नरेन्द्र मोदी के तीन ऐतिहासिक भाषण

Edited By ,Updated: 28 May, 2019 03:57 AM

narendra modi s three historic speeches

2019 के ऐतिहासिक चुनाव के बाद 3 दिनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी दूरदॢशता का परिचय देने वाले तीन भाषण दिए। पहला उद्बोधन मंत्रिमंडल बैठक में उन्होंने किया। मोदी ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक जीत है। यह जनता द्वारा लड़ा हुआ चुनाव है। यह...

2019 के ऐतिहासिक चुनाव के बाद 3 दिनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी दूरदॢशता का परिचय देने वाले तीन भाषण दिए। पहला उद्बोधन मंत्रिमंडल बैठक में उन्होंने किया। मोदी ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक जीत है। यह जनता द्वारा लड़ा हुआ चुनाव है। यह सकारात्मक मतदान है। सत्तारूढ़ दल के पक्ष में दिया हुआ यह वोट है। परफॉर्मैंस को दिया वोट है और जाति पर नहीं काम के आधार पर यह सरकार दोबारा आई है।

जिस दिन चुनाव नतीजे घोषित हुए उसी दिन शाम को पार्टी दफ्तर में मोदी ने भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा कि दशकों के बाद ‘दो’ से ‘दोबारा’ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। यह भारतीय जनता पार्टी की बढ़ती हुई लोकप्रियता की परिचायक है। 1984 में लोकसभा में केवल दो सदस्य चुनकर आए थे और अब 2014 व 2019 में दो बार लगातार पूर्ण बहुमत की भाजपा की सरकार बनी है। भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला है। यह गरीबों को समर्पित सरकार है, ऐसा 2014 में उन्होंने कहा था और आज उसी गरीब समुदाय ने इस बार इतना भारी ऐतिहासिक बहुमत दिया। समाज के सभी वर्गों का साथ मिला। संसद के सैंट्रल हाल में जो भाषण मोदी ने नेता चुने जाने के बाद एन.डी.ए. के सांसदों के सामने दिया वह प्रधानमंत्री जी की दूरदॢशता, देश के लिए उनका विजन, लोगों पर उनका अमिट विश्वास और लोकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता दर्शाता है। मोदी जी ने उसमें चार प्रमुख नए विचार दिए। 

सबका साथ सबका विकास
पहला विचार यह कि हमें ‘सबका साथ, सबका विकास’ करना है। जिन्होंने वोट दिया वे भी हमारे हैं, जिन्होंने वोट नहीं दिया वे भी हमारे हैं और सबको साथ लेकर ही हमारा जाने का इरादा है। लेकिन इसी घोषणा को उन्होंने और विस्तार देते हुए बताया ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’। इसको स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि अनेक दशकों तक अल्पसंख्यक समुदाय को एक डर का माहौल पैदा करके अनेक पार्टियों ने उनका वोट बैंक की तरह उपयोग किया।

अब इन 5 वर्षों में हमारा लक्ष्य रहेगा हर एक का विश्वास सम्पादन करना, विश्वास अर्जित करना, उसका दिल जीतना। काम के आधार पर, संपर्क के आधार पर। मोदी जी ने यह भी कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के साथ छलावा हुआ। कांग्रेस और अन्य दलों ने उनके शिक्षा या बुनियादी सवालों पर कभी काम नहीं किया लेकिन उनको डर का माहौल पैदा करके उनके वोट लेने का काम मात्र किया और इसलिए उनका विकास भी होगा ‘सबका साथ, सबका विकास’ होगा। लेकिन सबका विश्वास पाना यह हमारा प्रमुख काम आने वाले 5 साल में रहेगा। 

फिर उन्होंने दूसरी एक कल्पना दी। भारतीय जनता पार्टी को खुद का बहुमत मिला है फिर भी हमारी सरकार एन.डी.ए. के सभी साथियों को साथ लेकर बनेगी। ‘प्रादेशिक अस्मिता और राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा’ यह एक नई कल्पना उन्होंने देश के सामने रखी। अंग्रेजी में इसे " National Ambition and Regional Aspiration" कहा है। NARA यह नया नारा उन्होंने गढ़ा। यह उनकी संघ-राज्य पद्धति के बारे में जो प्रतिबद्धता है दर्शाती है और उसके आगे वह हमेशा यह कहते हैं कि सरकार बहुमत से आती है लेकिन देश सबको साथ लेकर चलाना होता है। 

