कुवैत में ‘नरक’ भोगने को मजबूर हुई मुंबई की समाज सेविका

Edited By Pardeep,Updated: 26 Dec, 2018 05:10 AM

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मुम्बई में बांद्रा की एक समाज सेविका को कुवैत में 3 महीने नरक जैसी स्थितियों में गुजारने पड़े, जहां उसे रोज लगातार 15 घंटों तक घरेलू नौकरानी के तौर पर काम करने के लिए मजबूर किया गया और यातनाएं दी गईं। अपने मालिक के घर से भागने तथा कुवैत में भारतीय...

मुम्बई में बांद्रा की एक समाज सेविका को कुवैत में 3 महीने नरक जैसी स्थितियों में गुजारने पड़े, जहां उसे रोज लगातार 15 घंटों तक घरेलू नौकरानी के तौर पर काम करने के लिए मजबूर किया गया और यातनाएं दी गईं। अपने मालिक के घर से भागने तथा कुवैत में भारतीय दूतावास से मदद मांगने के बाद आखिरकार वह गत दिवस अपने घर वापस लौट आई। एक एजैंट, जिसने उसके नग्नावस्था में चित्र खींचे थे, उसे कुवैत में गिरफ्तार कर लिया गया है। 

3 बच्चों की मां सायरा शेख (38) एक सामुदायिक विवाह के लिए चंदा एकत्र कर रही थी जब उसकी मुलाकात एक प्लेसमैंट एजैंसी के मालिक कासिम एस. से करवाई गई। कासिम ने शेख से पूछा कि क्या वह और उसका पति हैदर कुवैत में काम करना पसंद करेंगे। शेख ने बताया कि उसे कहा गया था कि वहां असंगठित क्षेत्र में रोगियों की देखभाल करने का काम है। उन्हें हैदराबाद हवाई अड्डे से कुवैत के लिए उड़ान भरनी थी लेकिन जब जाने की तिथि आई, हैदर का वीजा तैयार नहीं था जबकि उसके वीजे पर विमान में सवार होने से कुछ घंटे पहले ही मोहर लगी थी। 6 सितम्बर को वह भारत से बहुत-सी महिलाओं के साथ कुवैत पहुंच गई। अली नामक एजैंट उनसे मिला और कहा कि वह उनके दस्तावेज आगे बढ़ाएगा। 

उसे तब बहुत झटका लगा जब एजैंट ने उसे एक अरब परिवार के लिए घरेलू नौकरानी के तौर पर काम करने हेतु एक मैंशन में भेज दिया। मैंशन में 25 पारिवारिक सदस्य तथा एक दर्जन से अधिक कमरे थे। उसे खाना बनाने तथा साफ-सफाई का काम सौंपा गया। शेख, जिसने वहां एक महीने के लिए काम किया, ने बताया कि उसका कार्य सुबह लगभग 6 बजे शुरू होता था तथा बिना रुके रात 11 बजे तक चलता था। उसका पासपोर्ट रख लिया गया था। कुछ फोन कॉल्स करने की अपने मालिक से मिन्नतें करने के बाद उसने अली से सम्पर्क किया और कहा कि यह वैसा काम नहीं था जैसे का उसके साथ वायदा किया गया था। 

अली ने उसके मालिक से उसका वेतन लिया और शेख को अपने घर ले गया। अगले 22 दिनों तक उसे अली के घर में काम करने को बाध्य किया गया, विरोध करने पर उसकी पिटाई की गई तथा एक बार नंगी कर उसकी तलाशी ली गई। जब उसे नंगी किया गया तो अली ने अपने सैलफोन पर उसके चित्र खींचे तथा उसका मोबाइल भी उससे ले लिया गया। शेख ने आरोप लगाया कि उसे कई बार बेहोशी की दवा मिलाकर पेय पिलाया गया जिससे वह बेहोश हो गई। घरेलू नौकरानी के तौर पर काम करने के लिए राजी होने पर अली ने उसके लिए एक अन्य अरब परिवार में काम ढूंढ लिया। सायरा शेख ने बताया कि उसका नया मालिक उसे पीटता नहीं था लेकिन काम करने के घंटे बहुत कड़े थे। वह भागने का रास्ता खोजने के लिए हर रोज टैरेस पर जाकर आसपास की सड़कों व गलियों का मुआयना करती थी मगर उसे स्थानीय भाषा, मुद्रा अथवा भौगोलिक स्थिति की जानकारी नहीं थी। 

इस समय के दौरान वह मुम्बई में अपने पति को कुछ कॉल्स करने में सफल रही। उसके पति ने सांताक्रूज स्थित हारमनी फाऊंडेशन से सम्पर्क किया, जिसमें वह काम कर चुका था। फाऊंडेशन के चेयरमैन अब्राहम मथाई ने बताया कि उन्होंने विदेश मंत्रालय से सम्पर्क किया और उन्होंने आगे कुवैत स्थित भारतीय दूतावास से उनकी बात करवा दी। मथाई ने सायरा को संदेश पहुंचवा दिया कि उसे भाग कर सुरक्षा के लिए भारतीय दूतावास पहुंचना पड़ेगा।

दो दिसम्बर को वह निकल भागी और एक टैक्सी पकड़ ली। उसने बताया कि वह बहुत डरी हुई थी क्योंकि उसके पास कोई दस्तावेज नहीं था। ड्राइवर अच्छा व्यक्ति निकला और उसने शेख से कोई पैसा नहीं लिया। दूतावास में उसे 60 अन्य महिलाएं मिलीं, जो वैसी ही परिस्थितियों में भाग निकली थीं। दूतावास ने पुलिस को शिकायत की और अली को पकड़ लिया गया। उसके खिलाफ पहले ही 4 शिकायतें दर्ज थीं। उसे जेल भेज दिया गया। उसके द्वारा उपलब्ध करवाई गई जानकारी के अनुसार अधिकारियों ने उसके पहले मालिक से उसका पासपोर्ट हासिल कर लिया। 16 दिन बाद सायरा शेख वापस लौटी तथा गत मंगलवार 18 दिसम्बर को फिर अपने परिवार से आ मिली। 

कुवैत स्थित भारतीय दूतावास के द्वितीय सचिव (कार्मिक) यू.एस. सिबी ने बताया कि यदि कर्मचारी प्रायोजक के घर से भाग निकलते हैं तो प्रायोजक आमतौर पर उसका पासपोर्ट लौटाने का इच्छुक नहीं होता। उन्हें कुवैत में घरेलू कर्मचारी कार्यालय में प्रत्यावर्तन की प्रक्रिया चलानी पड़ती है जिसमें एक महीना लग जाता है। विदेश मंत्रालय ने उन लोगों के पंजीकरण के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफार्म तैयार किया है, जो जी.सी.सी. (गल्फ को-आप्रेशन कौंसिल) देशों में काम करना चाहते हैं। सिबी ने बताया कि यदि कोई किसी अन्य एजैंसी के माध्यम से वहां जाता है तो उनके पास उसके प्रायोजक बारे सूचना नहीं होती और प्रायोजक की पहचान होने तक प्रत्यावर्तन की प्रक्रिया नहीं शुरू की जा सकती।-एन. नाटु

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