गांव के मुस्लिम मृत परिजनों को घर में ही दफनाने को मजबूर

Edited By ,Updated: 22 Jun, 2019 04:21 AM

muslim dead relatives of the village were buried in the house

‘‘आप मेरी दादी की कब्र पर बैठी हैं’’, सलीम शाह ने आगाह करते हुए कहा। सलीम ने बताया उन्हें यहीं बैठक में दफन किया गया था। उत्तर प्रदेश में आगरा स्थित अछनेरा ब्लॉक के गांव 6 पोखर के इन मुट्ठी भर मकानों में रहने वाले परिवारों के घर कब्रिस्तान बन चुके...

‘‘आप मेरी दादी की कब्र पर बैठी हैं’’, सलीम शाह ने आगाह करते हुए कहा। सलीम ने बताया उन्हें यहीं बैठक में दफन किया गया था। उत्तर प्रदेश में आगरा स्थित अछनेरा ब्लॉक के गांव 6 पोखर के इन मुट्ठी भर मकानों में रहने वाले परिवारों के घर कब्रिस्तान बन चुके हैं। गांव में कब्रिस्तान न होने से ये लोग अपने मृत परिजनों को घरों में ही दफनाने को मजबूर हैं। इसलिए मृतक यहां रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। यहां यह भी देखा गया कि महिलाएं जहां खाना बना रही थीं, उसके बगल में ही उनके बच्चों की कब्रें हैं। घर के पिछवाड़े जहां बुजुर्ग सुस्ता रहे थे वहां भी कब्रें ही कब्रें थीं। 

गरीब और भूमिहीन 
एक घर में रिंकी बेगम ने बताया कि उनके घर के पिछवाड़े 5 लोगों को दफनाया गया है। इनमें उनका 10 महीने का बेटा भी शामिल है, जिसकी मौत समय पर इलाज न करा पाने की वजह से हो गई थी। यहीं रहने वाली एक दूसरी महिला गुड्डी कहती हैं, ‘‘हम गरीब लोग इज्जत की मौत भी नहीं मर सकते। घरों में जगह की कमी है, इसलिए हमें कब्रों के ऊपर ही बैठना और चलना पड़ता है। यह बड़ा अपमानजनक है।’’ यहां रहने वाले अधिकांश मुस्लिम परिवार गरीब और भूमिहीन हैं। इन परिवारों के पुरुष ठेके पर मजदूरी करते हैं। इनका कहना है कि एक कब्रिस्तान की इनकी मांग वर्षों से ठुकराई जा रही है। 

उदासीन प्रशासन 
प्रशासन की उदासीनता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ समय पहले कब्रिस्तान के लिए जो जमीन का टुकड़ा इन्हें आबंटित किया गया था, वह एक तालाब के बीचों-बीच पड़ता है। प्रशासन के सामने बार-बार गुहार लगाई गई लेकिन उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती। अब रहने वालों के सामने जगह की कमी की समस्या उठ खड़ी हुई है। घर में ताजा बनी कब्रों को अब सीमैंट से पक्का नहीं किया जाता क्योंकि इससे ज्यादा जगह घिरती है। कब्र को दूसरी जगह से अलग दिखाने के लिए बस उनके ऊपर छोटे-बड़े पत्थर रख दिए जाते हैं। 

इस मुद्दे पर विरोध के स्वर भी गूंजे हैं। साल 2017 में यहां के निवासी मंगल खान की मौत के बाद उनके परिवार ने उनके शरीर को तब तक दफनाने से इंकार कर दिया था जब तक कि गांव को कब्रिस्तान के लिए जमीन नहीं मुहैया करा दी जाती। अधिकारियों के आश्वासन के बाद परिवार ने मंगल खान को तालाब के किनारे दफना दिया लेकिन सरकारी आश्वासन खोखला साबित हुआ। मुनीम खान एक फैक्टरी में काम करते हैं। वह कहते हैं, ‘‘हम अपने पूर्वजों के लिए थोड़ी जमीन मांग रहे हैं। गांव की सीमा पर हिंदुओं का श्मशान है लेकिन हम तो मुर्दों के साथ रह रहे हैं।’’ 

फिर मिला आश्वासन 
परेशान गांववालों ने नजदीक के सानन गांव और अछनेरा कस्बे के कब्रिस्तानों में भी अपनों को दफनाने की कोशिश की लेकिन वहां के लोग भी अपनी जमीन देने को तैयार नहीं हैं। निजाम खान एक मैकेनिक हैं, वह कहते हैं, ‘‘उन गांवों की 6 पोखर से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। उनके कब्रिस्तान पहले से ही भरे हुए हैं।’’ गांव के प्रधान सुंदर कुमार का कहना है कि उन्होंने कई बार अधिकारियों को बुलाकर मुसलमान परिवारों हेतु कब्रिस्तान के लिए जमीन दिलवाने की बात कही है लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। जिलाधिकारी रविकुमार एन.जी. कहते हैं कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘‘मैं अधिकारियों की एक टीम गांव में भेजूंगा और कब्रिस्तान के लिए आवश्यक जमीन का ब्यौरा मंगवाऊंगा।’’-अ. जायसवाल

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