राजग सरकार अपने ही ‘डाक्टर’ की सलाह मानने से इंकारी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Feb, 2018 02:19 AM

nda government accepting the advice of its own doctor

वित्त मंत्रालय में एक असाधारण लेकिन लम्बे समय से चली आ रही परिपाटी मौजूद है। सरकार के अनेक सचिवों के अलावा मुख्य आॢथक सलाहकार (सी.ई.ए.) का भी पद होता है।  वैसे तो वह सरकार यानी वित्त मंत्रालय का कर्मचारी होता है लेकिन कुछ अर्थों में वह सरकार से...

वित्त मंत्रालय में एक असाधारण लेकिन लम्बे समय से चली आ रही परिपाटी मौजूद है। सरकार के अनेक सचिवों के अलावा मुख्य आॢथक सलाहकार (सी.ई.ए.) का भी पद होता है। 

वैसे तो वह सरकार यानी वित्त मंत्रालय का कर्मचारी होता है लेकिन कुछ अर्थों में वह सरकार से स्वतंत्र भी होता है। वह ‘संयमित भाषा’ में सरकारी विचारों के विपरीत विचार भी व्यक्त कर सकता है। वह विनम्र शब्दों में सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की आलोचना कर सकता है। आर्थिक सर्वेक्षण तैयार और प्रस्तुत करने एवं सरकार को परामर्श देने के मामले में उसे काफी स्वतंत्रता हासिल होती है। यह स्वतंत्रता सरकार के अन्य सचिवों को हासिल नहीं होती। वैसे सरकार मुख्य आर्थिक सलाहकार की राय मानने या न मानने को स्वतंत्र है। 

मैं सी.ई.ए. को घर के अंदर तैनात डाक्टर की तरह समझता था जो कि अपने मरीज की सेहत पर नजर रखता है और यदि मरीज बीमार पड़ जाए तो उसके लिए इलाज और दवाइयां तय करता है। यदि मरीज ही घटिया हो तो वह दवाई नहीं लेगा बल्कि खुद ही निदान और नुस्खा तैयार करेगा। 

आर्थिक सर्वेक्षण बनाम बजट 
डा. अरविंद सुब्रमण्यण अक्तूबर 2014 में सी.ई.ए. के रूप में अपनी नियुक्ति के समय से ही बहुत बढिय़ा डाक्टर चले आ रहे हैं लेकिन राजग सरकार एक बहुत घटिया मरीज है। बढिय़ा डाक्टर और घटिया मरीज के बीच असुखद संबंध का सबसे बेहतरीन उदाहरण आर्थिक सर्वेक्षण (ई.एस.) और बजट के बीच विचारों का मतभेद है। मैं इसकी कुछ व्याख्या करना चाहूंगा: 

1. ई.एस. ने चिन्हीकरण, समाधान, पुन: पूंजीकरण और सुधारों से चार बिंदुओं को रेखांकित किया था और यह इंगित किया था कि बेशक पहले तीन काम किए जा चुके हैं तो भी बैंकिंग सुधार शुरू नहीं हुए। सुधारों की रूपरेखा तैयार करने और एक समय-सारिणी निर्धारित करने के लिए बजट एक बढिय़ा अवसर था लेकिन इसकी बजाय हम ‘एन्हांस्ड एक्सैस एंड सर्विस एक्सिलैंस’ (ई.ए.एस.ई. या ईज) कार्यक्रम के नाम तले ‘‘महत्वाकांक्षी सुधार एजैंडा’’ के बारे में केवल आकर्षक डायलॉग ही सुन रहे हैं। यह दुम द्वारा कुत्ते को हिलाए जाने का एक बढिय़ा उदाहरण है। 

2. कम्पनियों की कार्यकुशलता एवं प्रोफैशनल कार्यप्रबंधन को बढ़ावा देते हुए कारोबारी उपकरणों के आर्थिक सामथ्र्य को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए सरकार को गैर रणनीतिक कारोबारों में से बाहर निकलने की व्यावहारिक नीति अपनाने को ई.एस. ने रणनीतिक अपनिवेश के रूप में परिभाषित किया। सरकार ने घोषणा की कि इसका रणनीतिक दृष्टि से पुरस्कार जैसा निवेश था ओ.एन.जी.सी. से 37 हजार करोड़ रुपए वसूल करना। इस तेल खोज कम्पनी ने सरकार को एच.पी.सी.एल. के शेयरों का पैसा अदा करने के लिए कर्ज लिया। सरकार के इस लाभ सेवित्तीय घाटे में 0.2 प्रतिशत की कमी आएगी। ऐसे कदम को हम रणनीति नहीं बल्कि एक हथकंडा कह सकते हैं। 

