मोदी-शाह की जोड़ी से निवेदन-‘महंगाई घटाओ’

Edited By Pardeep,Updated: 08 Sep, 2018 11:31 AM

modi shahs request for a couple mangaiya dadao

2019 का लोकसभा चुनाव सिर पर आ धमका है। जीतना तो मोदी को है ही, परन्तु एक उपकार उनकी और अमित शाह की जोड़ी भारतीय लोगों के सिर से महंगाई का बोझ घटा कर अवश्य करे। यदि मोदी सरकार लोकसभा चुनाव से पूर्व महंगाई घटा गई तो फिर उसकी बल्ले-बल्ले, वर्ना वोट तो...

2019 का लोकसभा चुनाव सिर पर आ धमका है। जीतना तो मोदी को है ही, परन्तु एक उपकार उनकी और अमित शाह की जोड़ी भारतीय लोगों के सिर से महंगाई का बोझ घटा कर अवश्य करे। यदि मोदी सरकार लोकसभा चुनाव से पूर्व महंगाई घटा गई तो फिर उसकी बल्ले-बल्ले, वर्ना वोट तो लोगों को अपना देना ही है। 

यह राजधर्म है कि जिस चीज से जनता त्रस्त हो, राजा उस त्रासदी से जनता की रक्षा करे। महंगाई जिस गति से आसमान छू रही है, वह जनता की चिंता का विषय है। गरीब तो बेचारा पहले ही मरा पड़ा है, महंगाई बंधी तनख्वाह में गुजारा करने वाले कर्मचारी को भी मार रही है। अत: मोदी-अमित शाह की जोड़ी पर अपना जोर तो नहीं, निवेदन ही है कि 2019 के चुनाव में जाने से पहले महंगाई की मार से जनता को बचाए। जनता इस जोड़ी का सजदा करेगी, वोट भी 2019 में देगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता के पास दूसरा विकल्प भी नहीं। अब इस विकल्प के सम्मान का उत्तरदायित्व मोदी और अमित शाह की जोड़ी पर है। राज धर्म भी इसी की ओर इशारा करता है। 

यदि यह जोड़ी मेरी बात से सहमत न हो तो राजधर्म को याद करवाने के लिए 26-27 अप्रैल, 1981 की भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय परिषद में सर्वसम्मति से पारित आर्थिक प्रस्ताव को याद जरूर करवाना चाहता हूं। राष्ट्रीय परिषद का यह अधिवेशन कोचीन में हुआ था। 1981 में भी जनता महंगाई से त्रस्त थी। स्थिति यह है कि तब केंद्र में कांग्रेस (आई) की सरकार थी और भाजपा विपक्ष की भूमिका में थी। तब अध्यापक आंदोलन में हमारा नारा एक यह भी हुआ करता था, ‘‘पंज रुपए किलो आटा, इंदिरा तैनूं शर्म दा घाटा।’’ खांड और तेल की किल्लत से जूझ रही जनता का एक अन्य अशोभनीय नारा हुआ करता था, ‘‘कांग्रेस राज दा देखो खेल, खा गई खंड और पी गई तेल।’’ 

आज 2018 आते-आते महंगाई का आलम यही है। 1981 का सारा आर्थिक प्रस्ताव तो स्थानाभाव के कारण नहीं रख सकता परन्तु उस प्रस्ताव की कुछ पंक्तियां केंद्र सरकार की सेवा में जरूर रखना चाहता हूं। प्रस्ताव पेज 13, पहला पैरा, ‘‘कांग्रेस (आई) के एक वर्ष के शासनकाल में विदेशी मुद्रा कोष घटकर 5 अरब 12 करोड़ रुपए रह गया है। बिजली उत्पादन में भारी कमी आई है। वर्ष की समाप्ति पर विदेशी व्यापार में 40 अरब रुपए का घाटा रहा। चाय, सोडा, सीमैंट, जूट, वस्त्र, लोहा, ट्रैक्टर और आटोमोबाइल जैसे महत्वपूर्ण उद्योगों में उत्पादन गिरा है। सरकार ने वायदा किया था कि शासन चलाएगी पर यह दावा सरकार का खोखला निकला। भ्रष्ट राजनेताओं, बेईमान उद्योगपतियों और अविवेकी अफसरशाहों के अपवित्र गठबंधन के परिणामस्वरूप आवश्यक चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं।

