‘गरीबी’ का व्यापार शायद सबसे अधिक आकर्षक व्यवसायों में से एक

Edited By ,Updated: 05 Jun, 2020 11:04 AM

narendra modi train bihar chhattisgarh

शासन की गुणवत्ता काफी हद तक नेताओं के आचरण और सेवा पर निर्भर करती है। चौतरफा गिरावट जो हम देख रहे हैं, वह मुख्य रूप से विभिन्न स्तरों पर नेतृत्व की गुणवत्ता में गिरावट के कारण है। सवाल यह है कि क्या हमारे पास सरदार पटेल वर्ग के नेता हैं? इसका उत्तर...

शासन की गुणवत्ता काफी हद तक नेताओं के आचरण और सेवा पर निर्भर करती है। चौतरफा गिरावट जो हम देख रहे हैं, वह मुख्य रूप से विभिन्न स्तरों पर नेतृत्व की गुणवत्ता में गिरावट के कारण है। सवाल यह है कि क्या हमारे पास सरदार पटेल वर्ग के नेता हैं? इसका उत्तर सरल नहीं है। आखिर इस खेदजनक स्थिति का क्या कारण है?  इसका जवाब यह है कि स्पष्टता के स्थान पर हम या तो एक चुप्पी देखते हैं या फिर हां में हां मिला देते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रीगण शायद ही कभी राजनीति के मौजूदा माहौल में अपने विचार व्यक्त करते हों। सुरक्षा पहले! यही आज के शासन का आदेश है। लाखों प्रवासी मजदूर नौकरियों व आजीविका के अभाव में दिखाई दे रहे हैं। यह सब उनकी दुर्दशा की कहानी बयां करता है। मैंने अपने पिछले स्तम्भों में अत्यधिक गर्मी के इन दिनों में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ यू.पी., बिहार, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में जाने वाले लोगों के बारे में बात की थी। 


सरकारी अधिकारियों ने उन लोगों की दयनीय स्थिति का एहसास किया और बसों तथा विशेष श्रमिक गाडिय़ों का इंतजाम करके उन्हें घर पहुंचाने की कोशिश की। जिस तरह रेलवे अधिकारियों ने पूरी कवायद को संभाला उससे मैं परेशान हूं। यहां सवाल ट्रेनों के चलने की संख्या का नहीं और न ही मैं केंद्र और राज्यों के बीच क्षुद्र राजनीति के खेल के बारे में हैरान हूं, जैसा कि मीडिया में समय-समय पर बताया गया है। प्रवासी श्रमिकों से निपटने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एन.एच. आर.सी.) की टिप्पणियों को याद रखना उचित होगा। इसमें कहा गया है कि प्रवासी श्रमिकों की उपचार सीमाएं बर्बरता के आसपास हैं। भोजन के प्रावधान को छोड़ दें तो मैं समझता हूं कि श्रमिकों की लम्बी यात्रा के दौरान पीने के पानी की भी कोई व्यवस्था न थी। एन.एच.आर.सी. का कहना है कि गरीब मजदूरों के साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार नहीं किया जा सकता। आयोग ने पाया कि यदि मीडिया की रिपोर्टों की सामग्री सही है तो मानवाधिकार उल्लंघन हुआ है। पीड़ित परिवारों को अपूर्णीय क्षति हुई है। राज्य सरकारें ट्रेन यात्रा के दौरान गरीब मजदूरों के जीवन की रक्षा करने में विफल रही हैं। एन.एच.आर.सी. ने मुजफ्फरपुर, दानापुर, सासाराम, गया, बेगूसराय और जहानाबाद में ट्रेनों में एक 4 साल के लड़के सहित प्रवासियों की मौत का हवाला दिया है। सूरत से 16 मई को चली ट्रेन बिहार के सीवान में 25 मई को पहुंची। 

