‘सभी लोगों के प्रधानमंत्री’ नहीं बन सके नरेन्द्र मोदी

Edited By Pardeep,Updated: 02 Dec, 2018 04:27 AM

narendra modi can not become prime minister of all people

नरेन्द्र मोदी 2013-14 से लेकर एक लम्बा सफर तय कर चुके हैं। उम्मीदवार मोदी केवल विकास की बात करते थे। मई 2014 में भाजपा के लिए मतदान करने वाले मतदाताओं में से 21 प्रतिशत उनके ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे में बह गए थे। एक और आकॢषत करने वाला नारा...

नरेन्द्र मोदी 2013-14 से लेकर एक लम्बा सफर तय कर चुके हैं। उम्मीदवार मोदी केवल विकास की बात करते थे। मई 2014 में भाजपा के लिए मतदान करने वाले मतदाताओं में से 21 प्रतिशत उनके ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे में बह गए थे। एक और आकॢषत करने वाला नारा था-‘अच्छे दिन आने वाले हैं’।

फिर इनके अतिरिक्त वायदे थे कि प्रत्येक नागरिक के खाते में 15 लाख रुपए डाले जाएंगे, प्रति वर्ष 2 करोड़ नौकरियां दी जाएंगी, किसानों की आय  दोगुनी की जाएगी, न्यूनतम सरकार, अधिकतम प्रशासन, रुपए को डालर के मुकाबले 40 पर लाया जाएगा, पाकिस्तान को एक अंतिम जवाब दिया जाएगा तथा अन्य कई। 

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी वाकपटुता जारी रखी। 15 अगस्त 2014 को अपने पहले स्वतंत्रता दिवस उद्बोधन में उन्होंने सभी विभाजनकारी 
मुद्दों पर 10 वर्ष के लिए पाबंदी लगाने का प्रस्ताव किया। उनके शब्द थे: ‘हम काफी लड़ाइयां लड़ चुके हैं, बहुत से लोग मारे गए हैं। मित्रो, पीछे देखें तो आप पाएंगे कि इससे किसी को लाभ नहीं पहुंचा है। सिवाय भारत माता को अपमानित करने के हमने कुछ नहीं किया। इसलिए मैं सभी लोगों से अपील करता हूं कि चाहे यह जातिवाद का जहर हो, साम्प्रदायिकता, धर्म, सामाजिक तथा आॢथक आधार पर भेदभाव हो, ये सभी हमारे आगे बढऩे के रास्ते में रुकावटें हैं। एक बार अपने मन में संकल्प लें, ऐसी गतिविधियों पर 10 वर्षों के लिए पाबंदी लगाएं तो हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ सकेंगे जो ऐेसे सभी तनावों से मुक्त होगा।’ 

अच्छी शुरूआत, तीव्र पतन 
वह एक बहुत अच्छी शुरूआत थी। बहुत से लोगों ने सोचा था कि मोदी सभी लोगों के प्रधानमंत्री होंगे। आह, वह अपने शब्दों पर कायम नहीं रह सके। उन्होंने गौरक्षकों की ङ्क्षहसा से कठोर हाथों से नहीं निपटा। उन्होंने एंटी-रोमियो दलों के कार्यकत्र्ताओं, घर वापसी समूहों अथवा खाप पंचायतों को नहीं रोका। प्रधानमंत्री ने टी.वी.-रेडियो पर ऐसी घटनाओं की सार्वजनिक तौर पर निंदा नहीं की। परिणामस्वरूप भीड़ ङ्क्षहसा, लिंचिंग और तथाकथित आनर किलिंग्स में वृद्धि हुई। औसत  सम्मानीय लोग उनमें विश्वास खोने लगे। यद्यपि प्रधानमंत्री ने प्रैस कांफ्रैंसिस करने से इंकार कर दिया तथा भाजपा ने मीडिया के एक बड़े वर्ग को सफलतापूर्वक अपना पालतू बना लिया, सम्पादकों तथा एंकरों को बर्खास्त करा दिया तथा ‘हैंडआऊट जर्नलिज्म’  के युग में प्रवेश किया, मीडिया में प्रश्र उठाए जाने लगे तथा आलोचना में सम्पादकीय तथा लेख सामने आने लगे। इससे भी बढ़कर, कोई भी चीज भाजपा नीत सरकार को आईना दिखाने से निडर सोशल मीडिया को नहीं रोक सकी। 

