2019 के लिए मोदी को एक ‘नई कहानी’ की जरूरत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Jun, 2018 12:37 AM

modi needs a new story for 2019

2019 के आम चुनावों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित भविष्यवाणी यह होगी कि ये सबसे उग्र होंगे जिनकी अब तक के चुनावों में सबसे अधिक गंदे होने की बहुत आशंका है जिस कारण ये विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सत्ता के लिए सर्वाधिक आकर्षित करने वाली...

2019 के आम चुनावों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित भविष्यवाणी यह होगी कि ये सबसे उग्र होंगे जिनकी अब तक के चुनावों में सबसे अधिक गंदे होने की बहुत आशंका है जिस कारण ये विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सत्ता के लिए सर्वाधिक आकर्षित करने वाली लड़ाई होगी।

दूसरी सबसे सुरक्षित भविष्यवाणी यह है कि चुनावों से पहले विपक्षी एकता के कुछ नमूने देखने को मिलेंगे। अलग-अलग क्षेत्रों में ऐसे गठबंधनों के कारण भाजपा का अपने बूते पर बहुमत प्राप्त करना कठिन हो जाएगा। बहुत से वर्तमान विपक्षी नेताओं को लगता है कि भाजपा को एक और कार्यकाल मिलने से उनका राजनीतिक करियर समाप्त हो जाएगा। इसलिए वे अपने निजी राजनीतिक दावेदारियों को लेकर गम्भीर हैं। यही कारण है कि किसी न किसी तरह की विपक्षी एकता देखने को मिल सकती है।

तीसरी सबसे सुरक्षित भविष्यवाणी यह हो सकती है कि जब भाजपा पुन: चुनाव की राह देख रही है तो अर्थव्यवस्था उसके आड़े नहीं आएगी। मगर इससे भाजपा को कोई बहुत बड़ा लाभ भी नहीं होने वाला है। विस्तार में जाएं तो मैक्रोइकोनॉमिक्स का पुनरुत्थान भाजपा के लिए बिल्कुल ठीक समय पर हुआ है और सामान्य मानसून की सम्भावना को देखते हुए अधिकतर आॢथक सूचक सही दिशा में होंगे। इससे भाजपा को लाभ मिलेगा।

यद्यपि भाजपा किसी  आर्थिक उछाल की सवारी नहीं कर रही है जहां बड़ी संख्या में नौकरियां उत्पन्न हो रही हों। न ही इसकी समाज कल्याण की योजनाओं, जिनमें से बहुत-सी रचनात्मक हैं, ने कम आय वाले मतदाताओं की बड़ी संख्या के लिए जमीनी हकीकतों में कोई बदलाव किया है।

यहां हमें दो बातों पर ध्यान देना होगा। पहली यह कि किसी भी सरकार से परेशानी पैदा करने वाली इस पेचीदा संघीय प्रणाली में 5 वर्षों में बहुत बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती। इस मामले में भाजपा जब यह कहती है कि हमने शुरूआत की है मगर अभी और समय की जरूरत है तो वह पूरी तरह से गलत नहीं है। इससे मतदाता रोमांचित नहीं होंगे, यह बात उसे गलत नहीं बनाती।

दूसरी है ‘यदि’ की बात। प्रश्र यह है कि यदि वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) लागू नहीं किया गया होता और नोटबंदी न होती तो भाजपा आज एक बेहतर स्थिति में होती। यदि ये दो उग्र सुधार न किए गए होते तो अर्थव्यवस्था सम्भवत: कुछ  बेहतर स्थिति में होती और सत्ताधारियों को इससे मदद मिलती। यदि सरकार सुरक्षित खेलती तो इसके पुन: चुनाव जीतने के अवसर कुछ बेहतर होते।

इसका पूरा श्रेय मोदी को जाता है कि उन्होंने चुनावों के मद्देनजर अल्पकालिक महत्वपूर्ण विकास की बलि देकर मध्यम समय के रूपांतरण पर जोर दिया। यहां यह महत्वपूर्ण है कि मतदाताओं ने न तो नोटबंदी और न ही जी.एस.टी. के लिए मोदी को सजा दी। मगर यह इस बात का भी सबूत नहीं है कि वे 2019 में एक उन्मुक्त ढांचागत सुधारवादी के तौर पर उन्हें खुले दिल से पुरस्कृत करना चाहते हैं।

