Edited By ,Updated: 24 Mar, 2021 02:38 AM
बात 1993 की है, तब देश में नरसिम्हाराव की सरकार थी। गृह सचिव थे एन.एन.वोहरा। उस समय एन.एन. वोहरा ने मुम्बई के अंडरवल्र्ड नेताओं और अफसरशाही पर एक रिपोर्ट तैयार की थी। यहां अफसरशाही से मतलब मुम्बई पुलिस से ही था।
बात 1993 की है, तब देश में नरसिम्हाराव की सरकार थी। गृह सचिव थे एन.एन.वोहरा। उस समय एन.एन. वोहरा ने मुम्बई के अंडरवल्र्ड नेताओं और अफसरशाही पर एक रिपोर्ट तैयार की थी। यहां अफसरशाही से मतलब मुम्बई पुलिस से ही था। वोहरा कमेटी में इकबाल मिर्ची के बारे में बताया गया था। इकबाल मिर्ची कभी मुम्बई में फुटपाथ पर पान, बीड़ी, सिगरेट की थड़ी लगाया करता था लेकिन देखते ही देखते वह हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा ड्रग माफिया बन गया।
उस समय मुम्बई के एंटी नारकोटिक सैल के डी.सी.पी. हुआ करते थे राहुल राय। वोहरा कमेटी के अनुसार राहुल राय इकबाल मिर्ची के सम्पर्क में आया और दोनों साथ काम करने लगे। राहुल राय नब्बे के दशक के आखिरी सालों में अचानक गायब हो गया। वह दरअसल अमरीका चला गया था। संयुक्त राष्ट्र में उसे भारत की तरफ से भेजा गया था डैपुटेशन पर, लेकिन कार्यकाल खत्म होने के बाद भी राहुल राय भारत वापस नहीं लौटा।
कई दफा भारत सरकार ने बुलावा भेजा लेकिन फिर भी नहीं लौटा। उसकी फाइलें खंगाली गईं तो पता चला कि इकबाल मिर्ची का सारा आपराधिक रिकार्ड राहुल राय के कार्यकाल में गायब हो गया था। सारे सबूत, सारे कागज, सारे दस्तावेज गायब थे। 1993 के बाद इकबाल मिर्ची दुबई होते हुए लंदन भाग गया था। उसे भारत सरकार वापस देश में नहीं ला सकी क्योंकि भारत सरकार के पास जरूरी सबूत और दस्तावेज नहीं थे। यह दस्तावेज और सबूत इसलिए नहीं थे क्योंकि डी.सी.पी. राहुल राय ने उन्हें नष्ट कर दिया था। बाद में खुफिया एजैंसियों को पता चला था कि इकबाल मिर्ची ने उसी राहुल राय की हत्या की साजिश रची थी जिसने इकबाल मिर्ची को इकबाल मिर्ची बनाने में मदद की थी।
वोहरा कमेटी की रिपोर्ट का यह हिस्सा बताता है कि मुम्बई में माफिया और पुलिस का किस तरह चोली दामन का साथ रहा है। अब जिस तरह इकबाल मिर्ची ने राहुल राय को मार डालने की कोशिश की तो उस पर भी मुम्बई पुलिस के अफसरों ने खुद को बचाने का अभियान चलाया। यह अभियान था फर्जी एनकाऊंटर का। दरअसल 1993 से 2003 के बीच के दस सालों में मुम्बई में अंडरवल्र्ड और माफिया की तूती बोलती थी। उस समय के मुम्बई पुलिस के कमिश्नर रोनी मेनडोंका ने डी.जी. पुलिस अरविन्द इनामदार को 17 ऐसे अफसरों की सूची सौंपी थी जिनके अंडरवल्र्ड से रिश्ते बताए जाते थे। अब एक तरफ ऐसे अफसरों का पर्दाफाश भी करना था और दूसरी तरफ माफिया का खत्म करना था लिहाजा मुम्बई पुलिस में एनकाऊंटर स्पैशलिस्टों को यह काम सौंपा गया।
1993 से लेकर 2003 के दस सालों में माफिया के लिए काम करने वाले करीब 600 लोग मार गिराए गए। यह लोग दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन और अरुण गवली के गिरोह के लिए काम करते थे। अब यह बताने की जरूरत है कि 600 लोगों में से बहुत से गुंडे फर्जी एनकाऊंटर में मार गिराए गए। अभी मुकेश अंबानी के घर के बाहर गाड़ी में जिलेटिन रखने और मुकेश अंबानी को धमकी देने की जो कहानी सामने आ रही है और उसमें ए.एस.आई. सचिन वाजे का नाम आ रहा है तो आप कल्पना कीजिए कि उस दौर में ऐसे एक दर्जन से ज्यादा सचिन वाजे हुआ करते थे।
