यौन शोषण पर रोक लगाने के लिए त्वरित निर्णय वाले कानून लागू करने की जरूरत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jul, 2018 12:54 AM

need to enforce quick decision laws to stop sexual abuse

दुष्कर्म तथा यौन शोषणों के खिलाफ बार-बार कानून बनाने तथा उन्हें मजबूत करने के बावजूद ऐसे मामलों में कोई कमी आती नहीं दिखाई देती। यद्यपि कानून तंत्र तथा अदालतों ने निर्भया के पाश्विक दुष्कर्म मामले में दोषियों को सजा देने में कुछ शीघ्रता दिखाई तथा...

दुष्कर्म तथा यौन शोषणों के खिलाफ बार-बार कानून बनाने तथा उन्हें मजबूत करने के बावजूद ऐसे मामलों में कोई कमी आती नहीं दिखाई देती। यद्यपि कानून तंत्र तथा अदालतों ने निर्भया के पाश्विक दुष्कर्म मामले में दोषियों को सजा देने में कुछ शीघ्रता दिखाई तथा सुप्रीम कोर्ट ने प्रमुख दोषियों के मृत्युदंड की पुष्टि की मगर लगभग सभी मामलों में न्याय में लंबी देरी अपवाद की बजाय एक मानदंड बन गया है।

कैलाश सत्यार्थी फाऊंडेशन द्वारा आयोजित एक सर्वेक्षण के अनुसार अदालतों में कई वर्षों से दुष्कर्म के एक लाख से अधिक मामले लंबित हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता फाऊंडेशन ने संकेत दिया है कि मुकद्दमों की वर्तमान रफ्तार को देखते हुए इस बात की सम्भावना नहीं है कि आरोपियों को जल्दी सजा हो पाएगी। दो उदाहरण देते हुए फाऊंडेशन ने अनुमान लगाया है कि उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश में दर्ज बाल दुष्कर्म मामले को आज अदालतों से निकलने में 99 वर्ष लग जाएंगे। इसी तरह पश्चिमी राज्य गुजरात में दुष्कर्म की शिकायत एक बच्ची को न्याय के लिए 53 वर्ष प्रतीक्षा करनी होगी।

इस परिप्रेक्ष्य में मनोहर लाल खट्टर सरकार द्वारा यौन शोषण तथा प्रताडऩा के मुद्दों से निपटने के लिए उठाए गए नवीनतम कदम स्वागतयोग्य हैं और यदि इन्हें ईमानदारी तथा दृढ़निश्चय से लागू किया जाता है तो इनसे दूरगामी परिणामों की आशा की जाती है।

उनके द्वारा घोषित उपायों में यह भी शामिल है कि हरियाणा में दुष्कर्म तथा महिलाओं से छेड़छाड़ के मामलों में आरोपी को अब सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा जैसे कि वृद्धावस्था पैंशन, दिव्यांग व्यक्तियों के लिए पैंशन, ड्राइविंग तथा शस्त्र लाइसैंस। ये सेवाएं तब तक लंबित रहेंगी जब तक अदालत इस मामले में फैसला नहीं सुना देती। एक आधिकारिक रिलीज के अनुसार यदि आरोपी को दोषी पाया जाता है और सजा सुनाई जाती है तो वह इन सुविधाओं का पात्र नहीं होगा।

सरकारी सुविधाओं को रद्द करने के मामले में एकमात्र अपवाद था सबसिडी वाला राशन।
महिलाओं की सुरक्षा तथा सशक्तिकरण पर आयोजित एक कार्यक्रम में इन निर्णयों की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं की रक्षा तथा सुरक्षा के लिए एक व्यापक योजना स्वतंत्रता दिवस या 26 अगस्त को रक्षा बंधन के अवसर पर शुरू की जाएगी।

