Edited By ,Updated: 14 Mar, 2019 05:01 AM
क्या पुलवामा हादसे के आतंकी अपने मंसूबे में सफल हुए? हादसे के लगभग एक महीने बाद भी हम इस सवाल का ठीक जवाब नहीं दे सकते। हमारी सेना ने तो माकूल जवाब दिया। लेकिन क्या हमारे नेताओं और जनता ने भी आतंकियों की योजना को असफल करने लायक जवाब दिया? देश...
क्या पुलवामा हादसे के आतंकी अपने मंसूबे में सफल हुए? हादसे के लगभग एक महीने बाद भी हम इस सवाल का ठीक जवाब नहीं दे सकते। हमारी सेना ने तो माकूल जवाब दिया। लेकिन क्या हमारे नेताओं और जनता ने भी आतंकियों की योजना को असफल करने लायक जवाब दिया? देश में चुनाव घोषणा के बाद भी यह सवाल मुंह बाय खड़ा है।
जरा सोचिए, जिस आतंकी और उसके पाकिस्तानी आकाओं ने पुलवामा हमले की योजना बनाई, उनके मंसूबे क्या रहे होंगे? हम अनुमान लगा सकते हैं कि आतंकियों के दो इरादे रहे होंगे। पहला और तात्कालिक लक्ष्य तो यह होगा कि इस हमले में हमारे अनेक जवान शहीद हो जाएंगे। उन्होंने सोचा होगा कि हम बौखलाएंगे, लेकिन हमारे सुरक्षा बल पाकिस्तान के भीतर जाकर उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे। उनका दूसरा और गहरा इरादा यह रहा होगा कि लोकसभा चुनाव से एकदम पहले ऐसा हमला करने से हमारा लोकतंत्र पटरी से उखड़ जाएगा, बाकी सब मुद्दे दब जाएंगे, सिर्फ आतंकियों द्वारा बनाए एजैंडे पर चुनाव होगा, राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल पर दंगल शुरू हो जाएगा। अगर हमने वह होने दिया जो आतंकियों ने चाहा तो वे सफल हो गए, अगर नहीं तो हम सफल हो गए।
हमारी सेना सफल रही
हमारी सेना ने तो सही जवाब दिया। हमारी वायुसेना ने अपनी जवाबी हमले से आतंकी संगठनों को साफ संदेश दिया : बार्डर के पीछे से वार करोगे तो हम भी वहां पहुंच कर वार कर सकते हैं। यह सारी बहस बेकार है कि अढ़ाई सौ आतंकी मरे या अढ़ाई भी नहीं मरे। विदेश मंत्रालय, थलसेना और वायुसेना ने कभी दावा ही नहीं किया है कि 250 से 300 आतंकियों को मार गिराया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा है कि उन्हें जो मिशन मिला था उसे पूरा कर दिया गया था। न तो भाजपा के नेताओं को यह फालतू दावा करना चाहिए था, न ही विपक्ष को इसका प्रमाण मांगना चाहिए था। असली बात यह है कि भारत की सेना ने पाकिस्तान में बैठे आतंकियों और उनके सरगना को यह बता दिया कि हम बार्डर के पार जाकर भी उन्हें सबक सिखा सकते हैं। एटम बम की गीदड़भभकी से हम डरने वाले नहीं हैं।
लेकिन क्या नेताओं और जनता ने आतंकवादियों को सही जवाब दिया? आतंकियों को करारा जवाब तभी मिल सकता था अगर हम इस सवाल पर राष्ट्रीय सहमति बना लेते और दिखा देते कि कोई बम हमारी एकता में दरार पैदा नहीं कर सकता, हमारे चुनाव को पटरी से नहीं उतार सकता। सबसे पहली जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की थी। उन्हें दिखाना चाहिए था कि इस मुद्दे पर वह पूरे देश के नेता हैं, सिर्फ भाजपा के नहीं।
सैनिक कार्रवाई की सफलता का श्रेय सेना और पूरे देश को देना चाहिए था। इस मौके पर अपने सिर पर सेहरा बांध पिछली सरकार पर हमला करके मोदी जी ने उसी खेल की शुरूआत की जो आतंकी चाहते थे। जवाब में विपक्ष के नेताओं ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए और सरकार से वे सब सवाल पूछे जो इस वक्त जरूरी नहीं थे। सभी राजनीतिक दलों को एकजुट करने की बजाय भाजपा ने फंदा डाला कि विपक्षी उसमें पांव दे और उन्हें देश विरोधी बताया जा सके। आतंकवादी इस खेल को देखकर खुश हुए होंगे।