बाजार बेरहम हैं
प्रधानमंत्री ने बाजारों की ताकत का भी बहुत गलत अनुमान लगाया। यह बाजार ही था जिसने पहले प्रधानमंत्री तथा उनकी सरकार को आवाज लगाई। बाजार नोटबंदी जैसे बेरहम अवरोधों को पसंद नहीं करते। करोड़ों की संख्या में लोगों तथा व्यवसायों के लिए अत्यंत पीड़ा तथा यातनाओं का कारण बनने के अतिरिक्त नोटबंदी ने अत्यंत अनिश्चितता की स्थिति बना दी और बाजारों ने सरकार के नीति कार्यों में अनिश्चितता तथा अस्थिरता को पसंद नहीं किया। जब नोटबंदी के बाद घटिया तरीके से बनाई तथा अकुशल तरीके से लागू की गई जी.एस.टी. आई तो बाजारों ने नीति निर्माताओं को उनकी अक्षमता के लिए सजा दी। इसके बाद जो हुआ वह अपरिहार्य था-पूंजी के लिए लड़ाई, निवेश में मंदी, एन.पी.ए. में वृद्धि, ऋण वृद्धि में कमी, निर्यात में स्थिरता, कृषि क्षेत्र में निराशा तथा विस्फोटक बेरोजगारी।

इस समय के दौरान भाजपा को बिहार में कड़ी नाकामयाबी का सामना करना पड़ा। यद्यपि इसने उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में जोरदार विजय प्राप्त की, यह पंजाब, गोवा तथा मणिपुर में हार गई। भाजपा को उपचुनावों में सबसे बुरी पराजयों का सामना करना पड़ा, जिनमें वे राज्य भी शामिल थे जहां यह सत्ताधारी पार्टी थी। मेरी राय में कर्नाटक में पराजित होने के बाद मोदी ने सबके प्रधानमंत्री होने का लाबादा उतारने का निर्णय किया। यहां तक कि वह एक बार फिर ‘उम्मीदवार मोदी’ भी नहीं बने क्योंकि भाजपा द्वारा किए गए वायदे उपहास का पात्र बन गए तथा उस विकल्प को खारिज कर दिया गया। ऐसा दिखाई देता है कि मोदी ने समय में और पीछे जाने का निर्णय किया और ‘ङ्क्षहदू हृदय सम्राट’ का चोला पहन लिया जो गुजरात में उनकी यू.एस.पी. थी। 

मंदिर के लिए कानून का राग
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बिगुल बजा दिया। जब उन्होंने इस बात की परवाह न करते हुए कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण हेतु कानून बनाने का आह्वान किया। इससे संकेत लेते हुए प्रत्येक हिंदुत्व संगठन ने कानून बनाने की मांग की। कुछ ने इसके लिए अध्यादेश लाने की मांग भी की है। एक भाजपा सांसद ने निजी सदस्य विधेयक पेश करने का वायदा किया है। शिवसेना ने सरकार को अध्यादेश लाने की धमकी दी है। कानून बनाने की मांग को लेकर 25 नवम्बर को एक धर्म सभा का आयोजन किया गया। यह घोषणा की गई कि राम मंदिर के निर्माण की शुरूआत के लिए तिथि की घोषणा एक फरवरी 2019 को कुंभ मेला में की जाएगी। भाजपा अध्यक्ष ने मददगार संकेत दिए हैं। 

नरेन्द्र मोदी ने एक गहरी चुप्पी साध रखी है। इन कार्रवाइयों का एक चरणबद्ध तरीका है। हर कोई जानता है कि मोदी के निर्देश के बिना भाजपा में पत्ता भी नहीं हिलता, आर.एस.एस. की स्वीकृति के बगैर कोई भी ङ्क्षहदुत्व संगठन कदम नहीं उठाता तथा भागवत व मोदी के बीच किसी समझौते के बिना संघ तथा भाजपा द्वारा कोई भी प्रमुख निर्णय नहीं लिया जाता। चुनावों से पूर्व भगवान राम की प्रार्थना कर उनसे आशीर्वाद ही लिया जा सकता है। चुनावों के बाद भगवान राम की प्रार्थना कर उनका धन्यवाद किया जा सकता है। लेकिन जब भाजपा चुनाव जीतने के लिए भगवान राम में अपना पूर्ण विश्वास जताती है तो यह एक स्वीकारोक्ति है कि लोग भाजपा में अपना विश्वास खो चुके हैं। कृपया कुछ पैरा पीछे जाएं तथा 2014 के स्वतंत्रता दिवस पर मोदी के शब्दों को पढ़ें। निश्चित तौर पर वह बहुत दूर चले आए हैं।

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