‘मोदी ने किसानों के मुद्दे को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया’

Edited By ,Updated: 12 Feb, 2021 03:34 AM

modi made the issue of farmers a question of prestige

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों के मुद्दे को अपनी सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। यह दिखाता है कि कैसे वह देश की जमीनी हकीकतों से अलग हो गए हैं। इसने उनकी पहले भारत के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री वाली छवि को भी नुक्सान पहुंचाया...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों के मुद्दे को अपनी सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। यह दिखाता है कि कैसे वह देश की जमीनी हकीकतों से अलग हो गए हैं। इसने उनकी पहले भारत के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री वाली छवि को भी नुक्सान पहुंचाया है। अब उन्हें कमजोर तथा दिशाविहीन के तौर पर देखा जा रहा है। किसान नेता पी. कृष्णप्रसाद गलत नहीं थे। जब उन्होंने यह कहा था कि सरकार ने ‘प्रदर्शन स्थलों को खुली जेलों में’ बदल दिया है। दरअसल प्रदर्शन स्थल एक किलेबंदी जैसे दिखाई देते हैं क्योंकि पुलिस ने कंकरीट के बैरीकेड, कांटेदार तार, कील लगाकर तथा खंदकें खोद कर उन तक पहुंचने वाले सभी रास्तों को अवरुद्ध कर रखा है और उनके पीछे भारी सुरक्षाबल तैनात हैं। 

पी. कृष्णप्रसाद का कहना है कि ‘अंग्रेजों ने भी ऐसा नहीं किया था’। यह मोदी के सत्ता अधिष्ठान के बारे में कोई अच्छी बात नहीं। एक रिपोर्ट के मुताबिक उनकी प्रताड़ना के चलते 200 से अधिक किसान मारे जा चुके हैं। सरकारी अधिकारियों का दावा है कि आंदोलन मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक सीमित है। यद्यपि किसानों द्वारा उठाए गए मुद्दों को देश के कई हिस्सों में समर्थन मिल रहा है। केंद्र सरकार तथा आंदोलनरत किसानों के बीच ‘विश्वास की कमी’ स्पष्ट दिखाई देती है क्योंकि उन्हें डर है कि निजी क्षेत्र के अधिक नियंत्रण से उनके पहले से ही कम स्रोत तथा उनकी जमीन हड़प ली जाएगी। कुछ भी हो केंद्र राज्य सरकारों के साथ सलाह-मशविरा करने में असफल रहा है जो किसानों के मुद्दों को लेकर महत्वपूर्ण हिस्सेदार हैं। कोई हैरानी नहीं कि 6 बड़े राज्यों ने पहले ही अपनी विधानसभाओं में अलग विधेयक पारित करके 3 केंद्रीय कानूनों को खारिज कर दिया है। 

महत्वपूर्ण प्रश्र यह है कि केंद्रीय अधिकारी विश्वास की वर्तमान कमी को पाटने के लिए कितने गंभीर हैं? वर्तमान स्थितियों को देखते हुए कुछ भी आश्वस्त करने वाला दिखाई नहीं देता। गत दिवस किसानों द्वारा 3 घंटे का चक्का जाम शांतिपूर्वक गुजर गया। जो बात उल्लेखनीय है वह यह कि हरियाणा के रोहतक जिला में राष्ट्रीय उच्च मार्ग-9 पर मेदिना टोलप्लाजा पर बहुत बड़ी संख्या में महिलाओं ने चक्का जाम में भाग लिया। 

दुख की बात है कि अधिकारियों ने किसानों के आंदोलन को मोदी सरकार के खिलाफ ‘अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र’ का नाम दिया है। इसे सोशल मीडिया पर  कई जानी-मानी वैश्विक हस्तियों, जैसे कि पॉप स्टार रेहाना तथा युवा पर्यावरण कार्यकत्र्ता ग्रेटा थुनबर्ग द्वारा किसानों के प्रदर्शन को दिए गए समर्थन की रोशनी में देखा जाना चाहिए। यहां तक कि अमरीकी सरकार ने भी नई दिल्ली को किसानों के साथ वार्ता के लिए कहा है। हालांकि दिल्ली पुलिस के साइबर सैल ने ‘अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र’ के सिद्धांत के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की है और जांच प्रस्तावित है। मैं महसूस करता हूं कि केंद्र अनावश्यक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र के सिद्धांतों तथा जवाबी सिद्धांतों के बीच उलझ गया है जबकि इस समय जरूरत है कि वह प्रदर्शनकारी किसानों के साथ ‘गंभीर वार्ता’ करे। 

