तीन तलाक पर प्रतिबंध से दिलेर हुईं मुस्लिम महिलाएं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Sep, 2017 01:19 AM

muslim women suffer from divorce on three divorces

तिहरे तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी का फैसला भारत की मुस्लिम महिलाओं को प्रत्यक्षत: बहुत दिलेरी प्रदान करने....

तिहरे तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी का फैसला भारत की मुस्लिम महिलाओं को प्रत्यक्षत: बहुत दिलेरी प्रदान करने वाला सिद्ध हुआ है और उनमें से अधिकतर ने (खास तौर पर यू.पी. में) इस सामाजिक बुराई के विरुद्ध आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी है। 

सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने गत माह 3:2 के बहुमत से यह निर्णय लिया था कि इस्लाम में प्रचलित तात्कालिक तलाक का रिवाज गैर संवैधानिक है। यह निर्णय उन मुस्लिम महिलाओं के लिए एक ऐतिहासिक जीत था, जो कई दशकों से यह दलील देती आ रही थीं कि यह रिवाज उनके समानता के अधिकार का हनन करता है। उच्चतम अदालत ने 6 माह के लिए तिहरे तलाक पर पाबंदी लगाते हुए सरकार को इस घृणित परिपाटी के स्थान पर नया कानून तैयार करने को कहा है। 

शरीयत के परम्परागत कानून पुरुषों को यह अधिकार देते थे कि वे मात्र 3 बार ‘तलाक’ शब्द का उच्चारण करके ही अपनी शादी को भंग कर सकते हैं या पत्नियों को तलाक दे सकते हैं। इस परम्परागत कानून के विरुद्ध ‘बगावत’ के प्रथम संकेत सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के मात्र 24 घंटे के अंदर यू.पी. के मेरठ जिले में दिखाई दिए। जहां 23 वर्षीय अर्शी निदा यह कहने के लिए आगे आई कि एक स्कूल का मालिक उसका पति शिराज खान शादी के पहले दिन से ही उसे दहेज के लिए प्रताडि़त करता आ रहा था और उसने उसे परम्परागत ढंग से तलाक दे दिया है। यह शिकायत दर्ज होते ही उसके पति को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद पश्चिमी यू.पी. में ऐसे ही दो अन्य मामले भी दर्ज हुए। 

इस मुद्दे पर मीडिया का फोकस तब बना जब पिछले सोमवार असमा खातून नामक महिला ने पुलिस के पास पहुंच कर अपनी व्यथा दर्ज करवाई। उसने बताया कि उसकी शादी बाराहपुर निवासी मोहम्मद नसीम के साथ हुई थी। असमा खातून ने डी.एस.पी. सतीश चंद्र शुक्ला को दी गई लिखित शिकायत में बताया: ‘‘हमारे घर 10 बच्चे पैदा हुए थे जिनमें से 7 की मौत हो चुकी है। हमारे पास 4 बीघा जमीन थी जिसमें से नसीम ने 2 बीघा पहले ही बेच दी है। वह शेष बची जमीन को बेचने पर अड़ा हुआ है और मुझे शारीरिक तौर पर प्रताडि़त करता है। 27 अगस्त को उसने एक कागज के टुकड़े पर ‘तलाक तलाक तलाक’ लिखकर हमारी बेटी के हाथों मुझे भेज दिया।’’ 

पुलिस दुविधा में थी कि इस मुद्दे को कैसे हल किया जाए। डी.एस.पी. शुक्ला का कहना है: ‘‘सुप्रीम कोर्ट का फैसला बहुत राहत प्रदान करने वाला है लेकिन इस संबंध में अभी संवैधानिक व्यवस्थाएं की जानी बाकी हैं। आपराधिक दंडावली की धारा 125 के अनुसार शादीशुदा औरत को अपने पति से गुजारा भत्ता हासिल करने का अधिकार है।’’ शुक्ला ने कहा कि पीड़िता को हरसम्भव सहायता दी जाएगी। विधि विशेषज्ञ अवधेश प्रताप सिंह ने बताया : ‘‘इस प्रकार के मामले पारिवारिक अदालत में लेकर जाने चाहिएं जहां सक्षम अदालत को सुनवाई की व्यवस्था करनी चाहिए। यदि दोनों पक्ष सहमत न हों तो उच्चतम अदालत में अपील की जा सकती है।’’ 

पाकिस्तान और बंगलादेश सहित अधिकतर इस्लामी देशों ने तिहरे तलाक पर भारत से बहुत पहले ही प्रतिबंध लगा दिया था। सामाजिक कार्यकत्र्ताओं का कहना है कि गत अनेक वर्षों दौरान हजारों मुस्लिम महिलाओं (खास तौर पर गरीब वर्गों से संबंधित) को उनके पतियों द्वारा परम्परागत रिवाज का दुरुपयोग करते हुए घरों से निकाल दिया गया है। अनेक महिलाएं तो पूरी तरह बेसहारा हो गई हैं। उनके पास अपने मायके जाने या फिर खुद किसी तरह गुजारा करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं। 

ऐसे ही एक मामला अलीगढ़ जिले में सामने आया है जहां 10 बच्चों के बाप ने अपनी पत्नी को तत्काल मौखिक तलाक दे दिया। पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता सगीना बेगम की शादी कुछ वर्ष पूर्व दिलशाद नामक व्यक्ति के साथ हुई थी। उनके घर 10 बच्चे हुए जिनमें से 8 अव्यस्क हैं। कुछ माह पूर्व दिलशाद को जेल की हवा खानी पड़ी और वहां उसकी यूसुफ नामी व्यक्ति के साथ दोस्ती बन गई। दिलशाद को कुछ समय पूर्व जमानत मिल गई लेकिन यूसुफ अभी भी जेल में था। दिलशाद उससे मिलने जाता रहा और उसके मामले की पैरवी करता रहा। जबकि इसी दौरान उसे उसकी पत्नी से भी मिलने का भी मौका मिलता रहा। धीरे-धीरे उनमें संबंध घनिष्ठ होते गए। 

सगीना ने अपने पति की इस हरकत पर एतराज किया लेकिन दोनों परिवारों के बीच बातचीत होने के बाद आपसी समझौता हो गया जिसके अंतर्गत दिलशाद उसे प्रति माह 20 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने पर राजी हो गया और साथ ही रहने को उसे घर दे दिया। यह समझौता नोटरी के समक्ष 100 रुपए के स्टैम्प पेपर पर दोनों के वकीलों के समक्ष स्थानीय अदालत में लिखा गया था लेकिन इस मामले में कोई पुलिस शिकायत दर्ज नहीं करवाई गई।     

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