अधिकतर इंसान जान लेने के खिलाफ

Edited By ,Updated: 09 Dec, 2019 01:27 AM

most humans are against killing

ज्यादातर पुलिस वाले एनकाऊंटर्स में भाग नहीं लेना चाहते। इसके परिणामस्वरूप भारत में लोगों का एक ऐसा वर्ग तैयार हुआ है जिन्हें एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट या शार्पशूटर कहा जाता है। इस दूसरे शब्द का इस्तेमाल गलत तौर पर किया जाता है और हम देखेंगे कि ऐसा क्यों...

ज्यादातर पुलिस वाले एनकाऊंटर्स में भाग नहीं लेना चाहते। इसके परिणामस्वरूप भारत में लोगों का एक ऐसा वर्ग तैयार हुआ है जिन्हें एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट या शार्पशूटर कहा जाता है। इस दूसरे शब्द का इस्तेमाल गलत तौर पर किया जाता है और हम देखेंगे कि ऐसा क्यों है। पहले यह देख लेते हैं कि एनकाऊंटर क्या होता है। यह एक ऐसी कार्रवाई है जिसमें लोगों को हिरासत में लिया जाता है और फिर उन्हें मार दिया जाता है। 

आमतौर पर इस तरह के काम सुनसान क्षेत्र में और ज्यादातर रात को होते हैं। हैदराबाद में यह प्रात: 3 बजे हुआ जब पुलिस के अनुसार वह चार संदिग्धों को क्राइम सीन की पुन: रचना (रीक्रिएट) करने के लिए ले जा रहे थे। इस तरह के मामलों में नजदीक से गोली चलाई जाती है और ज्यादातर पोस्टमार्टम की रिपोर्ट्स में यह बात सामने आती है। पुलिस अधिकारियों के पास जो हैंडगन होती है वह आमतौर पर दूर से शूट करने में इतनी अच्छी नहीं होती क्योंकि उनकी बैरल छोटी होती है और उसका निशाना 30 फुट या इससे अधिक दूरी पर असरदार नहीं होता। इसलिए शार्पशूटर शब्द का इस्तेमाल गलत है। आमतौर पर पुलिस वाले ऐसे मामलों में पीड़ित के शरीर से सटा कर गोली चलाते हैं अथवा जब व्यक्ति को पीटा जा चुका होता है और वह जमीन पर पड़ा हुआ होता है। ऐसी स्थिति में उसे मारने की जरूरत नहीं होती लेकिन यह केवल एक जिंदगी को खत्म करने का उनका जुनून होता है। 

90 के दशक में शुरू हुआ एनकाऊंटर कल्चर
एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट ऐसा पुलिस वाला होता है जो निहत्थे लोगों को नजदीक से मारने का इच्छुक होता है। मुम्बई में, जहां 1990 के दशक में एनकाऊंटर का कल्चर शुरू हुआ,   लोगों का एक ऐसा समूह तैयार हुआ जो एनकाऊंटर करके लोगों को मारता था। दया नायक (जिसके ऊपर अब तक 56 नामक फिल्म बनी थी) ने 80 लोगों को मारा था। विजय सालस्कर, जो खुद भी 26/11 के हमलों में मारा गया, ने भी लगभग इतने ही लोगों को मारा था। प्रदीप शर्मा ने 150 से अधिक लोगों को मारा था। इन तीनों लोगों पर कुछ गलत काम करने के भी आरोप लगे थे क्योंकि एक बार जब कानून के रखवालों की इस तरह की गतिविधियों को समर्थन मिलने लगता है तो अन्य गतिविधियों को रोकना मुश्किल हो जाता है। 

प्रश्र यह है कि अधिकतर पुलिस वाले ऐसा क्यों नहीं करते जबकि ऐसा करने पर ईनाम उपलब्ध है (देखिए कैसे हैदराबाद पुलिस से हीरो की तरह व्यवहार किया गया) ऐसा इसलिए है क्योंकि हममें से अधिकतर लोग किसी को मारना नहीं चाहते, यहां तक कि सैनिक भी। पाठकों को यह बात हैरान कर सकती है लेकिन यह सही है। एस.एल.ए. मार्शल नामक एक अमरीकी सैनिक ने इस चीज का अध्ययन किया था और उसने मैन अगेंस्ट फायर में इस बात का जिक्र किया है। मार्शल ने अपने शोध में पाया कि सैनिक आमतौर पर हवा या जमीन पर फायर करते थे क्योंकि वे नैचुरल किलर नहीं थे और वे दुश्मन को नुक्सान नहीं पहुंचाना चाहते थे। यहां तक कि उनके ऊपर गोलीबारी किए जाने के दौरान भी। 

