पं. नेहरू की ‘गलतियों’ को सुधारने में जुटी मोदी-शाह की जोड़ी

Edited By ,Updated: 29 Aug, 2019 03:21 AM

modi shah duo engaged in correcting pandit nehru s  mistakes

हमारे देश का विभाजन सन् 1947 में हुआ। सरदार पटेल ने सभी रियासतों का भारत में विलय करने का फैसला अपने हाथ में लिया तो एक रियासत जम्मू-कश्मीर का विलय करने का फैसला पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने हाथ में लिया। पाकिस्तान ने 22 अक्तूबर 1947 को कश्मीर पर...

हमारे देश का विभाजन सन् 1947 में हुआ। सरदार पटेल ने सभी रियासतों का भारत में विलय करने का फैसला अपने हाथ में लिया तो एक रियासत जम्मू-कश्मीर का विलय करने का फैसला पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने हाथ में लिया। पाकिस्तान ने 22 अक्तूबर 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। 

हजारों हिन्दू-सिखों को कत्ल कर दिया। महाराजा हरि सिंह एवं तत्कालीन गवर्नर जनरल माऊंटबैटन कश्मीर के भारत में विलय के प्रस्ताव को मान गए। पूरा कश्मीर भारत का भाग बन गया। कश्मीर का भारत में विलय होने के बाद भारत की सेना कश्मीर घाटी में पहुंची और श्रीनगर का बहुत सा भाग कबायलियों से मुक्त करा लिया। भारत की सेना जब आगे बढ़ रही थी और कबायली आक्रमणकारी पीछे हट रहे थे, उस समय देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री  पंडित नेहरू ने एक हिमालयी भूल कर डाली। युद्ध विराम की एक तरफा घोषणा कर दी। सेना के अधिकारियों ने कुछ दिन और मांगे मगर उनकी मांग को भी ठुकरा दिया गया। 

पाक अधिकृत कश्मीर 
यह कश्मीर का वह क्षेत्र है जो इस समय पाकिस्तान के अधिकार में है, जिसको पी.ओ.के. भी कहते हैं। इस क्षेत्र की सीमाएं पश्चिम में पाकिस्तानी पंजाब, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वारवान गलियारे से, उत्तर में चीन के शिनजिआंग उइगर स्वायत्त क्षेत्र से और पूर्व में भारतीय कश्मीर से लगती हैं। इस क्षेत्र में पूर्वी कश्मीर का कुछ भाग, ट्रांस काराकोरम ट्रक्ट, पाकिस्तान द्वारा चीन को दे दिया गया। इस क्षेत्र को भारत में मिलाना है, जो भारत का ही भाग है। केरल की एक सभा में बोलते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि अब हम पी.ओ.के. पर बात करेंगे। नरेन्द्र मोदी और शाह की जोड़ी के सामने बहुत बड़ा काम है।

अनुच्छेद 370
पंडित नेहरू ने शेख अब्दुल्ला के कहने पर अनुच्छेद 370 संविधान में जोड़ कर कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया। इस अनुच्छेद के लागू होने से जम्मू-कश्मीर में अलग विधान, अलग झंडा, अलग प्रधानमंत्री हो गया। भारत का कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर में राज्य विधानसभा की अनुमति के बिना लागू नहीं हो सकता था। जम्मू-कश्मीर के लोगों को दोहरी नागरिकता प्राप्त थी। एक भारत की, एक प्रदेश की। दुनिया में यह पहला राष्ट्र था, जहां पर दो प्रधानमंत्री, दो झंडे और दो संविधान थे। 

अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के लिए डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना बलिदान दिया था। संविधान की मसौदा समिति के चेयरमैन डा. बी.आर. अम्बेदकर ने कहा था कि वह अनुच्छेद 370 को लागू करने के हक में नहीं हैं। मौलाना हसरत मोहनी, जो असैम्बली के मैम्बर थे, ने 17 अक्तूबर 1949 को कहा कि वह इसके हक में नहीं हैं। स्पैशल स्टेटस देने के बाद जम्मू-कश्मीर अपने को बाद में स्वतंत्र बनाएगा जिसमें  भारत के इलैक्शन कमीशन, सुप्रीम कोर्ट के आर्डर लागू नहीं होंगे। यहां तक कि जम्मू-कश्मीर में फिर से प्रधानमंत्री बनेगा। 