मोदी सरकार का कहना है कि वह बातचीत के लिए ‘खुली’ है। इसी समय इसने यह स्पष्ट किया है कि कृषि कानूनों को रद्द नहीं किया जाएगा। तीन कृषि कानूनों को कृषि क्षेत्र में प्रमुख सुधारों के तौर पर पेश किया गया है। इनसे आशा की जाती है कि बिचौलियों या दलालों की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसानों को देश में किसी भी जगह अपने उत्पाद को बेचने की स्वतंत्रता मिलेगी। किसान महसूस करते हैं कि नए कानून ‘एम.एस.पी. के सुरक्षा कवच को खत्म’ करने के लिए मार्ग प्रशस्त करेंगे। वे मंडी प्रणाली को भी खत्म कर देंगे जिससे किसान बड़े कार्पोरेट घरानों के रहमो-करम पर हो जाएंगे।  यह भी दावा किया गया है कि कार्पोरेट क्षेत्र कृषि को ‘एक पूंजीवादी आधिपत्य’ में बदल देंगे। इससे कृषि बाजार अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा बन जाएगा। 

इस संदर्भ में मैं मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा केंद्रीय अधिकारियों को दी गई सलाह याद दिलाना चाहूंगा। उन्होंने सही कहा कि किसानों का अपमान तथा उन्हें वापस लौटने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। उन्होंने केंद्र से उनसे बात करने तथा वर्तमान संकट का समाधान करने के लिए कहा है। उत्तर प्रदेश से एक जाट नेता सत्यपाल मलिक ने कहा कि यदि सरकार अपना असल इरादा जाहिर करे तो इस मुद्दे का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि किसान ‘मुद्दे के समाधान के लिए तैयार हैं यदि सरकार का इरादा हो।’ क्या मोदी सरकार किसानों के साथ बातचीत के लिए ‘खुले मन’ से आगे आएगी? मैं सुनिश्चित नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा दिखाई देता है कि मोदी सरकार एक दुविधा में फंस गई है। 

हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 फरवरी को राज्यसभा को बताया कि उनकी सरकार किसानों के साथ बातचीत के लिए तैयार है। उन्होंने आश्वासन दिया कि फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) था, है तथा जारी रहेगा। किसान यूनियनों के नेताओं ने संसद में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को पूर्णत: अपमानजनक तथा खोखली बातें  बताया है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार तीन कानूनों पर बातचीत शुरू करने को लेकर गंभीर है तो उसे ऐसा करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिएं। राष्ट्रीय किसान महासंघ के प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा कि, ‘‘एम.एस.पी. कानून के बिना उनका आश्वासन खोखली बात है। यही बात वार्ता को लेकर भी है। यदि सरकार सचमुच बातचीत फिर से शुरू करना चाहती है तो इसे बिना किसी नियम तथा शर्तों के निमंत्रण भेजना चाहिए।’’ 

निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री ने कृषि सुधारों की जरूरत बताई है। इसके साथ ही उन्हें एक विश्वसनीय बातचीत के लिए आंदोलनकारी किसानों तक पहुंच बनाने के लिए रास्ते तलाशने होंगे। इस उद्देश्य के लिए उन्हें आंदोलनकारी किसानों को ‘आंदोलनजीवी’ तथा ‘परजीवी’ बता कर मजाक उड़ाने की बजाय पारस्परिक विश्वास के पुल निर्मित करने की जरूरत है। ऐसी टिप्पणियां उनके पद की गरिमा के अनुरूप नहीं हैं। मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी को कार्पोरेट क्षेत्र के हिमायती तथा रक्षक की अपनी सार्वजनिक छवि को ठीक करने की जरूरत है।-हरि जयसिंह

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!