चुनाव प्रक्रिया में जनभागीदारी बढ़ाने की जरूरत

Edited By ,Updated: 25 Mar, 2019 03:51 AM

need to increase public participation in election process

उम्मीदवार लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए अंतिम तारीख 25 मार्च तक नामांकन भरने में व्यस्त होंगे। दूसरे चरण के लिए नामांकन भरने का अंतिम दिन मंगलवार है। मेरी रुचि उन बातों में थी जो सभी उम्मीदवारों के लिए सामान्य है लेकिन मतदाताओं को शायद उनकी...

उम्मीदवार लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए अंतिम तारीख 25 मार्च तक नामांकन भरने में व्यस्त होंगे। दूसरे चरण के लिए नामांकन भरने का अंतिम दिन मंगलवार है। मेरी रुचि उन बातों में थी जो सभी उम्मीदवारों के लिए सामान्य है लेकिन मतदाताओं को शायद उनकी जानकारी न हो। अंतिम तारीख अटल है और इसमें कोई समझौता नहीं हो सकता। बहुत साल पहले सैयद शहाबुद्दीन पूर्व राजनयिक ने मुझे बताया था कि उसे बिहार की किशनगंज लोकसभा सीट से नामांकन भरने से जबरन रोका गया था। उसका विरोधी जो तब कांग्रेस में था और आजकल भाजपा में है। 

ऐसी होती है नामांकन प्रक्रिया
यह 1980 के दशक की बात है और अब चुनावों में काफी सुधार हो चुका है। आइए, नामांकन की प्रक्रिया पर नजर डालें। उम्मीदवार, जिनकी आयु कम से कम 25 वर्ष हो तथा जो भारतीय हो, को चुनाव आयोग के पास फार्म 2ए जमा करवाना होता है। यह लोकसभा के लिए नामांकन पत्र होता है (विधानसभा चुनाव के लिए फार्म 2बी होता है)। यह फार्म किसी मतदाता द्वारा भरा जाता है जो उम्मीदवार को जानता हो तथा वह उसे प्रस्तावित करता है।

उन्हें चुनाव अधिकारी के समक्ष भारतीय संविधान और उसकी सम्प्रभुता तथा अखंडता के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी होती है। एक से अधिक क्षेत्रों से खड़े होने वाले उम्मीदवार, जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2014 में वाराणसी और बड़ोदरा से खड़े हुए थे, केवल एक बार ही शपथ ले सकते हैं (यद्यपि ऐसे उम्मीदवारों को दूसरी सीट के लिए जमा करवाई गई सिक्योरिटी वापस नहीं की जाती है)। जेल से नामांकन भरने वाले उम्मीदवार जेल सुपरिंटैंडैंट के समक्ष शपथ ले सकते हैं। आप भगवान के नाम पर शपथ ले सकते हैं अथवा नास्तिक होने की स्थिति में केवल इतना कह सकते हैं ‘मैं शपथ लेता हूं।’ उम्मीदवारों को उनके खिलाफ आपराधिक आरोपों का पूरा विवरण जमा करवाना होता है। 

आरक्षित सीटों का मामला
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों (कुल 84 सीटें) पर चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवार का नाम भारत में कहीं भी अनुसूचित जाति की सूची में होना चाहिए। असम और लक्षद्वीप में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों के लिए केवल वही उम्मीदवार चुनाव लड़ सकते हैं जिनका नाम उन राज्यों की अनुसूचित जनजाति में हो। यदि कोई उम्मीदवार किसी न्यायालय द्वारा पागल पाया गया हो अथवा वह दिवालिया हो तो उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। मुझे कोई ऐसा उदाहरण नजर नहीं आता जब इन दो कारणों से किसी को अयोग्य घोषित किया गया हो। अब दिवालिया कानून के बाद इसमें बदलाव आ सकता है। कुछ खास अपराधों के लिए दोषी पाए गए उम्मीदवारों को अयोग्य करार दिया जाता है। इन अपराधों में समूहों के बीच घृणा पैदा करना, रिश्वत, दुष्कर्म,जाति के आधार पर मतभेद, तस्करी, उग्रवाद, नशे, तिरंगे का अपमान तथा सती प्रथा को बढ़ावा देना आदि शामिल है। यह अयोग्यता दोषी पाए जाने से 6 साल तक के लिए होती है। 

