‘राजग’ की रणनीति बिहार में वोटरों को ‘संतुष्ट’ करने में विफल क्यों रही

Edited By ,Updated: 31 Dec, 2015 12:05 AM

nda s strategy in bihar voters satisfied failed to why

बिहार में ‘महागठबंधन’ की सनसनीखेज विजय ने मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को चारों खाने चित्त कर दिया है

(सुधांशु त्रिपाठी): बिहार में ‘महागठबंधन’ की सनसनीखेज विजय ने मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को चारों खाने चित्त कर दिया है और उसे अब यह समीक्षा करनी होगी कि इसकी रणनीति मतदाताओं को संतुष्ट कराने से विफल क्यों रही। यह मंथन करने के लिए अभी भी समय उपयुक्त है कि भारत में लोकतंत्र का भविष्य क्या होगा और हम विश्व के देशों के भाईचारे में खुद को एक आधुनिक, उदार एवं प्रगतिशील समाज व राजनीतिक तंत्र के रूप में कैसे प्रस्तुत कर सकते हैं?

बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजे बेशक काफी हद तक उम्मीदों के अनुसार ही हैं, फिर भी ‘महागठबंधन’ की दनदनाती जीत ने स्पष्ट रूप में विपक्षी दल को गहरा सदमा लगाया है। जैसा कि हमने हालिया अतीत में हुए विधानसभा और कई संसदीय चुनाव में देखा है, ये चुनाव क्रमश: राष्ट्रीय और प्रदेश स्तरीय मुद्दों पर लड़े गए थे।
 
जहां गत वर्ष के संसदीय चुनावों ने दो बार प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी को पूरे देश में फैले और विकराल आयाम हासिल कर चुके भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में इसकी विफलता एवं जिम्मेदार व जवाबदेह गवर्नैंस उपलब्ध न करवाने के कारण सत्ता से उखाड़ फैंका था, वहीं कुछ समय पूर्व जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की सरकार को कुछ ही समय पूर्व आई विकराल बाढ़ से निपटने में इसकी विफलता के कारण पटखनी दे दी। 
 
इसी प्रकार कुछ माह पूर्व हुए दिल्ली के विधानसभा चुनाव मोदी के कथित जलवे की लहर से बिल्कुल ही अछूते रहे क्योंकि इनमें पेयजल, बिजली, सस्ते दाम की दुकानों में राशन की अनुपलब्धता, जरूरी वस्तुओं की बढ़ती कीमतों, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता की घटिया परिस्थितियों, (खास तौर पर महिलाओं के विरुद्ध) बढ़ते अपराधों एवं असुरक्षा इत्यादि के साथ-साथ भ्रष्टाचार एवं गैर-जिम्मेदाराना गवर्नैंस जैसे मुद्दे ही छाए रहे। स्पष्ट था कि राष्ट्रीय चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे हावी होते हैं जबकि राज्य स्तरीय चुनावों में स्थानीय मुद्दों का बोलबाला होता है और ये मुद्दे हर राज्य में अलग-अलग होते हैं।
 
भारत में सबसे महत्वपूर्ण स्थानीय मुद्दों में से एक है जाति प्रथा का युगों पुराना अभिशाप जो अभी भी कई राज्यों में चुनावी नतीजों को निर्धारित करता है। बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजे स्पष्ट तौर पर जातिगत गठबंधनों और बेहतर गवर्नैंस के दो रुझानों की ओर संकेत करते हैं। वास्तव में राजद-जद (यू)-कांग्रेस का महागठबंधन, यानी कि लालू-नीतीश-सोनिया ने भाजपा को निर्णायक पराजय दी और नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी के नेतृत्व की अजेयता का भ्रम चूर-चूर कर दिया जिसका स्पष्ट कारण था बिहार में स्थानीय मुद्दों, खास तौर पर जातिगत मुद्दों की सशक्त मौजूदगी।
 
इसका अभिप्राय यह है कि लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे स्थानीय नेता जातिगत गणनाओं और बेहतर प्रशासन के साथ-साथ विकास के आधार पर अभी भी फल-फूल सकते हैं। दुर्भाग्यवश आज के भारत में जाति आधारित शक्तियों का अभी भी बोल-बाला है और इस तथ्य ने भारतीय समाज को दो गुटों-अगड़ा और पिछड़ा में विभाजित कर दिया है। 
 
यहां तक कि पराजित भाजपा और इसका राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) जो मोदी के ‘रोजगार एवं सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ विकास’ के एजैंडे का राग अलाप कर आसानी से जीत सकता था, ने 9 नवम्बर 2015 की एक अखबारी रिपोर्ट के अनुसार स्वीकारोक्ति की कि ‘‘जातिगत गणनाओं के लिहाज से महागठबंधन का कुंजीवत सामाजिक आधार आकार के लिहाज से अधिक व्यापक था और इसीलिए इसको भारी जीत हासिल हुई। एक बार फिर जातिवाद के मुद्दे ने विकास के नारे को पटखनी दे दी।’’
 
इससे भी बढ़कर जातिवाद के मुद्दे ने देश में सामाजिक विभाजन की खाई और भी चौड़ी करते हुए इसे अधिक प्रचंड बना दिया है, जिसका नतीजा हम पहले ही जातिगत एवं साम्प्रदायिक हिंसा के कई जघन्य एवं भयावह मामलों में देख चुके हैं और यह सिलसिला अभी भी जारी है।
 
जहां भाजपा समाज के अगड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है वहीं पिछड़े वर्ग अपने समुदाय से संबंधित नेताओं के पीछे चलते हैं। बिहार में अब की बार पिछड़े वर्गों के नेता ‘महागठबंधन’ के रूप में विजयी हुए हैं। जहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने के लिए बेहतर गवर्नैंस और जवाबदारी नि:संदेह कुंजीवत मुद्दे हैं, वहीं केवल जातिगत आधार पर जीत हासिल करना निश्चय ही एक नकारात्मक कदम है। वास्तव में बिहार इन दोनों विडंबनाओं के सहअस्तित्व का रोचक एवं जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। वैसे देश के अधिकतर राज्यों में ऐसी ही स्थिति है।
 
सच्चाई यह है कि देश को अभी भी एक वैचारिक क्रांति में से गुजरना होगा जो भारतीय समाज की युगों पुरानी मानसिकता का कायाकल्प कर सके और उन्हें वर्तमान विडम्बना की स्थिति में से उबरने की ओर अग्रसर कर सके।
 
इस कष्टकारी परिदृश्य में अभी भी समय है कि भारतीय लोकतंत्र के भविष्य तथा देशों के भाईचारे में एक आधुनिक, उदार एवं प्रगतिशील समाज व राजनीतिक तंत्र के रूप में भारत को प्रस्तुत करने की समस्या पर चिंतन-मनन किया जा सके। इसके अलावा देश में न केवल एक राजनीतिक प्रणाली तथा जीवन की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक शैली के रूप में स्वस्थ एवं गुंजायमान लोकतंत्र सुनिश्चित करने हेतु सामाजिक, आर्थिक एवं संस्थागत प्रावधानों का विकास किए जाने की जरूरत है।        
 
IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!