा विकास की विचारधारा का केन्द्रीयकरण प्रक्रिया बन सके। प्रशासन की प्रणाली संकट की अवधि में थी और यह संकट निरंतर था। यह तो एक पहलू था। नेतृत्व की प्रकृति कोई कम महत्व वाली नहीं थी। शांति स्थापित करने की महात्मा गांधी की भूमिका को सभी जानते हैं।

नेहरू ने राजनीतिक प्रणाली को एक नई दिशा प्रदान की
इसके बाद बात करते हैं पंडित नेहरू की जिन्होंने आजादी के बाद राजनीतिक प्रणाली को एक नई दिशा प्रदान की। उन्होंने मूल सिद्धांतों को उपलब्ध करवाया जिस पर उन्होंने निरंतर जोर दिया और राष्ट्र के स्कूल मास्टर की भूमिका अदा की। इस प्रक्रिया में उन्होंने राजनीतिक भागीदारी, आर्थिक तथा सामाजिक लामबंदी, खुली प्रतिस्पर्धा तथा आलोचना के ढांचे का विस्तार करते हुए प्रणाली को इन सबका बोझ झेलने के काबिल बनाया। गांधी ने दर्जनों छोटे गांधियों को पछाड़ा मगर नेहरू में गांधी के स्व:प्रजनन तथा असुरक्षा को भांपने जैसी योग्यता की कमी थी। सरदार पटेल दुर्भाग्यवश ज्यादा देर नहीं रहे।

इससे ज्यादा कई नेहरू और पटेल एक प्रणाली के भीतर अस्तित्व में आए जिसमें जवाहर लाल नेहरू प्रमुख संचालक थे। देश भर में से उत्कृष्ट व्यक्ति उभरे तथा कुछ समय के लिए एक प्रभावशाली नेतृत्व कायम किए। उनके मुंह से निकले शब्द ही कानून थे। बड़े क्षेत्रों को जोड़ते हुए उन्होंने राजनीतिक ढांचे को और सुदृढ़ किया और उन्होंने अपने इर्द-गिर्द एक समर्थित नैटवर्क का आधार बुन दिया। वे लोग पारम्परिक तथा विकसित संस्थानों से आए तथा उन्होंने निरंतर मतभेदों तथा झगड़ों को मेलजोल से खत्म किया।

इन सबसे ऊपर वे लोग राजनीति के रंग में रंगे गए जोकि गांधी के सेवाभाव जैसे नैतिक कोड से जुड़े। यहां मैं कहना चाहूंगा कि जब कभी भी राष्ट्र से अनिवार्य मूल्यों, बारीकियों तथा नियंत्रणों, जो इसके साथ जुड़े होते हैं, छिन जाए तब यह अधिनायकवादी बन जाते हैं। तब यह फर्क नहीं पड़ता चाहे संविधान का कानूनी ढांचा कुछ भी हो। यह पाठकों पर छोड़ा जाता है कि वे आलोचनात्मक ढंग से ये जांचें कि हम कहां आ चुके हैं और कहां गलत हैं।

यह भी सोचा जाना चाहिए कि हमने गांधी तथा उनके मूल सिद्धांतों को राष्ट्रीय पटल से गायब कर दिया है। गणराज्य की कार्यप्रणाली में हम जो कुछ भी दोष निकालें वह प्रमुख तौर पर जमीनी स्तर से लेकर ऊपरी स्तर तक प्रशासन की गुणवत्ता के सिद्धांतों में गिरावट के चलते उत्पन्न हो रहा है। सत्ता की पताका को फहराने के लिए हम अपने देश में लोकतंत्र के लिए सब भूल जाते हैं।

संरचनात्मक विशेषताओं तथा प्रशासन की परिचालन संस्कृति को फिर से हमें अनिवार्य तौर पर जांचना होगा यदि हम अनुष्ठानों से ऊपर मूल्य उन्मुख लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण से गांधी जी का उत्थान चाहते हैं। अब बारी प्रधानमंत्री मोदी तथा उनके विश्वासपात्र अमित शाह की है।
हरि जयसिंह hari.jaisingh@gmail.com

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