‘नानाजी देशमुख कार्यों से एक रत्न थे’

Edited By ,Updated: 27 Feb, 2021 03:56 AM

nanaji deshmukh was a gem from works

काजल की कोठरी में रहकर बिना कालिख लगे निकल जाना, आज के युग में लोग इसे आठवां आश्चर्य ही मानते हैं। राजनीति अपने लिए नहीं, अपनों के लिए नहीं, वरन देश के लिए करने का सामथ्र्य जिस महापुरुष में था, उस राष्ट्रऋषि का नाम है नानाजी देशमुख। ‘भारत रत्न’ देने...

काजल की कोठरी में रहकर बिना कालिख लगे निकल जाना, आज के युग में लोग इसे आठवां आश्चर्य ही मानते हैं। राजनीति अपने लिए नहीं, अपनों के लिए नहीं, वरन देश के लिए करने का सामथ्र्य जिस महापुरुष में था, उस राष्ट्रऋषि का नाम है नानाजी देशमुख। ‘भारत रत्न’ देने के जितने मानक भारत सरकार के होंगे उन मानकों से भी आगे जीवन जीने वाले, ऐसे नानाजी देशमुख को भारत रत्न देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसकी गरिमा बढ़ाई है। 

सच में नानाजी देशमुख करोड़ों भारतीयों के बीच एक रत्न थे। वे कार्यों से रत्न थे। कार्यों से ऋषि थे। वे ग्रामोदय और अंत्योदय के अखंड उपासक थे। वे राजनीति में रहकर भी रचनाधर्मी और सृजनकारी थे। उन्होंने स्कूल को स्कूल नहीं कहा, सरस्वती शिशु मंदिर कहा। सरस्वती शिशु मंदिर कहते ही, मां सरस्वती से शिशु का जो नाभि का संबंध है, बिना कुछ कहे स्वत: एहसास होने लगता है। नानाजी देशमुख द्वारा जड़ में बोया गया बीज ही आज पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक विद्या भारती द्वारा सरस्वती शिशु मंदिरों के रूप में पोषित और पल्लवित हो रहा है। भारतीय संस्कृति से दूर रहकर भारत का विद्यार्थी मां सरस्वती की आराधना भला कैसे कर सकता है! धरोहर को धरा पर नानाजी देशमुख ने न केवल उतारा बल्कि आज 28 लाख बच्चे विद्या भारती विद्यालयों के आंचल में अध्ययन कर रहे हैं। 

नानाजी देशमुख एक सोच थे। नानाजी देशमुख एक विचार थे। नानाजी के पुरुषत्व में मातृत्व था। जिसके पुरुषत्व में मातृत्व होता है, उसे लोग ईश्वर का अंश ही मानते हैं। नानाजी का संबंध धनाढ्य लोगों से रहा परंतु उन्होंने धनाढ्य के धन का उपयोग ग्रामोदय और अंत्योदय में किया। ग्राम उनकी पूजा थी। उन पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय का बहुत प्रभाव था। वे सत्ता की चकाचौंध से कभी प्रभावित नहीं हुए। उन्होंने सत्ता को सेवा से जोड़ा। जनसंघ के जो 10-12 प्रमुख प्रारंभिक स्तंभ थे, वे उनमें से एक थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से निकले और आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार का सान्निध्य प्राप्त कर उन्होंने प्रारंभ में संघ के विचार को और जब संघ की प्रेरणा से जनसंघ बना, तो उसके दीये की अखंड ज्योति से उसका चिन्मयी बनकर वे भारत के कोने-कोने में जनसंघ के विचार को लेकर पहुंचे। 

जनता पार्टी की सरकार बनी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी धराशायी हुईं। आपातकाल में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ कदम से कदम मिलाकर गुप्त क्रांति की प्रेरणा नानाजी देशमुख ने दी, वह आज भी प्रख्यात पत्रकार दीनानाथ मिश्र की किताब ‘गुप्त क्रांति’ में पढ़ी जा सकती है। नानाजी देशमुख कहा करते थे, ‘हौसले से बड़ा हथियार नहीं होता।’  जयप्रकाश नारायण के हौसले का नाम नानाजी देशमुख था। जयप्रकाश नारायण नानाजी से अटूट प्रेम करते थे। 

यही कारण था कि आपातकाल के काले साए के दौरान जेल में रहने के बाद रोशनी देने वाले में जो अग्रणी थे, वे थे जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख। सन 77 में सत्ता आई जनता पार्टी की सरकार बनी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई सहित अनेक नेताओं ने आग्रह किया कि नानाजी जनसंघ कोटे से मंत्री बनें। लेकिन वे सत्ता की चकाचौंध में संगठन छोडऩे को तैयार नहीं थे। उन्होंने कह दिया, ‘‘मैं 60 वर्ष के बाद राजनीति से संन्यास ले लूंगा’’। वे 60 साल के हुए और अपने शब्दों को आचरण का परिधान पहनाते हुए उन्होंने घोषणा की, ‘‘मैं राजनीति से संन्यास लेता हूं, सेवा से नहीं’’। 

नानाजी देशमुख को राष्ट्रपति ने उनके कृत्यों को देखकर राज्य सभा में मनोनीत किया। नानाजी ने जीवन मूल्यों पर आधारित समाज-पुनर्रचना को साकार करने की दिशा में अनेक पहलें कीं। नानाजी देशमुख 27 फरवरी 2010 को अपनी काया छोड़कर चले गए। वे इतने महान् थे कि उन्होंने दधीचि की तरह अपना प्रत्येक अंग दान कर दिया था। उन्होंने जीवित रहते हुए कह दिया था, ‘‘अंग जो भी काम का हो, दूसरे जीवन के लिए उपयोग में ले लेना चाहिए।’’-प्रभात झा भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद

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