मार्शल का यह अनुभव द्वितीय विश्व युद्ध के बारे में था लेेकिन वियतनाम के युद्ध के संबंध में भी ऐसा ही था जहां अमरीकी सैनिकों ने एक-एक वियतनामी को मारने के लिए 50-50 हजार गोलियां चलाईं। नेपोलियन युद्धों के दौरान किए गए अध्ययन से भी ऐसे ही निष्कर्ष सामने आए थे। जब राइफलमैन की एक लाइन को दुश्मन की लाइन के समान दूरी पर रखी गई फैब्रिक शीट पर शूट करने को कहा गया तो उनका निशाना जिंदा लोगों पर लगाए गए निशाने से सौ गुणा बेहतर था।

अधिकतर इंसान भोले-भाले होते हैं और हममें से कुछ ही ‘भेडि़ए’ होते हैं जो किसी को मारने के इच्छुक होते हैं। अधिकतर इंसान किसी की जान नहीं लेना चाहते और हमारे पुलिस मैन भी हमारी ही तरह होते हैं। यह सौभाग्य की बात है क्योंकि भारत में गंभीर अपराधों की दोषसिद्धि दर केवल 25 प्रतिशत है। इसका अर्थ यह है कि 75 प्रतिशत मामलों में पुलिस गलत संदिग्ध को पकड़ लेती है और ऐसे में संबंधित पुलिस अधिकारी के लिए ऐसे व्यक्तियों का एनकाऊंटर करना उन्हें नैतिक तौर पर परेशानी में डाल देता है। 

पुलिस वालों द्वारा सीधे तौर पर किसी की हत्या में शामिल न होने के पीछे एक कारण यह भी है कि यह एक अपराध है जो उन्हें मुश्किल में डाल सकता है। इसलिए एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट तैयार हुए। किसी भी सभ्य देश में एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट नहीं होते। बेशक, अच्छे लोकतांत्रिक देशों में एनकाऊंटर नहीं होते। विकसित देशों में यह संभव नहीं है कि पुलिस के लोग इस तरह के काम करें और वे जांच और मुकद्दमों से बच जाएं। अमरीकी लोग यह कहना अच्छा समझते हैं कि वह कानून का देश है न कि लोगों का देश। भारत फिलीपींस जैसे देशों की तरह है जहां पुलिस को कानून तोडऩे के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और हत्या जैसे अपराध को हीरो की तरह कार्य करने तथा न्याय के तौर पर सैलीब्रेट किया जाता है। 

बिना ट्रायल मारना न्याय नहीं
कोर्ट में केस चलाए बिना किसी को मार देना न्याय नहीं है। यदि इसी प्रकार कुछ लोगों को घेर कर गोली मारी जानी है तो फिर अपराधी को पहचानने, जांच, पूछताछ तथा फोरैंसिक विशेषज्ञों की सहायता लेने की क्या जरूरत रह जाएगी और ऐसी स्थिति में दुनिया हमारी न्यायिक प्रणाली को एक विशेष नजरिए से देखती है। पंजाब नैशनल बैंक घोटाले में आरोपी मेहुल चौकसी को भारत को सौंपे जाने के खिलाफ चौकसी ने एक तर्क यह दिया था कि उसे मारा जा सकता है। चाहे इसे उस मामले में एक तर्क के तौर पर स्वीकार किया गया हो अथवा नहीं।

यह कहना मुश्किल है कि यह झूठ है। निर्भया मामले में एक आरोपी जेल में फंदे से लटकता पाया गया था और उसके वकील का आरोप था कि उसकी हत्या की गई है, और संभव है कि ऐसा हुआ हो। मानवाधिकार कार्यकत्र्ताओं ने हैदराबाद में हुए एनकाऊंटर को लिंचिंग की संज्ञा दी है (और वास्तव में जया बच्चन ने संसद में इस लिंचिंग की मांग की थी)। जो कुछ हुआ है वह हमारी संस्कृति, हमारे नेताओं, हमारे मीडिया तथा आम जनता की सोच को दर्शाता है।-आकार पटेल

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