यह हमें चौथी सबसे सुरक्षित भविष्यवाणी की ओर ले जाता है जो कई मायनों में सबसे महत्वपूर्ण है। मोदी को प्रभावशाली तरीके से सत्ता में वापसी करने के लिए एक अन्य बड़े विचार, एक अन्य कहानी मतदाताओं को बताने तथा बेचने की जरूरत है।

सत्ता विरोधी लहर में मोदी का राजनीतिक करिश्मा अभी धूमिल नहीं पड़ा है। वह अभी भी सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेता बने हुए हैं। राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में राष्ट्रीय वोट होता है, सारी राजनीति हमेशा स्थानीय नहीं होती, यह विचार कोई चतुर पार्टी अथवा नेता पकड़ सकता है। मोदी ठीक इसी तरह के नेता हैं जो ऐसी कहानी बेच सकते हैं। मगर समस्या यह है कि फिलहाल उनके पास बेचने के लिए ऐसी कोई कहानी नहीं है।

2019 के लिए भाजपा का चुनावी नारा ‘साफ नीयत, सही विकास’ इस कार्य हेतु मुनासिब नहीं है। इसलिए कि यह एक बार फिर मोदी नीत भाजपा के ‘ईमानदार प्रशासन’ की कांग्रेस तथा विपक्ष के बिकाऊपन के लम्बे रिकार्ड के साथ तुलना का प्रयास करना चाहता है। मगर भ्रष्टाचार की कहानी चुनावी तौर पर अधिकांशत: बीत चुकी बात बन गई है। मतदाताओं को याद है कि मोदी एक ईमानदार नेता हैं तथा बहुत से मोदी विरोधी नेता ईमानदार नहीं हैं। मगर इसके लिए वे उन्हें दूसरी बार बहुत बड़ा पुरस्कार नहीं देंगे।

इसके साथ ही यह नारा मूलरूप से प्रभावित करने वाला नहीं है। यह लगभग कहता है कि ‘देखो, हमने प्रयास किया, बहुत प्रयास किया। एक अच्छी शुरूआत की, हमें एक और मौका दें।’ यह एक तरह से चुनावी बाजार में प्रशासन की कठिनाइयों की स्वीकारोक्ति है जहां भावनाएं आपको बेहतरीन परिणाम देती हैं।

इसलिए यह एक ऐसा नारा नहीं है, जो मोदी की राजनीतिक सेल्समैनशिप क्षमताओं का अधिकतम लाभ लेता है। भाजपा के प्रचार प्रमुख को 2019 के लिए एक ताजा कहानी की जरूरत है, जो मतदाताओं को दो चीजें बताएगी। पहली यह कि उनके पहले कार्यकाल ने उनके आम भारतीय को बेहतर बनाने के वायदे को ‘साबित’ किया है। दूसरी यह कि अपने दूसरे कार्यकाल के लिए उनके पास अन्य विचार हैं।

दूसरा स्वाभाविक तौर पर महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में मतदाता को एक नई कहानी बेचने का अर्थ यह नहीं है कि और अधिक ढांचागत सुधारों तथा/या समाज कल्याण योजनाओं की बात की जाए। मोदी के 2019 में पुन: चुनाव जीतने की परियोजना के लिए विचारों का अर्थ वे वायदे हैं जिन्हें यदि कुछ हकीकत में बदला जाए तो वे मतदाताओं को एक ऐसी कहानी बताएंगे जो उनकी कल्पना को पंख लगा दे। वह कहानी क्या है और कैसे वह उसे सुनाते हैं, यह इस बात को निर्धारित करेगा कि क्या प्रधानमंत्री मोदी 2019 में साफ तौर पर दूसरा कार्यकाल प्राप्त करते हैं या नहीं।    एस. चक्रवर्ती  (साभार ‘इकोनोमिक टाइम्स’)

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