तिब्बत पर चीन का कब्जा
सन् 1949 में चीन में माओ की सरकार बनी। 1950 में चीन ने तिब्बत पर सीधी सैनिक कार्रवाई करके उसे अपने कब्जे में ले लिया। उस समय हमारे देश के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू थे, जिन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया। तिब्बत भारत और चीन के बीच ‘बफर स्टेट’ का काम करता रहा है। पंडित जी ने इसका विरोध नहीं किया, बल्कि चीन के साथ और अधिक मित्रता बनानी शुरू कर दी ताकि हिमालयी क्षेत्र सुरक्षित रहे। उन्होंने सबसे  बड़ी भूल यह कर दी कि तिब्बत को चीन का भाग मान लिया। सन् 1900 से पहले तक के भारत और चीन के इतिहास में कहीं यह प्रमाण नहीं मिलता कि तिब्बत चीन का भाग रहा है। 

राहुल सांकृत्यायन, जो साम्यवाद के प्रबल समर्थक माने जाते हैं, ने कई बार तिब्बत की यात्रा की। उनको ऐसा कोई प्रबल प्रमाण नहीं मिला जिससे वह कह सकें कि तिब्बत चीन का कभी हिस्सा रहा है। सन् 1900 से पहले तिब्बत एक आजाद स्टेट थी। तिब्बत का ऐतिहासक वृत्तांत लगभग 7वीं शताब्दी से मिलता है। तिब्बत लगभग 1600 फुट की ऊंचाई पर मध्य एशिया की उच्च पर्वत चोटियों कुनहुन एवं हिमालय के बीच स्थित है। 8वीं शताब्दी में यहां बौद्ध धर्म का प्रचार शुरू हुआ । सन् 1013 ईस्वी में नेपाल के बौद्ध प्रचारक धर्मपाल तथा अन्य प्रचारक बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए गए। सन् 1042 ईस्वी में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा बौद्ध का प्रचार करने के लिए तिब्बत गए थे। शाक्य वंशियों का शासन काल 1207 ईस्वी में शुरू हुआ था। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेजों ने यहां भी अपनी सत्ता 1788 में करनी चाही परन्तु वे अपने पैर यहां नहीं जमा सके। इतिहास के अनुसार 19वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी। 

तिब्बत को दक्षिण में नेपाल के साथ कई बार युद्ध  करना पड़ा और नेपाल ने इसको हराया। अपनी हार का बदला लेने के लिए तिब्बत ने चीन की सहायता ली और नेपाल से छुटकारा पा लिया। सन् 1906-07 ईस्वी में चीन ने तिब्बत पर अपना अधिकार बनाया। सन् 1912 ईस्वी में चीन ने तिब्बत को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। सन् 1913-14 में चीन, तिब्बत एवं भारत की बैठक शिमला में हुई जिसमें तिब्बत को दो भागों में बांट दिया गया।
1. अंतर्वर्ती तिब्बत : यह तिब्बत का पूर्वी भाग है, जिसमें वर्तमान चीन के चिंगहई तथा सिचुआन प्रांत हैं।
2. बाह्य तिब्बत : यह तिब्बत का पश्चिमी भाग है, जो बौद्धों के पास रहा । इस भाग का शासन लामा के पास रहा।
1983 में दलाई लामा की मृत्यु के  बाद चीन ने बाह्य तिब्बत पर कब्जा करना शुरू कर दिया। 14वें दलाई लामा ललित पालित ने 
चीनी भूमि पर 1940 में शासन भार संभाला। अक्तूबर 1950 में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी तिब्बत में दाखिल हुई। 

मई 1951 में तिब्बत के प्रतिनिधियों ने दबाव में आकर 17-सूत्री समझौता किया, जिसमें तिब्बत को स्वायत्तता देने का वायदा किया गया था। सितम्बर में चीन ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ल्हासा भेज दी। 10 मार्च 1959 को चीन के कब्जे के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ जो अब तक जारी है। 2002 में चीनी सरकार ने दलाई लामा के साथ बातचीत की लेकिन उसका कोई हल नहीं निकला। संघर्ष जारी है। पंडित नेहरू की तीन भयंकर भूलों के कारण देश को ये दिन देखने पड़ रहे हैं। अनुच्छेद 370 को मोदी ने समाप्त कर जो कहा उसको पूरा कर दिखाया। अभी पी.ओ.के. को वापस लेना है और तिब्बत को चीन से स्वतंत्र कराना है ताकि तिब्बत फिर से हमारी बफर स्टेट बन सके। हम जानते हैं ये दोनों कार्य बहुत ही कठिन हैं पर हमें विश्वास है मोदी और शाह की जोड़ी नामुमकिन को मुमकिन कर सकती है।-डा. बलदेव राज चावला(पूर्व स्वास्थ्य मंत्री, पंजाब)

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