सैन्य कार्रवाई और हमारे नेता
आतंकी और उनके पाकिस्तानी सरगना इस बात से और भी खुश हुए होंगे कि अब हमारा पूरा चुनाव उन्हीं के तय किए सवाल पर खेलने की तैयारी चल रही है। पहले दिन से भाजपा पुलवामा की शहादत को भुनाने की कोशिश में जुटी है। भाजपा के सांसद शहीदों की अर्थी के साथ ऐसे चले मानो कोई रोड शो हो। बालाकोट कार्रवाई वाले दिन प्रधानमंत्री ने शहीदों की फोटो को पर्दे पर लगाकर चुनावी भाषण दिया। भाजपा सांसद मनोज तिवारी सैनिकों की नकली वर्दी पहन कर प्रचार कर रहे थे।
पिछले सप्ताह तक देश भर में भाजपा के पोस्टर और होॄडग्स लगे थे जिसमें सेना, एयर स्ट्राइक और यहां तक कि विंग कमांडर अभिनंदन की फोटो लगाकर पार्टी का प्रचार किया गया है। भाजपा के नेता येद्दियुरप्पा ने कहा कि वायुसेना के हमले से भाजपा की सीटें बढ़ जाएंगी। उधर सैनिकों का खून टपक रहा था, इधर नेताओं की लार टपक रही थी। अगर कोई सच्चा राष्ट्रवादी है तो उसकी यही परीक्षा होनी चाहिए कि वह राष्ट्रहित में अपना राजनीतिक हित पीछे छोडऩे के लिए तैयार है या नहीं। नहीं तो यह खेल राष्ट्र की सुरक्षा नहीं, कुर्सी की सुरक्षा है। आज भी सत्तापक्ष और विपक्ष मिलकर तय कर सकते हैं कि सेना और सुरक्षा बलों को चुनावी वाद-विवाद का मुद्दा नहीं बनाया जाएगा। न तो चुनाव के दौरान कोई पार्टी या नेता सैनिक कार्रवाई का श्रेय लेगा, न ही कोई पार्टी स्थिति के सामान्य होने तक सैनिक कार्रवाई की आलोचना और दोषारोपण करेगी लेकिन इसकी उम्मीद करना बेमानी है। कड़वा सच यह है कि नेता और पार्टियां इस परीक्षा की घड़ी में फेल हो गए हैं।
अब जनता से उम्मीद
अब उम्मीद जनता से करनी चाहिए। जब कोई हमारा वोट मांगने आए तो उससे बस इतना कहना है कि इधर-उधर की बात न करो, सीधे-सीधे बताओ आपने क्या किया, आप आगे क्या करोगे? पूछना है उनसे रोजगार के बारे में, महंगाई के बारे में, भ्रष्टाचार के बारे में, पूछना है बिजली-सड़क-पानी के बारे में, पूछना है स्कूल, अस्पताल और राशन दुकान के बारे में। जो सरकार में हैं उनसे पूछना है कि पिछले पांच साल में क्या किया उसका हिसाब दो।
जो विपक्ष में, उनसे पूछना है कि अगले पांच साल क्या करोगे उसका भरोसा दो। और अगर कोई शहीद सैनिकों की तस्वीर दिखा कर, उनके शौर्य की कहानियां सुनाकर और सेना की यूनिफार्म पहन कर वोट मांगे तो उससे साफ-साफ पूछना है : युद्ध लड़ रहे हो या चुनाव लड़ रहे हो? या कि युद्ध की आड़ में चुनाव लड़ रहे हो? आतंक के खिलाफ युद्ध लडऩा है तो सारा देश एक है। यहां न भाजपा है, न कांग्रेस, सारा देश इंडिया पार्टी का है। अगर चुनाव लडऩा है तो चुनाव के तरीके से लड़ो। हर बात का जवाब देना होगा, अपने किए का हिसाब देना होगा। लेकिन अगर युद्ध की आड़ में चुनाव लडऩा है, अगर शहीदों की ओट में वोट मांगना है तो मैं आपके साथ नहीं हूं। शहीदों की अर्थी और जवानों के खून के सहारे वोट मांगना देशभक्ति नहीं, देशद्रोह है। आतंकवादियों को सबसे मजबूत जवाब यही है : देश मेरा,वोट मेरा, मुद्दे भी मेरे!-योगेन्द्र यादव