कुल मिलाकर अब तक छप्पन फिल्म में नाना पाटेकर के रोल को याद कीजिए। कैसे वह फर्जी एनकाऊंटर करता है, अंडरवल्र्ड से रिश्ते रखता है, एक गैंगस्टर की मदद से दूसरे गैंगस्टर को खत्म करता है, खुद की पत्नी की हत्या होने के बाद कैसे गैंगस्टर की मदद से देश से बाहर निकलता है और कैसे पत्नी के हत्यारे उसी गैंगस्टर को मार डालता है। ऐसी ही उलझी हुई कहानी इस समय भी हमें दिखाई दे रही है। जूलियो रिबैरो महाराष्ट्र में पुलिस के मुखिया यानी डी.जी. रहे हैं। उन्हें पंजाब में आतंकवाद के खात्मे के लिए भी डी.जी. बनाकर भेजा गया था। गुजरात में भी वह डी.जी. रहे हैं। उन्होंने अपने एक लेख में एक सच्चा किस्सा लिखा है।
मुम्बई क्राइम ब्रांच की जिम्मेदारी एक बार महिला पुलिस अधिकारी मीरन बोरवंकर को सौंपी गई थी। उस समय मुम्बई में बिल्डरों और फिल्म निर्माताओं पर माफिया की नजर थी। उन्हें धमकियां मिलती रहती थीं। बम से उड़ा देने की, गोली मार देने की, चेहरे पर तेजाब फैंक देने की, अगवा करने के बाद करोड़ों की फिरौती मांगने की। ऐसी शिकायतें आए दिन आया करती थीं। आई.पी.एस. मीरन को लगा कि ऐसी धमकियां तब ज्यादा हो जाती हैं जब क्राइम ब्रांच में कथित एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट ज्यादा होते हैं तो मीरन ने ऐसे सारे स्पैशलिस्ट पुलिस थानों में वापस भेज दिए।
यह उदाहरण भी बताता है कि मुम्बई में पुलिस, माफिया और नेताओं का किस तरह का नैक्सेस है। कुछ नाम याद आते हैं-प्रदीप शर्मा, दया नायक, विजय सालास्कर, अरुण बोर्डे, रविन्द्र आंग्रे, प्रफुल्ल भौंसले आदि नाम उस समय बहुत चर्चा में हुआ करते थे। कहा जाता है कि दया नायक पर ही अब तक छप्पन फिल्म बनी थी। दया नायक के गांव में एक छोटे से जलसे में शामिल होने उस समय अमिताभ बच्चन भी गए थे।
इससे पता चलता है कि एनकाऊंटर स्पैशलिस्टों की फिल्म सितारों को कितनी जरूरत रहती थी। मुम्बई पुलिस में ऐसे काफी लोग रहे हैं जिन्होंने रिटायरमैंट के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो कर चुनाव में हाथ आजमाया। लेकिन फिलहाल हम ऐसे पुलिस अधिकारियों की बात कर रहे हैं जिनकी छवि विवादास्पद रही और जिनके माफिया से रिश्ते या बताए गए या फिर फर्जी एनकाऊंटर में उनका रोल पाया गया।
अब सिर्फ खाकी ही दागदार है और खादी साफ-सुथरी है ऐसा नहीं कहा जा सकता। मुम्बई पुलिस कमिश्नर पद से हटाए गए परमबीर सिंंह ने गृहमंत्री अनिल देशमुख पर सौ करोड़ रुपए का हफ्ता हर महीने वसूलने का दबाव डालने का आरोप लगाया है। उन पर पुलिस के ट्रांसफर पोसिं्टग में भी पैसा खाने का आरोप लग रहा है। यह भी कोई नई बात नहीं है। उल्टे अगर हम महाराष्ट्र के नेताओं की बात करें तो तस्वीर काफी मैली नजर आती है । ए.डी.आर. और इलैक्शन वाच की रिपोर्ट कहती है कि महाराष्ट्र की विधानसभा के 288 विधायकों में से 176 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 113 पर तो गंभीर किस्म के मामले दर्ज हैं।
गंभीर मामले यानी हत्या, हत्या की कोशिश, रेप, अगवा करना आदि। यहां भी कोई पार्टी दूध की धुली नहीं है। भाजपा के 105 विधायक हैं। इनमें से 65 पर आपराधिक मामले हैं। इसमें से 40 पर गंभीर मामले दर्ज हैं। इसी तरह शिवसेना के 76 विधायकों में से 31 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसमें से 26 पर गंभीर आरोप हैं। एन.सी.पी. के कुल 54 विधायक हैं। इनमें से 32 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। कांग्रेस की बात करें तो उसके 44 विधायक हैं जिसमें से 26 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसमें से 15 पर गंभीर मामले दर्ज हैं।
अब आते हैं महाराष्ट्र के सांसदों पर। कुल 48 सांसद हैं। भाजपा के 23 सांसद हैं। इसमें से 13 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसमें से 6 पर गंभीर मामले दर्ज हैं। शिवसेना के 18 सांसद हैं। उसमें से 11 पर आपराधिक मामले हैं। इसमें से पांच पर गंभीर मामले दर्ज हैं। एन.सी.पी. के चार सांसद हैं। दो पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।-विजय विद्रोही