3. ई.एस. डाक्टर के पास निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई सारे नुस्खे हैं। लेकिन मरीज ने केवल एक ही वाक्य में उसकी सभी चिंताओं को दरकिनार कर दिया और घोषणा की कि वह नौ बर नौ है : ‘‘हमारा निर्यात 2017-18 में 15 प्रतिशत से बढऩे की उम्मीद है।’’ न कम न अधिक। हाल ही के महीनों में निर्यात में जो मामूली सी वृद्धि हुई उससे शायद सरकार भ्रमित हो गई है। लेकिन सुस्ती बरतने का कोई आधार मौजूद नहीं क्योंकि तैयार माल का निर्यात केवल कुछ ही वर्ष पूर्व बड़ी मुश्किल से पुराने स्तर पर आ सका था। इसके अलावा वित्त मंत्री गलत भी थे। अप्रैल-दिसम्बर 2017 दौरान निर्यात में वृद्धि गत वर्ष की इसी अवधि दौरान 11.24 प्रतिशत थी न कि 15 प्रतिशत। 

आक्रामक टैक्स आकलन 
4. टैक्स राजस्व के मुद्दे पर ई.एस. ने यह इंगित किया कि ‘‘केन्द्र के टैक्स और जी.डी.पी. का अनुपात 1980 के वर्षों की तुलना में किसी भी तरह ऊंचा नहीं है।’’ और नोटबंदी और जी.एस.टी. के बाद यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि इस वर्ष टैक्स की वसूली कैसी रही है और अगले वर्ष के लिए सम्भावनाएं कैसी हैं। संशोधित अनुमानों के आधार पर ऐसा लगता है कि कुल टैक्स का जी.डी.पी. से अनुपात 2017-18 में 11.6 प्रतिशत रहेगा। फिर भी सरकार ने 2018-19 के लिए यह भविष्यवाणी की है कि आयकर 19.8 प्रतिशत, जी.एस.टी. 67 प्रतिशत तथा सकल टैक्स राजस्व 16.7 प्रतिशत की दर से बढ़ेंगे। डाक्टर की चिंताओं को धत्ता बताकर एक बहुत ही गम्भीर हालत में बीमार व्यक्ति का इरादा कितना आक्रामक है! 

5. ई.एस. ने वृद्धि की दिशा में कार्यरत कुछ हवा के झोंकों को चिन्हित किया था : जैसे कि वैश्वीकरण के विरुद्ध हो रही प्रतिक्रिया, कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों से अधिक उत्पादकता वाले क्षेत्रों की ओर संसाधनों के स्थानांतरण में आ रही कठिनाइयां, मानव पूंजी को उच्च टैक्नालोजी वाले कार्यस्थलों की मांग पर अपग्रेड करने की चुनौती एवं जलवायु परिवर्तन से पैदा हुए कृषि क्षेत्र के तनाव से निपटना इत्यादि। सरकार ने तो ‘प्लैनेट अर्थ’ को अधर में छोड़ दिया है और खुद ऊंची हवाओं में उड़ते हुए घोषणा कर रही है: ‘‘साइबर एवं भौतिक प्रणालियों का जुड़ाव न केवल नवोन्मेष के वातावरण का कायाकल्प करने की क्षमता रखता है बल्कि इससे हमारी अर्थव्यवस्थाएं और जीवनशैली भी बदलेगी। 

रोबोटिक्स, आर्टफिशियल इंटैलीजैंस डिजीटल विनिर्र्माण, विराट डेटा विश्वलेषण, क्वांटम कम्युनिकेशन एवं इंटरनैट आफ थिंग्स के शोध, प्रशिक्षण एवं कौशल विकास में निवेश हमें साइबर भौतिक प्रणालियों के ऐसे मिशन पर अग्रसर करेगा जिससे हम उत्कृष्टता के केन्द्र स्थापित कर सकेंगे।’’ मेरा मानना है कि हमें इंतजार करना चाहिए कि हमारे वित्त मंत्री अपनी इस अंतरिक्ष यात्रा से वापस लौटें तो हम उन्हें पृथ्वी पर चल रहे हवा के झोंकों की याद दिला सकें। 

6. ई.एस. ने यह इंगित किया है कि गत कुछ वर्षों से बचतें और निजी निवेश लगातार नीचे गिर रहे हैं, जबकि 2000 के दशक के मध्य में इन्हीं दो इंजनों ने अर्थव्यवस्था को नई गति प्रदान करने का काम किया था। इसलिए सरकार को प्राइवेट निवेश में बढ़ौतरी करने के किसी रोड मैप की अवश्य ही घोषणा करनी चाहिए। बजट में वित्त मंत्री ने इस बात की स्वीकारोक्ति तक नहीं की कि बचत और निवेश घटना कितनी चिंता की बात है। 

7. ई.एस. ने देश को विनिर्माण क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए शिक्षा एवं स्वास्थ्य के महत्व को रेखांकित किया है। वह दोनों ही मुद्दों पर बहुत विस्तार से बोले और यह नहीं बताया कि इनके लिए पैसा कहां से आएगा। सरकार लगातार ‘मैं न मानूं’ की मुद्रा अपनाए हुए है। यह अर्थव्यवस्था की वस्तुनिष्ठ स्थिति से इंकारी है। यह इस बात से भी इंकारी है कि कृषि क्षेत्र बहुत तनाव में है। यह बेरोजगारी से भी इंकारी है। यह तो विपक्ष की दलीलों से भी इंकारी है और अब यह रोग के निदान तथा इसकी दवाई निर्धारित करने के लिए 2014 में खुद रोजगार पर रखे गए डाक्टर के परामर्श से भी इंकारी है।-पी. चिदम्बरम 

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