अपने नामांकन के लिए लड़ें उम्मीदवार
चुनाव आयोग स्वयं इस बात की सिफारिश करता है कि उम्मीदवार अपने नामांकन के लिए संघर्ष करे। आयोग द्वारा जारी हैंडबुक में कहा गया है : ‘एक शब्द में, जब आपके नामांकन पत्र के खिलाफ कोई आपत्ति उठाई जाती है तो आपको चुनाव अधिकारी को इस बात के लिए जोर देना चाहिए कि वह छोटे-मोटे अथवा तकनीकी आधार पर आपका नामांकन पत्र रद्द न करे। यदि वह उम्मीदवार तथा प्रस्तावक की पहचान को लेकर संतुष्ट है तो उसे किसी तकनीकी कमी अथवा उम्मीदवार या प्रस्तावक के नाम में अथवा किसी स्थान के बारे में गलत विवरण के कारण नामांकन पत्र रद्द नहीं करना चाहिए।’ और : ‘चुनाव अधिकारी को कहे कि यदि वह इस तरह के तकनीकी अथवा मामूली आधार पर नामांकन पत्र रद्द करता है तो इसे नामांकन पत्र को अनुचित तौर पर रद्द करना माना जाएगा जिसका असर पूरे चुनाव को निष्प्रभावी करना माना जाएगा तथा इस प्रकार सरकारी धन, सरकार के समय व ऊर्जा की बर्बादी होगी।’ 

उम्मीदवारों की सिक्योरिटी
मेरा ख्याल है कि सिक्योरिटी जमा करवाने तथा इसे जब्त करने के अलावा बाकी सारी प्रक्रिया अच्छी है। जो उम्मीदवार कुल पड़़े मतों में से 16.6 प्रतिशत मत हासिल नहीं कर पाते हैं उनकी सिक्योरिटी जब्त कर ली जाती है। मीडिया में इस बारे में अक्सर खबरें छपती हैं और विरोधी इस बात पर हंसते हैं। हमारे पहले चुनाव से लेकर अब तक 75 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवारों, अर्थात 64 हजार से अधिक लोगों ने अपनी सिक्योरिटी गंवाई है। चुनाव आयोग की हैंडबुक में कहा गया है कि यह सिक्योरिटी राशि 10 हजार रुपए तथा एस.सी./एस.टी. उम्मीदवारों के लिए 5 हजार रुपए है। यह अधिक राशि नहीं है। यह उन लोगों के लिए बहुत छोटी राशि है जो जानबूझ कर मत पत्र पर भीड़ बढ़ाना चाहते हैं तथा मत पत्र को लम्बा बनाते हैं।

दूसरी तरफ यह उन लोगों को रोकने में असमर्थ है जो गुप्त इरादों (उदाहरण के लिए, अन्य उम्मीदवारों से रिश्वत लेकर नामांकन वापस लेने के इरादे) से नामांकन भरते हैं। सिक्योरिटी को जब्त करने की प्रथा सभी कामनवैल्थ देशों में है और यह इंगलैंड से शुरू हुई है। इस प्रथा को जारी रखने का कोई कारण नहीं है।सिक्योरिटी जब्त करने की प्रथा उन लोगों को चुनाव लडऩे के प्रति हतोत्साहित करती है जो बड़े राजनीतिक दलों से संबंधित नहीं है। सिक्योरिटी जब्त करने का विचार उन लोगों के बारे में असफलता की ओर इशारा करता है जो 16 प्रतिशत वोट हासिल नहीं कर पाते हैं। इस लिहाज से भारत जैसे बड़े देश में यह नियम काफी कड़ा है।

यह नियम छोटे समूहों और छोटे हितों तथा छोटे गठबंधनों को दंडित करता है। लोकतंत्र में सभी भारतीयों को चुनाव लडऩे के लिए प्रेरित करना अच्छा कदम होगा और जो कानून लोगों तथा दलों को ऐसा करने से रोकते हैं उन पर पुनर्विचार होना चाहिए।-आकार पटेल

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