सत्ताभाव नहीं सेवाभाव
तीसरा एक बहुत बड़ा सूत्र उन्होंने दिया। अब ‘सत्ताभाव नहीं सेवाभाव चाहिए’ और सेवाभाव में ‘वी.आई.पी. कल्चर’ को खत्म करना है। नए जनप्रतिनिधियों को उन्होंने जो आवश्यक मार्गदर्शन जरूरी था वह किया। जनप्रतिनिधि बनने के बाद भी उनके सामान्य कार्यकत्र्ता के जीवन में जो भाव था वह नहीं बदलना चाहिए। सभी लोगों को विश्वास में लेकर और सभी लोगों के जैसा ही व्यवहार करना यह जरूरी है। इसलिए उन्होंने कहा कि ‘सत्ताभाव नहीं चाहिए’, गुरूर नहीं चाहिए, अहंकार कभी नहीं स्पर्श करना चाहिए। गाड़ी पर लगी लाल बत्ती हमने खत्म की। उसका रुपए-पैसे के खर्च का महत्व नहीं है उसका संदेश बहुत महत्वपूर्ण है कि हम वी.आई.पी. कल्चर को तवज्जो नहीं देते। उन्होंने पहले ही 2014 के चुनाव के बाद खुद को ‘प्रधानमंत्री’ नहीं ‘प्रधान सेवक’  कहा था। सारे सांसद भी एक तरह से जनसेवक हैं। यही वह बताना चाहते हैं और आज उन्होंने एक नया सूत्रपात किया कि ‘सत्ताभाव नहीं सेवाभाव चाहिए’ और समाज के साथ व्यवहार करते समय ‘ममता और समता’ चाहिए। ‘ममभाव और समभाव’ चाहिए। सबको एक नजर से देखें और सबके साथ ममत्व से सारा व्यवहार हो यह उनकी कल्पना है और इसलिए यह उद्बोधन बहुत महत्व का है। 

जनभागीदारी पर जोर
मोदी ने चौथा सूत्र बताया ‘जनभागीदारी’। 2014 से मोदी जी का जोर जनभागीदारी पर है। स्वच्छ भारत अभियान इसका उदाहरण है। स्वच्छ भारत केवल सरकारी कार्यक्रम नहीं रहा, जन आंदोलन बन गया। महिलाओं ने अनेक जगह शौचालय को ‘इज्जत घर’ नाम दिया। सरकार के सभी कार्यक्रमों में जनभागीदारी हो, समाज सरकारी योजना को अपनाकर उसका सही अमल हो इसके लिए जागरूक रहे, यह कल्पना है। 
इस चुनाव में सामान्य जनता ने अपने इरादे अपनी भाषा में बहुत बखूबी से रखे। जनता ईमानदारी देखती है। रोज मजदूरी करने वाला, माल की ढुलाई करने वाला एक कुली मुझे राजस्थान में मिला। उसने कहा ‘मोदी जी को वोट हम इसलिए देंगे कि न घर-बार न परिवार, 24 घंटे काम करते हैं एक दिन की भी छुट्टी नहीं लेते। ऐसा ईमानदार प्रधानमंत्री हमें चाहिए।’ एक गरीब किसान महिला ने कहा ‘वह गरीबी से आया है इसलिए गरीब की सोचता है।’ 

एक सुदूर गांव के रहने वाले एक आदिवासी युवक ने कहा ‘पहले पाकिस्तान ने सेना का कोई जवान पकड़ा तो सर काटकर के भेजते थे, लेकिन यह बहादुर प्रधानमंत्री है कि 24 घंटे के अंदर पायलट को जिंदा वापस लाया।’ लाभार्थी के जीवन में बदलाव आया, उनको योजनाओं का लाभ मिला, खासकर उनके खाते में सीधे पैसे आने लगे। सारी योजनाओं के लाभार्थियों को मोदी जी के प्रति एक बेहद विश्वास लगा और इसी का नतीजा है कि ऐतिहासिक मतों के साथ एक ऐतिहासिक जीत भारतीय जनता पार्टी ने हासिल की है। मुझे लगता है कि जीत के साथ-साथ उन्होंने यह संदेश दिया है कि वह देश कैसे चलाना चाहते हैं। इन तीन भाषणों को सुनने के बाद सैकुलरिज्म की बात करने वाले, लिबरल बुद्धिवादी व तथाकथित प्रागतिक विचार रखने वाले समझ जाएंगे कि मोदी जी की दृष्टि उनसे कहीं ज्यादा सर्वसमावेशी, बहुसांस्कृतिक एवं 21वीं सदी की भावनाओं को समझने वाली है।-प्रकाश जावड़ेकर

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