मुद्रास्फीति पर सरकार ने वायदा किया था कि काबू पा लिया जाएगा परन्तु मार्च 31, 1981 के वर्ष में मूल्यों में 18 प्रतिशत वृद्धि हो गई। 5 अप्रैल, 1980 को जो मूल्य सूचकांक 235.5 था, 4 अप्रैल 1981 को 271.8 हो गया। इस प्रकार मूल्य सूचकांक वर्ष में 36 प्रतिशत बढ़ गया। 1980-81 में वनस्पति घी के भाव 60 प्रतिशत, चना और लाल मिर्च के भाव 64 प्रतिशत, मसूर 51 प्रतिशत, ज्वार 33.2 प्रतिशत, गुड़ 31.4 प्रतिशत, मूंग 10 प्रतिशत के हिसाब से उछाल पर हैं। भाजपा मांग करती है कि गरीबी दूर करने, पूर्ण रोजगार दिलाने, काला धन रोकने, बुनियादी और प्रमुख उत्पादनों के मूल्यों में संसद की स्वीकृति के बिना सरकार कोई वृद्धि न करे। जीवनोपयोगी वस्तुओं की कीमतें सरकार कम करे। राष्ट्रीय परिषद कोचीन के अधिवेशन में पारित उस प्रस्ताव को आदर्श मान राजधर्म का पालन करते हुए सरकार महंगाई पर लगाम लगाए। 

पैट्रोल, डीजल, कच्चे तेल की मूल्य वृद्धि को कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियों ने चुनावी मुद्दा बना लिया है। विपक्ष एकजुटता की ओर बढ़ रहा है। नोटबंदी को विपक्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उछालना चाहता है। आदरणीय प्रधानमंत्री चुनाव में कूदने से पहले वर्तमान राजनीतिक स्थिति का आकलन कर लें। अभी समय है। महंगाई पर काबू पाने के लिए अर्थशास्त्रियों से विचार-विमर्श करें। यद्यपि मुद्रास्फीति अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है, पर भारत इस स्थिति से उबर सकता है यदि मोदी सरकार लोगों में बचत की आदत डाले। बैंकों को निर्देश जारी करे कि फिक्स्ड डिपाजिट में ब्याज दर ज्यादा मिलेगी। लोग रुपए की कम हो रही परचेजिंग पावर से भी डर रहे हैं। 

पाठक हैरान हैं कि अमरीकी डालर 70 से ऊपर उठ गया है। रोजमर्रा की जरूरी चीजों के भाव सारे देश में एक समान निर्धारित किए जाएं। बाजार में आवश्यक वस्तुओं की मांग और पूर्ति में संतुलन साधा जाए। जीवनोपयोगी वस्तुओं की होॄडग न हो, इस बारे सरकार चौकस रहे। मोदी सरकार को चुनाव में विपक्ष से नहीं, महंगाई से डरना चाहिए। विपक्ष को तो शायद मोदी साहिब काबू न कर सकें परन्तु मुझे विश्वास है महंगाई को जरूर काबू कर लेंगे। खास कर पैट्रोल, डीजल, गैस और गरीबों के लिए आवश्यक वस्तुओं की कीमतें जरूर नीचे लाएं। यह जोड़ी यदि महंगाई घटाने में अपने कौशल का करिश्मा दिखा गई तो 2019 का लोकसभा चुनाव स्वयं इस जोड़ी के दरवाजे पर विजय की दस्तक देगा।
 

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