Edited By ,Updated: 11 May, 2021 04:37 AM
हाल -फिलहाल में विकसित देशों द्वारा अन्य राष्ट्रों को किट, सुरक्षात्मक गियर और मदद करने के लिए अन्य सहायताजनक समान की खबरें चर्चा में हैं। इसी संदर्भ में एक आश्चर्यजनक और भ्रामक तस्वीर उभर कर सामने आ रही है। एक तरफ अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन...
हाल -फिलहाल में विकसित देशों द्वारा अन्य राष्ट्रों को किट, सुरक्षात्मक गियर और मदद करने के लिए अन्य सहायताजनक समान की खबरें चर्चा में हैं। इसी संदर्भ में एक आश्चर्यजनक और भ्रामक तस्वीर उभर कर सामने आ रही है। एक तरफ अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन अर्थव्यवस्था के पुनॢनर्माण के लिए अमेरिकन जॉब्स प्लान के साथ अन्य देशों में महामारी में रक्षा व मदद करने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ ब्रिटेन जो पहले विदेशी सहायता में सकल घरेलू उत्पाद का 0.7 प्रतिशत योगदान देता था, उसने भी महामारी के कारण होने वाले आर्थिक संकट के परिणामस्वरूप सहायता की दर पहले से भी कम कर दी।
आज के समय की कठिन परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए हर राष्ट्र को विकास, सहायता और इसकी प्रासंगिकता पर विचार करना होगा। सभी राष्ट्रों को अन्य देशों से सहायता के संदर्भ में परिवर्तनों को मापना अनिवार्य है। अधिकतम परिणाम सुनिश्चित करने के लिए घरेलू नीतियों व आम जनता की जरूरत के साथ सही तालमेल होना चाहिए। यदि हम विश्व इतिहास को देखें तो साम्राज्यवादी देशों से मदद उपनिवेशवाद का कारण बनी।
शीत युद्ध के दौरान, यही डिवैल्पमैंट एड दो विपरीत पक्षों के बीच वैचारिक युद्ध का एक हथियार बन गया। वर्तमान विश्व की चुनौतियां जैसे जलवायु परिवर्तन, आॢथक स्थिरता, प्रौद्योगिकी बहुत जटिल हैं और साथ ही साथ एक-दूसरे से संबंधित भी हैं। यही कारण है कि सभी राज्यों के लिए एक आम चुनौती है- विकास सहयोग पर मौजूदा संस्थागत संरचनाओं में सुधार के लिए जोर देना।
हाल ही में शीर्ष 40 अमरीकी क पनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की वैश्विक टास्क फोर्स द्वारा वैंटीलेटर, ऑक्सीजन तथा आपातकालीन राहत सामग्री प्रदान करने के प्रयास की घोषणा की गई। आज अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में राज्य गैर-राज्य अभिनेताओं की उपस्थिति को अनदेखा नहीं कर सकते हैं। इसी शृंखला में यह भी आवश्यक है कि पहले से मौजूद प्रतिबद्धता के साथ सही तालमेल होना चाहिए। महामारी के खिलाफ इस लड़ाई में सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। यह प्रयासों के दोहराव और दुर्लभ संसाधनों के अपव्यय को बचाएगा, विशेष रूप से आबादी वाले देशों के मामले में।
वैश्विक शासन की गतिशीलता में बदलाव को समझना होगा जहां हम इस बात की अनदेखी नहीं कर सकते कि नए देश विकास सहायता के दाता के रूप में उभरे हैं। हाल ही में भारत-यूरोपीय संघ के नेताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई जहां संयुक्त कनैक्टिविटी सांझेदारी को भी इस वार्ता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया।
वैश्विक सप्लाई चेन का विषय किसी भी राष्ट्र के लिए हर तरह की सांझेदारी के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र है। बाहर से विकास सहायता भी उनके द्वारा प्रभावित होगी। तटस्थता और स्वतंत्रता दो प्रमुख मानवीय सिद्धांत जो प्राप्तकत्र्ता राष्ट्र की चिंताओं की रक्षा करते हैं, इनको सुनिश्चित करने के लिए आज विश्व में नए डोनर्स को सप्लाई चेन संबंधी चुनौतियों पर ध्यान देना होगा, इसी से किसी भी प्रकार की मदद अधिक प्रभावी हो सकती है। उपनिवेशवाद के नए रूपों के कारण दुनिया अब वर्चस्व का कोई और संकट नहीं उठा सकती।
पहले विकास सहयोग ने टॉप-डाऊन एप्रोच का रूप लिया जहां अमीर देश गरीब देशों की मदद करते थे। ट्रिकल-डाऊन आॢथक मॉडल हमेशा सफल नहीं हो सकता। यह तर्क महामारी से बाधित दुनिया में विकास सहयोग के मुद्दे पर भी लागू है। अतीत से अलग, वर्तमान चुनौती बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर,सड़कों का निर्माण करना नहीं है, बल्कि मानव अस्तित्व को फिर से स्थापित करना है।
तुलनात्मक स्तर पर यदि विश्लेषण किया जाए तो एक बात स्पष्ट होती है कि सहायता की प्रकृति और संरचना में परिवर्तन हुआ है। इस विविधता में भी, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मानव आवश्यकताओं को किस प्रकार का महत्व दिया गया है। यही कारण है कि इन बदलती और कठिन परिस्थितियों से राष्ट्रों को जनता की चिंताओं को अपनी विदेश नीति व राष्ट्रीय हित से जोडऩा होगा-डॉ.आमना मिर्जा