कदमों का विस्तृत खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि सभी पुलिस स्टेशनों में दुष्कर्म तथा महिलाओं से छेड़छाड़ के मामलों की निरंतर जांच की व्यवस्था की जाएगी। जांच अधिकारी को दुष्कर्म के मामले में जांच एक महीने में तथा छेड़छाड़ के मामलों में 15 दिनों में पूरी करनी होगी। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि कोई अधिकारी निर्धारित समय पर जांच पूरी नहीं करता तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

उन्होंने यह भी घोषणा की कि यदि दुष्कर्म पीड़िता राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध करवाए गए वकील की बजाय अपनी पसंद के वकील की सेवाएं लेना चाहे तो उसे उसके लिए 22000 रुपए की वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाई जाएगी।

राज्य में दुष्कर्म तथा यौन उत्पीडऩ की निरंतर रिपोटर््स के मद्देनजर यह आवश्यक बन गया था। दरअसल मेवात में एक गांव की छात्राओं ने अपने स्कूल इसलिए जाने से मना कर दिया था क्योंकि उन्हें प्रतिदिन स्कूल आते-जाते समय यौन प्रताडऩा का सामना करना पड़ता था। उनका प्रदर्शन लगभग एक महीने तक जारी रहा जब तक कि स्थानीय प्रशासन ने सुनिश्चित नहीं कर दिया कि उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाएगी तथा गुंडों के खिलाफ कार्रवाई होगी।

मगर दुर्भाग्य से हरियाणा में जन्म से पहले ही बच्चियों के खिलाफ भेदभाव शुरू हो जाता है तथा नि:संदेह पड़ोसी राज्य पंजाब में भी ङ्क्षलग अनुपात काफी खराब है। दोनों राज्यों में कन्या भ्रूण हत्या का प्रतिशत काफी उच्च माना जाता है क्योंकि उनके पालन-पोषण तथा विवाह पर काफी अधिक खर्च आता है और दहेज पर काफी धन खर्च करना पड़ता है। उनके पालन-पोषण में यह भेदभाव खाने-पीने, कपड़ों तथा शिक्षा के मामलों में भी जारी रहता है।

कुछ वर्ष पूर्व ही चिकित्सक खुले तौर पर ङ्क्षलग निर्धारण टैस्ट करते थे तथा अजन्मे बच्चे के ङ्क्षलग का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाऊंड मशीनों का इस्तेमाल एक सामान्य प्रथा थी। पी.एन.डी.टी. कानून में संशोधनों तथा अदालतों द्वारा इसे सख्ती से लागू करने के कारण सरकारों को कड़े उपाय शुरू करने के लिए बाध्य होना पड़ा। उल्लंघनकत्र्ताओं के खिलाफ बड़ी संख्या में पी.सी.-पी.एन.डी.टी./एन.टी.पी. कानून के अन्तर्गत प्राथमिकियां दर्ज की गईं।

राज्य को कुछ अन्य कदमों के लिए भी अवश्य बधाई दी जानी चाहिए जैसे कि गर्भधारण के समय से ही महिला पर नियमित रूप से करीबी नजर रखना, जो यह भी सुनिश्चित करता है कि सामाजिक तथा पारिवारिक दबाव में गर्भपात न किया जा सके और गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष एम्बुलैंसें व बच्चियों के लिए कई अन्य प्रोत्साहन।

हरियाणा में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम भी अच्छा चल रहा है तथा बच्चियों को प्रोत्साहित करने में कई सामाजिक संस्थाएं शामिल हैं। उदाहरण के लिए एक गांव ने ‘बेटी के साथ सैल्फी’ अभियान शुरू किया, जिसकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी प्रशंसा की।

कथित दुष्कर्मियों तथा छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ खट्टर सरकार द्वारा प्रस्तावित समयबद्ध कार्य योजना तथा तुरंत कार्रवाई शुरू करने से आशा है कि असामाजिक तत्वों पर रोक लगेगी। मगर अंतत: त्वरित निर्णयों वाले कानून लागू करना ही इन पर रोक लगाने के लिए दीर्घकालिक उपाय साबित होंगे।
- विपिन पब्बी

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