पंजाब में गंदा राजनीतिक घमासान

Edited By ,Updated: 27 Oct, 2021 10:45 AM

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पंजाब के आधुनिक इतिहास में शायद ही ऐसा अति विषैला, घातक तथा गंदा राजनीतिक घमासान देखने को मिला हो। ऐसी शर्मनाक, गलघोंटू, घटिया तथा गिरे हुए राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप, तर्कहीन बयानबाजियां कभी देखने को नहीं मिलीं। ऐसा लगता है जैसे आज गुरुओं के नाम पर...

पंजाब के आधुनिक इतिहास में शायद ही ऐसा अति विषैला, घातक तथा गंदा राजनीतिक घमासान देखने को मिला हो। ऐसी शर्मनाक, गलघोंटू, घटिया तथा गिरे हुए राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप, तर्कहीन बयानबाजियां कभी देखने को नहीं मिलीं। ऐसा लगता है जैसे आज गुरुओं के नाम पर जीने वाले पंजाब में राजनीतिक कूटनीति, नैतिकता, उच्च आचरण, सूझबूझ, सहनशीलता, आचार संहिता का अकाल पड़ गया हो। दरअसल कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर, दिशाहीन, एक परिवार आधारित, एकाधिकारवादी, दूरदृष्टि रहित लीडरशिप है। राष्ट्रीय स्तर पर मानसिक तौर पर दिवालियापन तथा राजनीतिक अनैतिकता की शिकार इस लीडरशिप के कारण कांग्रेस शासित पंजाब, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि अन्य राज्य भी पार्टी की आंतरिक खानाजंगी के शिकार अनुशासन नाम की कोई चीज नहीं। पंजाब में ताकतवर शिरोमणि अकाली दल सुप्रीमो प्रकाश सिंह बादल तथा मजबूत अकाली-भाजपा गठजोड़ से सत्ता छीनने के लिए कांग्रेस पार्टी तथा इसके किसी अन्य नेता के पास सिवाय कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के कोई शक्ति नहीं थी। जहां 2002 में उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी ने सत्ता छीनी वहीं 2017 में कैप्टन के राजनीतिक तिलिस्म के अंतर्गत ‘चाहता है पंजाब-कैप्टन की सरकार’ नारे के माध्यम से सत्ता हासिल की गई। इस दौरान कमजोर, दिशाहीन तथा दूरदृष्टिहीन कांग्रेस की राष्ट्रीय लीडरशिप कैप्टन के कद जैसा नेतृत्व पंजाब में पैदा नहीं कर सकी जैसी कि कांग्रेस की आंतरिक राजनीतिक संस्कृति की परम्परा रही है। दूसरे शब्दों में ऐसा भी कहा जा सकता है कि पंजाब के शक्तिशाली एकाधिकारवादी क्षत्रप के तौर पर स्थापित हो चुके कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने राज्य में अपने बराबर किसी भी तरह की कांग्रेस लीडरशिप को उभरने ही नहीं दिया।

इसी कारण राजनीतिक साजिशों का मकडज़ाल बुन कर सत्ता से बुरी तरह बेइज्जत करके बाहर निकालने के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा उनके कद के बराबर का नेता पंजाब को न दे सकने के कारण ऐसा राजनीतिक घमासान मचा है। राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक तथा मानसिक तौर पर अस्थिर नेतृत्व को पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षता सौंपना आग पर तेल डालना साबित हुआ। नवजोत सिंह सिद्धू खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे जैसा कि उन्होंने आखिरकार लखीमपुर खीरी के दौरे के समय दबी जुबान में कह दिया था। उनके द्वारा पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ तथा सुखजिंद्र रंधावा को मुख्यमंत्री थोपने का विरोध, चरणजीत सिंह चन्नी द्वारा मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी कठपुतली बनने से स्पष्ट इंकार तथा गुस्से में यह कहना कि यह ले मुख्यमंत्रीशिप और दो महीनों में कर ले एजैंडा लागू जैसी घटनाओं ने पंजाब में चन्नी सरकार को तमाशा तथा कमजोर बनाकर रख दिया।  हजारों-करोड़ सम्पत्ति के मालिक, शराब तथा नशों की नदियां बहाकर चुनाव जीतने के लिए प्रसिद्ध, 4 फुट रेत खड्डों की खुदाई 5 फुट करके रेत माफिया का संरक्षण प्राप्त करने वाले, पानी-बिजली के बिल अदा करने वाले शहरियों  के विपरीत कानून की अवज्ञा करके बिल न अदा करने वालों के हजारों-करोड़ माफ करने, महज अपनी झूठी लोकप्रियता की खातिर मुफ्त रियायतें लेकर पंजाब के सिर तीन लाख करोड़ का कर्जा पांच लाख करोड़ करने वाले मुख्यमंत्री का चेहरा बेनकाब होने के कारण कांग्रेस का भीतरी घमासान और तेजी पकड़ रहा है। पंजाब में दलित राजनीति के उभार को बड़ी चोट पहुंची है।