सार्वजनिक रूप से अधिकारी मगरमच्छ के आंसू बहाते हैं
मेरा मानना है कि अधिकारी गरीबों और गरीबी की ज्यादा परवाह नहीं करते। हालांकि सार्वजनिक रूप से वे मगरमच्छ के आंसू बहाया करते हैं। आज हम जो कुछ भी देख रहे हैं वह सार्वजनिक जीवन में एक चौतरफा गिरावट है। कोविड-19 महामारी और आॢथक गड़बड़ी ने केवल चीजों को बदतर बना दिया है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि हमारे प्रधानमंत्री ङ्क्षचतित हैं। वह प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा से अच्छी तरह वाकिफ हैं। मोदी स्वीकार करते हैं कि प्रवासी श्रमिकों को सबसे ज्यादा नुक्सान उठाना पड़ा है। मेरा एकमात्र खेद यह है कि प्रधानमंत्री को उनकी समस्याओं का शीघ्रता से अनुमान लगाना चाहिए और उनके गांवों में जाने की आवश्यक व्यवस्था करनी चाहिए। 


प्रवासी श्रमिकों की गरीबी उतनी ही मानव निर्मित है
यहां मेरा कहना यह है कि धन भगवान की देन है तब प्रवासी श्रमिकों की गरीबी क्या है? क्या यह नियति का मानना है? ठीक है प्रवासी श्रमिकों की गरीबी उतनी ही मानव निर्मित है जितनी कि यह शायद स्वर्ग में बनी हो। यह उतनी ही गुणी व्यक्तियों का अपवाद है जितनी कि यह मानसिक मनोवृत्ति है।  यह सिस्टम के पक्षपात के कारण सामंती शोषण पर आधारित है। यह संसाधन के संकट के रूप में एक अर्थशास्त्री के सपने जितनी बुरी है यह राजनीति के छल, कपट और विश्वासघात के खेल के रूप में संख्याओं का विषय है। गरीबी स्वर्ग में बनाई जा सकती है लेकिन इसे विकसित किया जा सकता है और फिर इसे प्राप्त किया जा सकता है। गरीबी का व्यापार शायद सबसे अधिक आकर्षक व्यवसायों में से एक है। इसे बिना पैकिंग और कच्चे रूप में देखा जा सकता है। 

गरीबी आज सबसे अधिक शोषित वस्तु है 
हर प्रकार के अभावों के साथ-साथ जीवन की विलासिता को 70 वर्षों से सरकार सार्वजनिक मंचों पर इसे  देख रही है, प्रदॢशत कर रही है और इस पर चर्चा करती नजर आ रही है। हमारे इतिहास में कई चरणों में अलग-अलग नेताओं द्वारा बड़े ही धूमधाम से गरीबी विरोधी कार्यक्रम शुरू किए गए, फिर भी कड़वी सच्चाई यह है कि विभिन्न प्रकार की गरीबी की समस्या  पहले जैसे ही बनी हुई है। गरीबी अब एक सामाजिक, आॢथक घटना नहीं है यह अब राजनीति में उलझ गई है और राजनीतिक आकाओं और उनके सहयोगियों के हाथों में एक शक्तिशाली हथियार बन गई है। गरीबी आज सबसे अधिक शोषित वस्तु है। आईए हम देखते हैं कि पी.एम. मोदी द्वारा खोली गई अर्थव्यवस्था से प्रवासी श्रमिकों की संख्या में कितना सुधार होता है। मुझे यकीन है कि एम.एस.एम.ई., किसानों और सड़क विक्रेताओं के लिए मोदी सरकार का आॢथक पैकेज अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए एक लम्बा रास्ता तय करेगा। प्रधानमंत्री ने 31 मई को मन की बात कार्यक्रम में अंतर्राज्यीय श्रमिकों पर बढ़े मानवीय संकट की बात कही है। उन्होंने कहा है कि इस अवधि के दौरान उन्होंने सबसे खराब वर्ग का सामना किया है। प्रधानमंत्री के शब्दों को सुन कर खुशी होती है। मैं देखना चाहता हूं कि कैसे वह इन शब्दों को कल के भारत के एक समतावादी समाज के लिए कार्ययोजना में बदल देंगे। मुझे उम्मीद है कि वह भविष्य के भारत के लिए एक नया पोस्ट कोविड-19 खाका तैयार करेंगे जिसमें प्रवासी श्रमिकों और उनके बच्चों पर खास ध्यान दिया जाएगा। मेरा मानना है कि इस तरह का सामाजिक, आॢथक खाका कल के भारत के लिए पैदा हुई खाइयों को भरने की कोशिश करेगा।


 

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