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने पाकिस्तान की रक्षा मामलों संबंधी पत्रकार मुस्लिम महिला अरूसा आलम को पहले 2006-07 और अब मार्च 2017 से सितम्बर 2021 तक अपने मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान गैर-कानूनी तथा गैर-संवैधानिक तौर पर अपनी सरकारी रिहायश पर तैनात किया जिस बारे कहा जाता है कि किसी भी काम के लिए जब कोई कांग्रेस कार्यकत्र्ता, नेता, मंत्री मुख्यमंत्री के पास जाता था तो आगे से कहा जाता कि अरूसा को मिल लें। नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर ने तो सीधे नोट भरे अटैची तथा महंगे गिफ्ट लेने के लिए बीबी अरूसा और उसके बेटे पर आरोप लगाए हैं। उसके बेटे रफे आलम तथा प्रसिद्ध ई-स्पोर्ट्स कम्पनी ने 40 मिलियन डालर निवेश करने बारे खुलासा हुआ है। गृहमंत्री सुखजिंद्र सिंह रंधावा ने अरूसा को लेकर कैप्टन पर बड़े हमले किए हैं। उन्होंने रिहायश तथा खुफिया एजैंसियों के साथ संबंधों बारे जांच की घोषणा की है। कैप्टन द्वारा अरूसा के साथ सोनिया गांधी, मंत्री रजिया सुल्ताना तथा उनकी पुत्रवधू के साथ तस्वीरें मीडिया को जारी करने से इस घमासान की धूल और उड़ी है। उधर कैप्टन के पके बाल तथा आटा खराब हो रहा है। भाजपा तथा बादल परिवार के साथ मिलीभगत से पंजाब का शासन चलाने की बदनामी गले से नहीं उतर रही। पंजाब की राजनीति में हाशिए पर धकेले गए कैप्टन द्वारा नई क्षेत्रीय पार्टी का गठन क्या गुल खिलाएगा यह तो समय ही बताएगा। 

3 कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 11 महीनों से संघर्ष कर रहे किसानों की पंजाब के राजनीतिज्ञों तथा राजनीतिक दलों द्वारा डट कर मदद करने के विपरीत सत्ता के लिए तड़पने  तथा रैलियां करने के विरोध की घोषणा किसान जत्थेबंदियों ने की है। अब  किसान तथा उनके समर्थक इनको गांवों-शहरों-मोहल्लों में नहीं घुसने दे रहे। यह स्थिति भी वर्तमान राजनीतिक घमासान को और तेज कर रही है। राजनीतिक इच्छाशक्ति ही नहीं, चन्नी सरकार तथा कांग्रेस पार्टी वास्तविक मुद्दों से भाग चुकी है जिसका राजनीतिक तौर पर अधमरे नेता की तरह ‘इस्तीफा प्रधान’ सिद्धू दबे सुर में राग अलापता है। शिरोमणि अकाली दल तथा आम आदमी पार्टी अपना जनाधार तथा विश्वसनीयता गंवा चुकी हैं। ऐसे राजनीतिक हालात में पंजाब के देश-विदेश में बैठी प्रबुद्ध तथा जागरूक शख्सियतें पंजाबियों को नेक सलाहें दे रही हैं कि पंजाबियो जागो, जब आप जाग पड़े तो फिर अपने में से ऐसे भ्रष्ट, लुटेरे, अनैतिक नेताओं की जगह अपने प्रतिनिधि चुन कर नए पंजाब का निर्माण करोगे।
 

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